Tuesday, December 28, 2010

ऐसे आओ तुम सन ग्यारह

ऐसे आओ तुम सन ग्यारह
भ्रष्टाचार खड़ा मुह बाये
महगाई ने पग पसराए
लूटपाट और रिश्वतखोरी
आज कर रहे है मुह्जोरी
बेईमानी इतनी फैली
लगती है हर गंगा मैली
ये हो जाये नो दो ग्यारह
ऐसे आओ तुम सन ग्यारह
उठा रहे है सर आतंकी
वर्षा होती काले धन की
पग पग पर जनता का शोषण
बढता ही जा रहा प्रदूषण
एसा सूरज बन कर चमको
दूर हटादो सारे तम को
दो हज़ार बारह आने तक
हो जाये सबकी पोबारह
ऐसे आओ तुम सन ग्यारह

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