Sunday, December 5, 2010

अब भी

          अब भी
अब भी तेरा रूप महकता जेसे चन्दन
अब भी तुझको  छूकर तन में होती सिहरन
अब भी चाँद सरीखा लगता तेरा आनन्
अब भी तुझको देख मचल जाता मेरा  मन
अब भी तेरे नयना उतने मतवाले है
अब भी तेरे होंठ भरे रस के प्याले है
अब भी तेरी बाते मोह लेती है मन को
अब भी तेरा साथ बड़ा देता धड़कन को
मुझे अप्सरा लगती अब भी, तू ही हूर है
वही रूप है,वही जवानी, वही नूर है
अब भी तेरी रूप अदाए ,उतनी मादक
वो ही नशा है,वो ही मज़ा है,तुझमे अब तक
तुझ पर अब तक हुआ उम्र का असर नहीं है
मेरी उम्र बाद गयी तो क्या ,नज़र  वही है
अब भी मुझको रात रात भर तू तद्फाती
तेरे खर्राटो से मुझको नीद न    आती

           

1 comment:

  1. ab bhi and tab bhi, actually jab bhi---your poems are delight to read.ha-ha-they leave on a naughty note.
    Renu.

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