Tuesday, December 28, 2010

आओ चैन से नींद ले

आओ चैन से नींद ले
रात के हर प्रहार
बढ़ता ही जा रहा है
कोहरे का कहर
कोहरा बे इमानी का ,
भ्रष्टाचार का
कोहरा आतंक का ,नक्सलवाद का
कोहरा महगाई का छा रहा है
सबको रुला रहा है
हम ये करेगे, हम वो करेगे
करेगे खाख, सिर्फ भाषण देंगे
सारे नेता आँख बंद किये बैठे है
हम भी आँखे मीन्द ले
आओ चैन से नींद ले
प्याज के छिल्को की तरह,
परत दर परत
खुलता ही जा रहा है,
भ्रष्टाचार का पिटारा
क्या करे आम आदमी बिचारा
होगा वो ही जो होना है
फिर काहे का रोना है
हमको कोई नहीं देख रहा है
यही सोच कर हम भी
रेत में मुह छुपा
शतुरमुर्ग के मानिंद ले
आओ चैन से नींद ले

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