Saturday, October 16, 2010

आत्म दीप

आत्म दीप
लो फिर से आगई दिवाली
मेरे मन के दीप्त दीप पर
उस प्रदीप पर
काम क्रोध के
प्रतिशोध के
वे बेढंगे
कई पतंगे
शठरिपु जैसे
थे मंडराए
मुझ पर छाये

पर मेने तो
उनको सबको
बाल दिया रे
अपने मन से
इस जीवन से
मेने उन्हें निकाल दियाRE

मगन में जला
लगन से JALA
और मेने शांति की दुनिया बसा ली
लो फिर से आ गयी दिवाली

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