Monday, October 11, 2010

बिजली अवतार

बिजली अवतार
होती देखी जब घर घर नारी की पूजा
लख कर महिमा कलियुग की प्रभु को यह सूझा
फारवर्ड होती जाती नारी दिन प्रतिदिन
करदे ना मेरे खिलाफ भी वो आन्दोलन
जितने भी अवतार लिए सब पुरुष रूप धर
लक्ष्मी जी को बिठा रखा है घर के अन्दर
वो नारी है, उनको आगे लाना होगा
लक्ष्मी जी को अब अवतार दिलाना होगा
किया विचार, तनिक कुछ सोचा,मन में डोले
पर क्या करते जा कर लक्ष्मी जी से बोले
सुनो लक्ष्मी धरती पर छाया अँधियारा
आवश्यक है अब होना अवतार हमारा
होगा दूर अँधेरा उजियारा लाने से
पर मै तो डरता हूँ धरती पर जाने से
राम बनूगा ,लोग कहेगे कैसा पागल
मान बाप की बात अरे जाता हे जंगल
गर नरसिंह बनू तो भी आफत कर देंगे
निश्चित मुझे अजायब घर में सब धर देंगे
कृष्ण बनूगा तो भी आफत हो जायेगी
सेंडिल खा खा मुफ्त हजामत हो जाएगी
मै डरता हूँ सुनो लक्ष्मी मेरी मनो
जरा पति के दिल के दुःख को भी पहचानो
अब के से तो तुम्ही लो अवतार धरा पर
तुम भी दुनिया को देखो पृथ्वी पर जाकर
मेरी मत सोचो में काम चला लूँगा
मै कैसे भी अपनी दाल गला लूँगा
मगर प्रियतमे कभी कभी मुझ तक भी आना
बारिश की बिजली के संग मुझसे मिल जाना
कहते कहते आंसू की बोछार हो गयी
पति की व्यथा देख लक्ष्मी तैयार हो गयी
बिदा लक्ष्मी हुई आँख से आंसू टपके
पहले समुद्र से प्रकटी थी वो लेकिन अबके
नारी थी उसने नारी का ख्याल किया

ना समुद्र पर नदिया से अवतार लिया
बंधे बांध से टकरा प्रकटी बिजली देवी
किया अँधेरा दूर सभी बन कर जनसेवी
चंद दिनों में ही फिर इतना काम बढाया
दुनिया के कोने कोने में नाम बढाया
बिजली को अवतार दिला सच सोचा प्रभु ने
बिन बिजली के तो हें सब काम अलूने
रातो को चमका करती कितनी ब्यूटी फुल
बटन दबाते जल जाती सचमुच वंडर फुल
बिन बिजली के तो सूनी हें महफ़िल सारी
महिमा कितनी महान धन्य बिजली अवतारी
इतनी लिफ्ट मिली लेकिन फिर भी ना फूली
वह नारी हें अपना नारीपन ना भूली
चूल्हे चोके में बर्तन सीने धोने में
बाहर और भीतर घर के कोने कोने में
बिजली जी ने अपना आसन जमा लिया है
सच पुछो नारी को कितना हेल्प किया है
उल्लू से ये तार बने बिजली के वाहन
अब दीपावली को होता बिजली का पूजन
इतनी जनप्रिय किन्तु पतिव्रता धर्म निभाती
जो छूता धक्का दे उसको दूर भागती
जब थक जाती हें तो फ्यूज चला जाता हें
भक्तो ये बिजली वही लक्ष्मी माता हें

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