Wednesday, December 21, 2011

अनिवासी भारतीय

 अनिवासी  भारतीय
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पहाड़,जंगल और गावों को लांघते हुए,
अपने देश की माटी की खुशबू से महकती नदियाँ,
रत्नाकर  की विशालता देख ,
उछलती कूदती ,ख़ुशी ख़ुशी,
समंदर में मिल तो जाती है
पर उन्हें जब,
अपने गाँव और देश की याद आती है,
तो उनकी आत्मा,
समंदर की लहरों की तरह,
बार बार उछल कर,
किनारे की माटी को,
छूने को छटपटाती है
पर जाने क्या विवशता है,
फिर से समुन्दर में विलीन हो जाती है
विदेशों में बसे,
अनिवासी भारतियों का मन भी,
कुछ इसी तरह लाचार है
जब की उन्हें भी,नदियों की तरह,
अपनी माटी से प्यार है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

(ब्राज़ील से यह रचना पोस्ट  कर रहा हूँ-
यहाँ बसे कुछ भारतियों की भावनाये प्रस्तुत करने की
कोशिश है )

Monday, December 19, 2011

रसोई घर-सबसे बड़ी पाठशाला

रसोई घर-सबसे बड़ी पाठशाला
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रसोईघर, सबसे बड़ी पाठशाला है
जहाँ,हर कदम आपको ज्ञान मिलता  निराला है
आपने ,ठीक से गर खाना बनाना सीख लिया
तो समझ लो,सारे जहाँ को जीत लिया
रोटी बनाने की कला,जिंदगी जीने की कला जैसी है  होती
क्योंकि आटे की और पानी की,
 होती है अलग अलग संस्कृती
जैसे सास बहू की या पति पत्नी की
 जब तक पानी  की संस्कृती का,
आटे की संस्कृती से,
सही अनुपात में,
सही ढंग से समावेश नहीं होता
आटा सही ढंग से नहीं गुन्धता है
कई बार जब पानी की संस्कृती ,
ज्यादा जोर मारती है
तो आटा गीला हो जाता है
और किये कराये पर पलीता फिर जाता है
आटा गुथने के बाद,
रोटी बेलना भी एक कला है
प्यार का पलेथन हो,
तो रोटी चकले से नहीं चिपकती
अनुशाशन के बेलन का दबाब,
यदि सब तरफ बराबर हो,
तो रोटियां गोल और समतल बिलती है
और ऐसी गोल रोटियां,फूलती भी अच्छी है
देखने और खाने में भी,बड़ी स्वाद होती है
अगर हम एक तरफ ज्यादा दबाब देंगे ,
और दूसरी  तरफ कम
तो रोटियां ,न तो गोल बनेगी,न फूलेंगी,
बस आपकी फूहड़ता का ही परिचय देंगी
गृहस्थी के गर्म तवे पर,
रोटियां सेकना भी,एक कला जैसी है
समुचित दबाब और हर तरफ बराबर सिकाई,
रोटी को अच्छा फुला देती है
और थोड़ी सी भी लापवाही,
आपके हाथों को,गरम तवे से,
चिपका  कर जला देती है
 जीवन की तरह,रसोईघर में भी,
कई मसाले होते है,
जिनकी सबकी प्रकृति  भिन्न भिन्न है 
कोई तीखा,कोई मीठा,कोई चटपटा या नमकीन है
सही अनुपात में ,सही ढंग से,
मसालों का इस्तेमाल
खाने को बना देता है लज़ीज़ और बेमिसाल
इसी तरह जीवन के रसों का ,सही समन्वय
जीवन को बनाता है,स्वादिष्ट और सुखमय
अगर आपको,आलू की तरह,
हर सब्जी के साथ मिलकर,
उसका स्वाद बढ़ने का आटा है हुनर
तो समझ लो ,गृहस्थी की पाकशाला में,
आपका वर्चस्व कायम रहेगा उम्र भर
और आपका घर ,
सुख और शांति से महकने वाला है
जीवन जीने की यही कला है,
और रसोईघर सबसे बड़ी पाठशाला है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Saturday, December 17, 2011

नहीं नामुमकिन कुछ भी

पूजना पाषाण का,पाषाण युग से चल रहा,
पुजते पुजते बन गए ,पाषाण भी है देवता
ये जो नदियाँ बह रही है ,पहाड़ो के बीच से,
चीर  कर पत्थर को पानी ने बनाया रास्ता
आदमी को कोशिशें ,करना निरंतर चाहिये,
रस्सियाँ भी पत्थरो पर ,बना देती है निशां
प्यार का अपने प्रदर्शन,करो तुम करते रहो,
एक दिन तो आप पर ,तकदीर होगी  मेहरबां
नहीं नामुमकिन है कुछ भी,अगर हो सच्ची लगन
आदमी की बाजुओं में ,हो अगर थोडा सा दम
समंदर के पानी पर जब धूप की पड़ती किरण
बादलों में बदल जाता,छोड़ देता खारापन

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Thursday, December 15, 2011

लगे उठने अब करोड़ों हाथ है

लगे उठने अब करोड़ों हाथ है
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करोड़ों  के पास खाने को नहीं,
                 और नेता करोड़ों में खेलते
झूंठे झूंठे वादों की बरसात कर,
                 करोड़ों की भावना से खेलते
करोड़ों की लूट,घोटाले कई,
                  करोड़ों स्विस बेंक में इनके जमा
पेट फिर भी इनका भरता ही नहीं,
                 लूटने का दौर अब भी ना थमा
  सह लिया है बहुत,अब विद्रोह के,
                  लगे उठने अब करोड़ों हाथ है
क्रांति का तुमने बजाय है बिगुल,
                 करोड़ों, अन्ना,तुम्हारे साथ है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'   

Wednesday, December 14, 2011

शिकवा-शिकायत

शिकवा-शिकायत
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देख कर अपने पति की बेरुखी,
                   करी पत्नी ने शिकायत इस तरह
हम से अच्छे तुम्हारे 'डॉग' है,
                  घुमाते हो संग जिनको हर सुबह
गाजरों का अगर हलवा चाहिये,
                   गाजरों को पहले किस करना पड़े,
इन तुम्हारे गोभियों के फूल से,
                   भला गुलदस्ता सजेगा किस तरह
सर्दियों में जो अगर हो नहाना,
                    बाल्टी में गर्म पानी चाहिये,
छत पे जाने का तुम्हारा मन नहीं,
                   धूप में तन फिर सिकेगा किस तरह
झिझकते हो मिलाने में भी नज़र,
                    और करना चाहते हो आशिकी,
ये नहीं है सेज केवल फूल की,
                    मिलते पत्थर भी है मजनू की तरह
तड़फते रहते हो यूं किस के लिए,
                   होंश उड़ जाते है किस को देख कर,
किसलिए फिर अब तलक ना 'किस' लिए,
                  प्यार होता है भला क्या इस तरह
कर रखी है बंद सारी बत्तियां ,
                  चाहते हो चाँद को तुम देखना,
छूटती तुमसे रजाई ही नहीं,
                   चाँद का दीदार होगा किस तरह

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

बदनसीबी

        बदनसीबी
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मुफलिसी की मार कुछ ऐसी पड़ी,
               भूख से बदहाल था सारा बदन
सोचा जाए,धूप खायें,बैठ कर,
               कुछ तो खाया,सोच कर बहलेगा मन
बेमुरव्वत सूर्य भी उस रोज तो,
               देख कर आँखें चुराने लग गया
छुप गया वो बादलों की ओट में,
                बेरुखी ऐसी  दिखाने लग गया   
फिर ये सोचा,हवायें ही खाए हम,
                गरम ना तो चलो ठंडी ही सही
देख हमको वृक्ष ,पत्ते,थम गए,
                 आस खाने की हवा भी ना रही
बहुत ढूँढा,कुछ न खाने को मिला,
                 यही था तकदीर में ,गम खा लिया
प्यास से था हलक सूखा पड़ा ,
                 आसुओं को पिया,मन बहला लिया

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Tuesday, December 13, 2011

,फेंका जो पत्थर तो हमने फल दिये

आपने हमको बुलाया,आगये,आपने दुत्कार दी,हम चल दिये
हम तो है वो पेड़ जिस पर आपने,फेंका जो पत्थर तो हमने फल दिये
फलो,फूलो ,और हरदम खुश रहो,हमने आशीर्वाद ये हर पल दिये
भले ही हमको सताया,तंग किया,भृकुटियों पर नहीं हमने बल दिये
सीख चलना,थाम उंगली हमारी,अंगूठा हमको दिखा कर चल दिये
क्या पता था कि ढकेंगे उसी को ,सूर्य ने तप कर के जो बादल दिये
जब तलक था तेल हम जलते रहे,दूर अंधियारे सभी ,जल जल किये
हमको ये संतोष है कि आपने,हमको खुशियों के कभी दो पल दिये

मदन मोहन बाहेती'घोटू'



मैंने तो अपने इस घर में---,

मैंने तो अपने इस घर में---,
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मैंने तो अपने इस घर में,जाने क्या क्या क्या ना देखा
खुशियों को भी हँसता देखा,तन्हाई को बसता देखा 
उगते सूरज की किरणों से,मेरा घर रोशन होता था
फिर दोपहरी में धूप भरा,सारा घर आँगन होता था  
बगिया में खिलते फूलों की ,खुशबू इसको महकाती थी
हर सुबह पंछियों के कलरव की चहक इसे चहकाती थी
आती थी रोज रसोई से,सोंधी खुशबू पकवानों की
रौनक सी रहती थी हरदम,आते जाते मेहमानों की
उंगली पकडे ,नन्ही पोती,जाती थी स्कूल ,ले बस्ता
फिर नन्हा सा पोता आया,महका घर का ये गुलदस्ता
नन्हे मुस्काते बच्चों की,मीठी बातें,चंचल चंचल
उनकी प्यारी प्यारी जिद्दें,नन्हे क़दमों की चहल पहल
वो दिन कितने मनभावन थे,सुख शांति  से हमने जीये
होली पर रंग बिखरते थे,दीवाली पर जलते दीये
लेकिन फिर इसी नज़र लगी,क्या हुआ किसे,क्या बतलाये
जिस जगह गुलाब महकते थे,केक्टस के कांटे उग  आये
वो प्यार मोहब्बत की खुशबू,नफरत में आकर बदल गयी
हो गयी ख़ुशी सब छिन्न भिन्न,मेरी दुनिया ही बदल गयी
कुछ गलतफहमियां ,बहम और कुछ अहम आ गए हर मन में
अलगाववाद की दीवारें, आ खड़ी हो गयी आँगन में
हो गए अलग ,दिल के टुकड़े,जीवन में और बचा क्या था
जिस घर में रौनक रहती थी,वो सूना  सूना लगता था
उस घर के हर कोने,आँगन में,याद पुरानी बसती थी 
देखें फिर से ,रौनक,मस्ती,ये आँखें बहुत तरसती थी
दो चार बरस तन्हाई में,बस काट दिये  सहमे सहमे
मन मुश्किल से लगता था उस सूने सूने से घर में
तन्हाई देने लगी चुभन,और मन में बसने लगी पीड़
वह नीड़ छोड़ कर मैंने भी ,फिर बसा लिया निज नया नीड़
जब धीरज भी दे गया दगा,आशाओं ने दिल तोड़ दिया
थी घुटन,बहुत भारी मन से,मैंने अपना घर छोड़ दिया
देखी फूलों की मुस्काने, फिर पतझड़ भी होता देखा
मैंने तो अपने उस घर में,जाने क्या क्या क्या ना देखा

मदन मोहन बाहेती'घोटू;'

Monday, December 12, 2011

पत्थरों के दिल पिघल ही जायेगे

पत्थरों के दिल पिघल ही जायेगे
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छोड़ नफरत,बीज बोओ प्यार के,
चमन में कुछ फूल खिल ही जायेगे
पत्थरों के कालेजों में मोम के,
चंद कतरे तुम्हे मिल ही जायेंगे
समर्पण की सुई,धागा प्रेम का,
फटे रिश्ते,कुछ तो सिल ही जायेंगे
अगर कोशिश में तुम्हारी जोर है,,
कलेजे हों सख्त,हिल ही जायेगे 
यग्य  का फल मिलेगा जजमान को,
आहुति में फेंके तिल ही जायेंगे
बेवफा तुम और हम है बावफा,
इस तरह तो टूट दिल ही जायेंगे
अगर पत्थर फेंकियेगा कीच में,
चंद  छींटे तुम्हे मिल ही जायेंगे
करके देखो नेता की आलोचना,
कई चमचे,तुम पे पिल ही जायेगे
कोई भी हो देश कोई भी शहर,
एक दो सरदार मिल ही जायेंगे
अगर कोशिश में तुम्हारी है कशिश,
पत्थरों के दिल पिघल ही जायेंगे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 

थोड़ी सी तुम भी पहल करो

थोड़ी सी तुम भी पहल करो
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शृंगार
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यह मधुर मिलन की प्रथम रात,ऐसे ही बीत नहीं जाये
तुम्हारे मधुर अधर का रस,मै पी न सकूँ,मन ललचाये
ये झिझक निगोड़ी ना जाने,क्यों खड़ी बीच में बन बाधा
चन्दा सा मुखड़ा घूंघट से,बस दिखता है आधा आधा
जो ललक ह्रदय में है मेरे,तुम्हारे मन में भी होगी
तुमको छू  लूं ,मन करे,झिझक,तुम्हारे मन में भी होगी
यदि ये सब यूं ही बना रहा,तो कैसे होगा मधुर मिलन
जाने फिर कैसे टूटेंगे,ये शर्मो हया के सब बंधन
जब मेहंदी लगे हाथ की ही,छुवन है इतनी उन्मादक
जब तन तुम्हारा छू लूँगा,तो क्या होगी मेरी हालत
तुम्हारे चन्दन से तन की,है खुशबू ने बेचैन करा
मन में उमंग,तन में तरंग,है अंग अंग में जोश भरा
तुम मौन सिमट कर बैठी हो,मै भी कुछ शरमाया सा हूँ
कैसी होगी प्रतिक्रियाये,तुम्हारी,घबराया सा हूँ
ये मन बेचैन मचलता है,इसको मत ज्यादा विकल करो
मै भी थोड़ी सी पहल करूं,तुम भी थोड़ी सी पहल करो

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

ग़ज़ल-प्यार की

ग़ज़ल-प्यार की
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भावना में ज्वार होना चाहिये
तब किसी से प्यार होना चाहिये
ये नहीं वो चीज जो बंटती फिरे,
एक से ,एक बार होना चाहिये
जिधर भी जाए तुम्हारी  ये नज़र,
यार का दीदार होना  चाहिये
बुढ़ापा हो या जवानी उम्र की,
ना कोई दीवार होना चाहिये
एक दूजे के लिए ही है बने,
सोच ये हर बार होना चाहिये
आग जब दोनों तरफ ही हो लगी,
समर्पण,अभिसार होना चाहिये
महोब्बत के फूल खिलते ही रहें,
जिंदगी गुलजार होना  चाहिये
चाहे डूबो या रहो तुम तैरते,
रस भरा संसार होना चाहिये
प्यार का लम्बा चलेगा ये सफ़र,
आपसी एतबार होना चाहिये

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

हे जगदीश ,चतुर्भुज धारी

हे जगदीश ,चतुर्भुज धारी
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हे जगदीश,चतुर्भुजधारी,
आपका ये रूप ,अनूप है
औउर बड़ी प्रेरणा दायक  है,
ये छवि तुम्हारी
आप जो हाथों में धारण किये हुए है,
शंख,चक्र,गदा और पद्म
जीवन की राजनीती में,
सफलता के है ये ही मूल मन्त्र
सबसे पहले शंख बजाओ
अपनी उपस्तिथि का अहसास कराओ
जितनी बुलंद आप जन जन तक पहुँचाओगे
आप उतनी ही बुलंदी तक पहुँच पाओगे
और फिर जरुरत पड़ने पर,
अपने विपक्षी पर,
अपने दूसरे हाथ में धारण किया हुआ,
चलाओ चक्कर (चक्र)
ये चक्र बड़ा शक्तिशाली है
और शिशुपाल जैसे विरोधी,
जो देते तुम्हे गाली है
उनकी गर्दन काट देता है,
जब ये चल जाता है
और 'गज' जैसे भक्तों को,
'ग्राह' से बचाता है
और फिर भी यदि आवश्यकता पड़े
हाथ में गदा लेकर हो जाओ खड़े
ये गदा,
शक्तिशाली रही है सदा
त्रेता युग में ये हनुमान जी के हाथ थी
और द्वापर में भीम के पास थी
और राम रावण युद्ध और महाभारत में,
इसकी भूमिका खास थी
बस एक बार लहरा दो
अपनी कीर्ति ध्वजा फहरा दो
और फिर सफल्रा चूमेगी आपके कदम
और आपके हाथों में होगा पदम
पद्म याने कमल,प्रतीक है सम्पन्नता का
कोमलता का,सुन्दरता का और सफलता का
इसकी महिमा सर्वत्र है
इस पर लक्ष्मी जी विराजती है,
सुख समृद्धि का ये ही मूल मन्त्र है
यदि आपके हाथ में शंख,चक्र और गदा है
तो समझो,पद्म भी सदा है
और उस पर लक्ष्मी जी भी निवास करेगी
और जनता आपकी जय जय कार करेगी
प्रभु, आपके इस चतुर्भुज रूप से प्रेरणा पाकर,
हम सब आपके ऋणी है
अब हमारी समझ में आ गया,
कि आपके पुरुष पुरातन होते हुए भी,
लक्ष्मी जी ,क्यों आपकी वामंगिनी है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

 

एक थैली के चट्टे बट्टे

एक थैली के चट्टे बट्टे
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बी जे पी हो या कांग्रेस
ये सब के सब है एक जैस
सब दल जनता को भरमाते,
है बदल बदल कर अलग भेष
मन बहलाते इनके वादे,
भाषण लम्बे लम्बे
पर हमने देखा ये सब है,
एक बेल के तुम्बे
सत्ता मिलते ही ये देखा,
सब करते है ऐश
बी जे पी हो या कांग्रेस
ये कर देंगे,वो कर देंगे,
दिखलाते है ख्वाब
रंग बदलने में ये सब है,
गिरगिट के भी बाप
रंग बिरंगी टोपी,झंडे,
रंग बिरंगी ड्रेस
बी जे पी हो या कांग्रेस
सभी बढ़ाते है मंहगाई,
सब चीजों के भाव
एक गली में भों भों करते,
जब होता टकराव
पर खुद का मतलब होने पर,
हो जाते है एक
बी जे पी हो या कांग्रेस
एक थैली के चट्टे बट्टे,
कुछ है नाग,संपोले
इस हमाम में सब नंगे है,
अब किसको क्या बोलें
नेताओं ने लूट लूट कर,
किया खोखला देश
बी जे पी हो या कांग्रेस
ये सब के सब है एक जैस

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Tuesday, December 6, 2011

हुंकार

                        हुंकार
                      ---------
हम भी थोड़ी सी पहल करें,तुम भी थोड़ी सी पहल करो
यदि परिवर्तन लाना है तो,क्रांति ध्वज लेकर  निकल पड़ो
अब अर्थ व्यवस्था पिछड़ी है,क़ानून व्यवस्था बिगड़ी है
प्रगति की गति हुई क्षीण,कुछ चाल हो गयी लंगड़ी है
मंहगाई सुरसा के जैसी,नित है अपना मुख बढ़ा रही
हो रहे त्रस्त,सब अस्त व्यस्त,जीवन की गति गड़बड़ा रही
सत्ता सुंदरी के मोहपाश में कुछ एसा आकर्षण है
स्केमो,फर्जिवाड़ो में ,हो रहे लिप्त नेता गण है
सब मनोवृत्तियां कुंठित है,हो रहा प्रशासन खंडित है
जिनने चुन कर सत्ता सौंपी ,वो जनता होती दण्डित है
हमको आपस में लड़ा भिड़ा,नेता निज रोटी सेक रहे
हम बने मूक दर्शक केवल,ये खेल घिनोना देख रहे
हम मौन ,शांत और बेबस से,क्यों सहन कर रहे उत्पीडन
अधिकारों का हो रहा हनन,क्यों स्वाभिमान कर रहा शयन
क्यों पड़े हुए हम लुंज पुंज,क्यों पौरुष पड़ा हुआ है मृत
यह समय नहीं है सोने का,होना होगा हमको जागृत
ये भ्रष्टाचार हटाना है,ये बन्दर बाँट मिटानी है
सत्ता के चंद दलालों की, हमने कुर्सी खिसकानी है
कर लिया सहन है बहुत दलन,अब आन्दोलन करना होगा
आमूल चूल परिवर्तन का,अब हमको प्रण करना होगा
आओ अपना बल दिखला दो ,सब के सब  मिल कर उबल  पड़ो
  हम भी थोड़ी सी पहल करें,तुम भी थोड़ी सी पहल करो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'












Sunday, December 4, 2011

कभी धूप-कभी छाँव

कभी धूप-कभी छाँव
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कभी छाँव है,कभी धूप है
जीवन का ये ही स्वरूप है
पग पग हमें दिग्भ्रमित करती,
मृग तृष्णा ये तो अनूप है
कभी गेंद से टप्पा खाते,
छूकर धरा ,पुनह उठ जाते
कभी  सहारा लिए डोर का,
बन पतंग ऊपर लहराते
कभी हवा के रुख के संग हम,
सूखे पत्ते से उड़ते है
कभी जुदाई की पीड़ा है,
कभी नये रिश्ते जुड़ते है
इस जीवन में,हर एक क्षण में,
होते अनुभव खट्टे,मीठे
फेंका कीचड में जो पत्थर,
तो तुम तक  आते हैं छींटे
कभी फूल है,कांटे भी है,
कोई भिखारी, कोई भूप है
जीवन का ये ही स्वरुप है,
कभी छाँव है ,कभी धूप है
तुमने जिसकी ऊँगली थामी,
नहीं जरूरी,राह दिखाये
अक्सर लेते पकड़ कलाई,
ऊँगली तुम थे,जिन्हें थमाये
सबके अपने अपने मतलब ,
कोई किस पर करे भरोसा
पहरेदार ,लूटते है घर,
अपने ही दे जाते धोका
जीवन वही सफल कर पाता,
जो अपने बल पर जीता है
नहीं गरल देता दूजों को,
वो जीवन अमृत पीता है
इस जीवन की थाह नहीं है,
यह तो गहरा,एक कूप है
कभी छाँव है,कभी धूप है,
जीवन का ये ही स्वरुप है
 मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

तुम भी स्वतंत्र,हम भी स्वतंत्र

तुम भी स्वतंत्र,हम भी स्वतंत्र
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तुम भी  स्वतंत्र,हम भी स्वतंत्र
भैया ये    तो  है    प्रजातंत्र
अपने अपने ढंग से जीयो,
सुख शांति का है यही मन्त्र
तुम वही करो जो तुम चाहो,
हम वही करे ,जो हम चाहे 
फिर इक दूजे के कामो में,
हम टांग भला क्यों अटकाएं
जब अलग अलग अपने रस्ते,
तो आपस में क्यों हो भिडंत
तुम भी स्वतंत्र,हम भी स्वतंत्र
तुम गतिवान खरगोश और,
हम मंथर गति चलते कछुवे
तुम  प्रगतिशील हो नवयुगीन,
हम परम्परा के पिछ्लगुवे
हम है दो उलटी धारायें,
तुम तेज बहो,हम बहे मंद
तुम भी स्वतंत्र,हम भी स्वतंत्र
तुम नव सरिता से उच्श्रंखल ,
हम स्थिर, भरे सरोवर से
तुम उड़ते बादल से चंचल,
हम ठहरे है,नीलाम्बर से
है भिन्न भिन्न प्रकृति अपनी,
हम दोनों का है भिन्न  पंथ
हम भी स्वतंत्र,तुम भी स्वतंत्र
फिर आपस में क्यों हो भिडंत

मदन मोहन बहेती'घोटू'





Saturday, December 3, 2011

जैसे जैसे दिन ढलता है------

जैसे जैसे दिन ढलता है------
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जैसे जैसे दिन ढलता है ,परछाई लम्बी होती है
जब दीपक बुझने को होता,बढ़ जाती उसकी ज्योति है
सूरज जब उगता या ढलता,
                            उसमे होती है शीतलता
इसीलिए वो खुद से ज्यादा,
                             साये को है लम्बा करता
और जब सूरज सर पर चढ़ता,
                              उसका अहम् बहुत बढ़ता है
दोपहरी के प्रखर तेज के,
                               भय से  साया भी  डरता है
परछाई बेबस होती  है,और डर कर  छोटी होती है
जैसे जैसे दिन ढलता है,परछाई लम्बी होती है
आसमान में ऊँची उड़ कर,
                               कई पतंगें इठलाती है
मगर डोर है हाथ और के,
                            वो ये बात भूल  जाती है
उनके  इतने ऊपर उठने ,
                            में कितना सहयोग हवा का
जब तक मौसम मेहरबान है,
                            लहराती है विजय पताका
कब रुख बदले हवा,जाय गिर,इसकी सुधि नहीं होती है
जैसे जैसे दिन ढलता है,परछाई लम्बी होती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Friday, December 2, 2011

औरतें ,फूल जैसी होती है

औरतें ,फूल जैसी होती है
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औरतें फूलों की तरह होती है,
कभी जूही सी नाजुक,
कभी चमेली सी अलबेली,
कभी मोगरे सी मादक,
कभी गेंदे सी गठीली,
कभी गुलाब की रंगत लिए महकती,
मगर  कांटे वाली डालियों पर पलती,
सबकी अपनी अपनी खुशबू होती है
और जब शबाब पर होती है,
मादक महक फैलाती है
सबको लुभाती है
पर जब किसी देवता पर चढ़ जाती है
तो  सूरजमुखी की तरह,
सिर्फ अपने उसी देव,
सूरज को निहारती है
उसी पर सारा प्यार बरसाती है
और अपने बीजों को,
स्निग्धता से सरसाती है
और फिर बड़ी होकर,
गोभी के फूल की तरह,
सिर्फ खाने पकाने के काम में आती है
पहले भी फूल थी,
और फूल अब भी कहलाती है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Wednesday, November 30, 2011

तो समझ लो आ गयी है सर्दियाँ

तो समझ लो आ गयी है सर्दियाँ
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बदन ठिठुराती हवा चलने लगे
और सूरज जल्द ही ढलने  लगे
छुओ पानी,तो बदन गलने  लगे
प्रियतमा की जुदाई  खलने लगे
वक़्त की रफ़्तार कुछ थमने लगे
तेल नारियल का अगर  जमने लगे
शाम होते धुंधलका छाने लगे
कोहरा भी कहर  बरपाने लगे
ठण्ड बाहर निकलना मुश्किल करे
रजाई में दुबकने को दिल करे
मन करे,लें जलेबी का जायका
साथ में हो गरम प्याला चाय का
गर्म तलते पकोड़े,ललचाये मन
गाजरों का गर्म हलवा खायें हम
शाल ,स्वेटर से सुनहरा तन ढके
धूप में तन सेकना अच्छा  लगे
तेल की मालिश कराओ  लेट कर
मुंगफलियाँ गरम खाओ, सेक कर
लगे जलने गर्म हीटर,सिगड़ीयां
तो समझ लो,आ गयी है सर्दियाँ

मदन मोहन बहेती'घोटू'

मै-घोटू

मै-घोटू
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घोटू हूँ,घोट मोट ,घोट घोट खूब पढ़ा ,
      बड़ा हुआ,घाट घाट का पिया  पानी है
प्रेम किया घट घट से,गौरी के घूंघट से,
       घूँट घूँट रस पीकर, काटी   जवानी है
घटी कई घटनायें,पर घुटने ना टेके,
       कभी लाभ  कभी घाटा,ये ही जिंदगानी है   
घाटा बढ़ा कद मेरा,घुटन ने भी आ घेरा,
      घुट घुट कर जिंदगानी ,यूं ही  बितानी है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Monday, November 28, 2011

विरोधाभास

विरोधाभास
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तैलीय पदार्थ,जैसे अखरोट,तिल,आदि,
और तले हुए नमकीन,
जब पुराने पड़ जाते है,
उन पर तेल चढ़ जाता है
उनका स्वाद बिगड़ जाता है
कोई नहीं खाता है 
इसके विपरीत,
जब किसी की शादी होती है,
तो एसा रिवाज है,
कि शादी के पहले,
दूल्हा या दुल्हन पर तेल चढ़ाया जाता है
कहते है कि एसा करने पर,
उनके रूप में निखार आता है
पर ये विरोधाभास है,
जो मेरी समझ में नहीं आता है

घोटू

Sunday, November 27, 2011

याद आती है हमें वो सर्दियाँ....

याद आती है हमें वो सर्दियाँ....
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गर्म गुड के गुलगुलों के दिन गये
बाजरे के  खीचडों  के  दिन गये
अब तो पिज़ा और नूडल चाहिये,
हाथ वाले  सिवैयों के   दिन गये
सर्दियों में आजकल हीटर जलें,
संग तपते अलावों के दिन गये
तीज और त्योंहार पर होटल चले,
पूरी  ,पुआ ,पुलाओं के  दिन गये
बिना चुपड़ी तवे की दो चपाती,
आलुओं के परांठों के दिन गये
गरम रस की खीर या फिर लापसी,
उँगलियों से चाटने के दिन गये
बैठ छत पर तेल की मालिश करे,
धूप में तन तापने के दिन गये
बढ न क्लोरोस्टाल जाये,डर कर इसलिए,
जलेबियाँ उड़ाने के दिन गये
गरम हलवा गाजरों का याद है,
रेवड़ियाँ चबाने के दिन गये
धूप  खाती थी पड़ोसन छतों पर,
उनसे नज़रें मिलाने के दिन गये
याद आती है हमें वो सर्दियाँ,
वो मज़ा अब उड़ाने के दिन गये

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

ग़ज़ल -- तकियों के क्या करें दोस्ती.......

         ग़ज़ल
तकियों के क्या करें दोस्ती.......
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तकियों से क्या करें दोस्ती,आये पास सुला देतें है
शीशे के प्याले अच्छे है,भर कर जाम,पिला देते है
बहुत मुश्किलें,जीवनपथ पर,पत्थर,कंकर है,कांटे है,
पर जूते है सच्चे साथी,रास्ता पार करा देते है
एक बार जो तप जाए तो,बहुत उबाल दूध में आता,
लेकिन चंद दही के कतरे,सारा दूध जमा देते है
अरे इश्क करने वालों का,ये तो है दस्तूर पुराना,
मालुम है कलाई थामेंगे,बस ऊँगली पकड़ा देते है
दो बुल (bull )अगर प्यार से मिलते,बन जाते नाज़ुक बुलबुल से,
चार प्यार के बोल तुम्हारे,पत्थर भी पिघला देते है
सुना केंकड़ों की बस्ती में,यदि कोई ऊपर उठता है,
कई केंकड़े टांग खींच कर,नीचे उसे गिरा देते है
मारो अगर  किसी हस्ती को,पब्लिक में जूता या थप्पड़,
ब्रेकिंग न्यूज़ ,मिडिया वाले,हीरो तुम्हे बना देते है
यही नियम होता प्रकृति का,कि चिड़िया के बच्चे बढ़  कर ,
उड़ना  सीख,अधिकतर देखा,अपना नीड़ बना लेते है
सुनते धरम,दान,पूजा से,अगला जनम सुधर जाएगा,
इस चक्कर में कई लोग ये,जीवन यूं ही गवां देते है
जीवन चुस्की एक बरफ की,समझदार कुछ खाने वाले,
चूस चूस कर,घूँट घूँट कर,इसका बड़ा मज़ा लेते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Saturday, November 26, 2011

अनकही बातें--खर्राटे

अनकही बातें--खर्राटे
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रजनी की नीरवता में स्तब्ध मौन  सब
और नींद से बेसुध सी तुम, सोयी रहती  तब
तुम्हारे नथुनों से लय मय  तान निकलती
कैसे कह दूं कि तुम हो खर्राटे    भरती
दिल के कुछ अरमान पूर्ण जो ना हो पाते
वो रातों में है सपने बन कर के आते
उसी तरह  बातें जो दिन भर  ना कह पाती
तुम्हारे  खर्राटे बन कर  बाहर  आती
बातों का अम्बार दबा जो मन के अन्दर
मौका मिलते उमड़ उमड़ आता है बाहर
  'फास्ट ट्रेक 'से
जल्दी बाहर आती बातें
साफ़ सुनाई ना देती, लगती खर्राटे
दिन  की सारी घुटन निकल बाहर आती है
मन होता है शांत,नींद गहरी आती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Thursday, November 24, 2011

छा रहा इस देश पर कोहरा घना है

दिख हर आदमी कुछ अनमना है
छा रहा इस देश पर कोहरा घना है
व्यवस्थाएं देश की बिगड़ी पड़ी है
जिधर देखो,गड़बड़ी ही गड़बड़ी है
लूट कर के देश नेता भर रहे घर
बेईमानी और रिश्वत को लगे  पर
कोष का हर द्वार चाटा  दीमकों ने
नींव कुरदी,देश की कुछ मूषकों ने
दीवारें इस दुर्ग की पोली पड़ी है
कभी भी गिर पड़ेगी,ऐसे  खड़ी है
लग गया घुन बेईमानी का सभी को
देश सारा खोखला सा है तभी तो
हो गए हालात कुछ ऐसे बदलते
रत्न गर्भा धरा से  पत्थर निकलते
स्वर्ण चिड़िया कहाता था देश मेरे
कर लिया है उल्लूओं ने अब बसेरा
ढक लिया है सूर्य को कुछ बादलों ने
बहुत दल दल दिया फैला कुछ दलों ने
समझ ना आये हुई क्या गड़बड़ी है
लहलहाती फसल थी,उजड़ी पड़ी है
परेशां हर आदमी आता नज़र है
हो रहे इलाज सारे बेअसर  है
पतंगों की तरह बढ़ते दाम हर दिन
और सांसत में फसी है जान हर दिन
हो रहे निर्लिप्त सब इस खेल में है
थे कभी राजा,गए अब जेल में है
दिख रहा ईमान अब दम तोड़ता है
साधने को स्वार्थ हर एक दोड़ता है
त्रसित हर जन,कुलबुलाहट हो रही है
क्रांति  की अब सुगबुगाहट  हो रही है
देश ऐसी स्तिथि में आ खड़ा है
धुवाँ सा है,आग पर पर्दा   पड़ा  है
और भीतर से सुलगता  हर जना है
छा रहा इस देश पर कोहरा  घना है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Wednesday, November 23, 2011

राजनीति-सेवा या मेवा

राजनीति-सेवा या मेवा
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एक नेताजी थे काफी खुर्राट
हमने कहा, सिखा दो हमें भी राजनीति का पाठ
कैसे कर जनता की सेवा
मिले हमें खाने को मेवा
नेताजी मुस्कराए और बोले,
तुमने मेवों की बात कही है सो है ठीक
राजनीति का पहला पाठ,
मेवों   से ही तुम लो सीख
मेवे तीन प्रकार के पाए जाते है
पहले प्रकार के मेवे ,बहार से सख्त ,
और भीतर से नरम होते है,
और इस श्रेणी में ,बादाम और अखरोट आते है
राजनीति में भी कुछ लोग ऐसे मिलते है
जो बाहर से अखरोट की तरह सख्त दिखते है
अखरोट खाने का सब से अच्छा तरीका है
एक अखरोट को दुसरे अखरोट से टकराओ
उनमे से एक टूट जाएगा,
और आप मजे से गिरी खाओ
इसी तरह मैंने कई ओपोजिशन के अखरोटों को टकराया है
और प्रेम से गिरी का मज़ा उठाया है
और दुसरे किस्म का मेवा,
किशमिश,अंजीर जैसा पाया जाता है
जिसे वैसा का वैसा ही खाया जाता है
आम आदमी जैसी पकी हुई अंजीरों को,
आश्वासनों की रस्सी में पिरो कर,
माला बना कर सुखाया जाता है
और चुनाव के समय प्रेम से खाया जाता है
कुछ अंगूरों से तो मदिरा बना कर,
सत्ता की मस्ती का मज़ा लूटते है
और बाकी दूसरी किस्म के अंगूर जो छूटते है
उन्हें सुखा कर किशमिश बनाई जाती है
जो कई मौको प्रसाद स्वरुप चढ़ाई जाती है
तीसरे किस्म का मेवा खुबानी जैसा होता है
जो बाहर से नरम ,भीतर से कठोर होता है
पार्टी के हाईकमांड की तरह,
बाहर की परत पर ,मीठी मीठी बातें तमाम होती है
पर अन्दर की गुठली,बड़ी सख्त जान होती है
और हम जैसे अनुभवी नेताओं को ही ये मालुम है
की इस सख्त गुठली के अन्दर क्या गुण है
इस सख्त गुठली के अन्दर बादाम सी गिरी होती है
जैसे सीप में मोती है
पर उस गुठली से बादाम निकालना भी एक कला है
इसे जो जानता है,होता उसी का भला है
अब तो तुम समझ गए होगे कि राजनीति क्या है
सेवा के मेवा में कितना मज़ा है

मदन मोहन बाहती'घोटू'

तुम बड़ी तेज हो

तुम बड़ी तेज हो
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तुम बड़ी तेज हो
एक दम अंग्रेज हो
गोरी काया अंगरेजों सी,और राज करने का जज्बा
पहले उंगली पकड़ी मेरी और किया फिर दिल पर कब्ज़ा
एक दूसरे को लड़वा कर ,कायम करली अपनी सत्ता
कूटनीति की चालें खेली,रख कर पास तुरुप का पत्ता
 करती हो साकार कहानी,दो बिल्ली एक बन्दर वाली
दिखा,बराबर बाँट रही हूँ,सारी रोटी खुद ही  खा ली
घर के  सभी माल-मत्ते को ,रखती स्वयं सहेज हो
                                         तुम बड़ी तेज हो
                                          एक दम अंग्रेज हो
गाल गुलाबी है तुम्हारे,और आँखें है काली काली
तुम्हारे होठों की रंगत,लाल लाल है और मतवाली
पीत वर्ण की स्वर्णिम आभा लिए तुम्हारी कंचन काया
ओढ़ रंगीन चुनरिया प्यारी,तुमने अपना रूप सजाया
तुम  रंगीन मिजाज़ बड़ा ही,मनमोहक है रूप निराला
मै तो था कोरे कपड़े सा,तुमने निज रंग में रंग डाला
अपने रंग में मुझे रंग लिया ,वो प्यारी रंगरेज हो
                                               तुम बड़ी तेज हो
                                               एक दम रंगरेज हो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

मनाते खुशियाँ रहो तुम जियो जब तक

मनाते खुशियाँ रहो तुम जियो जब तक
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दर्द का क्या भरोसा,आ जाय जब तब
मनाते खुशियाँ रहो तुम जियो जब तक
है बड़ी अनबूझ  ये जीवन पहेली
है कभी दुश्मन कभी सच्ची सहेली
बांटती खुशियाँ,कभी सबको हंसाती
कभी पीड़ा,दर्द के  आंसू रुलाती
क्या पता कब मौत आ दे जाय दस्तक
मनाते खुशियाँ रहो तुम जियो जब तक
आसमां में जब घुमड़ कर मेघ छाते
नीर बरसा प्यास धरती की बुझाते
तो गिराते बिजलियाँ भी है कहीं पर
धूप,छाँव,सर्द ,गर्मी,सब यहीं पर
कौन जाने,कौन मौसम ,रहे कब तक
मनाते खुशियाँ रहो ,तुम जियो जब तक
कभी शीतल पवन जो मन को लुभाती
वही लू के थपेड़े बन है तपाती
धूप सर्दी में सुहाती बहुत मन को
वही गर्मी में जला देती बदन को
कौन का व्यहवार ,जाए बदल कब तक
मनाते खुशियाँ रहो तुम जियो जब तक

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Tuesday, November 22, 2011

मौसम में बदलाव आ गया

मौसम में बदलाव आ गया
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पहले सड़कों पर, ठेलों पर,आम भरे होते थे पीले
उनकी जगह नज़र आते है,एपल लाल लाल ,चमकीले
सोंधी सी खुशबू महकाते,ठेले गरम मूंगफली वाले
गज़क ,रेवड़ी भर कर सजते,जगह जगह स्टाल  निराले
रस में  डूबी गरम जलेबी,दिखलाती है अपना जलवा
मन को मोहित कर देता है,गरम गरम गाजर का हलवा
गोभी,आलू भरे   परांठे ,रोज रोज मन चाहे खाना
गरम गरम मक्की की रोटी,और सरसों का साग सुहाना
पीयें गरम चाय और कोफ़ी ,बार बार हम ,मन ये करता
मौसम खाने पीने वाला आया, जल्दी खाना  पचता
खुले खुले से तन को ढकते,सुन्दर शाल,कार्डिगन,स्वेटर
शाम हुई,तो आसमान को ,ढक लेती कोहरे की चादर
मन करता है तेज धूप में,,सूरज की ,बैठें,तन सेकें
और रात दुबके बिस्तर में,तन पर गरम रजाई ले के
बच्चे लिए ,उनींदी आँखें,लाद किताबों वाला बस्ता
सपना लिए बड़ा बनने का, नाप रहे स्कूल का रस्ता
थर थर थर तन काँप रहा है,कहर बहुत सर्दी ने ढाया
बिरहन जोहे  बाट पिया की,मधुर मिलन का मौसम आया
अपने प्रियतम से मिलने का,मन में मीता चाव आ गया
मौसम में बदलाव  आ गया

 

 

बदलता हुआ मौसम और तुम

बदलता हुआ मौसम और तुम
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उन दिनों आम का मौसम था,
जब गर्मी से,कुम्हला गए थे गाल तुम्हारे ,
और उनकी रंगत हो गयी थी,
आम जैसी पीली पीली और स्वर्णिम
अब सेवों का मौसम आगया है,
और अब सर्द हवाओं की छेड़छाड़ ने,
तुम्हारे गालों में भर दिया है,
गुलाबी रंग,
और अब तुम्हारे गालों की रंगत है,
सेव जैसी लाल लाल और रक्तिम
मौसमी फलों की तरह,
तुम भी रंग बदलती रहती हो,
गर्मी में गरम लू के थपेड़ों की तरह,
तो सर्दी में शीतल  हवाओं की तरह बहती हो
मेरी हमदम,
नया स्वाद और नूतन रंगत,
मौसम के संग,तुममे हर दम

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Monday, November 21, 2011

आओ मम्मी ,पापा खेलें

आओ मम्मी ,पापा खेलें
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बहुत बोर हो गए अकेले
आओ मम्मी पापा खेलें
रोज सवेरे तुम सजधज कर
बेठ कर में जाओ दफ्तर
और शाम को जब घर आओ
ब्रीफकेस भर पैसे लाओ
मै क्लब,किट्टी पार्टी जाऊं
नए नए गहने बनवाऊ
रोज घूमने बाहर जाये
पिक्चर देखें,पीजा खायें
अरे नहीं ये खेल पुराना
अब तो आया नया ज़माना
डेली ब्रीफकेस भर पैसा
है ये खेल बड़े खतरे का
बहुत खेल ये हमने खेले
आओ नेता नेता खेले
मै  नेता बन, बनू मिनिस्टर
दुनिया घूमू,तुमको लेकर
बस दो चार,डील हो जाये
कई करोड़ों ,रूपये आयें
नहीं रखेंगे पैसे घर में
पर स्विस बेंको में,डालर में
इतने पैसे जाये कमाये
अपनी सात पुश्त तर जाये
नहीं नहीं ये खेल  तुम्हारा
तो है बड़े टेंशन वाले वाला
अगर कोई स्केम खुल गया
तो  फिर सारा खेल धुल गया
टी.वी.पर बदनामी  हर दिन
  मंत्री पद से करो रिजाइन
सी.बी.आई, तंग करेगी
जेल तिहाड़ ,तुम्हे भेजेगी
ना बाबा ना ,यूं  घबराकर
तुमसे मिलने,मुंह लटकाकर
मै तिहाड़ में ना आउंगी
सबको क्या मुंह दिखलाउंगी
 इन खेलों में बड़े झमेले
आओ स्कूल स्कूल  खेलें
एंट्रेंस की तैयारी कर
करते रहें पढाई जम कर
तुम आई आई टी ,इंजिनीयर
और मै बन कर बड़ी डाक्टर
करें काम,हो नहीं टेंशन
सुख शांति से काटे जीवन
 काहे  को हम मुश्किल झेलें
आओ स्कूल स्कूल खेलें

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

 

Sunday, November 20, 2011

बढ रही है बड़ी ठिठुरन-रूमानी हो जाए हम तुम

बढ रही है बड़ी ठिठुरन-रूमानी हो जाए हम तुम
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सर्दियों  की इस सुबह में,बढ़ रही है बड़ी ठिठुरन
दुबक कर के ,रजाई में,चाय की लें ,चुस्कियां हम
शीत का है सर्द मौसम,और उस पर  घना कोहरा
और फिर ठंडी हवाएं, हो रहा है सितम दोहरा
नहीं सूरज   नज़र आता ,देख ये आलम जमीं पर
ओढ़ चादर कोहरे की,छुप गया है वो कहीं पर
देख  मौसम की रवानी,हो गया उद्दंड  पानी
रचाने को रास मिल कर,हवाओं संग,हो रूमानी
सूक्ष्म बूंदों में विभक्षित हो गया घुल मिल हवा से
और सूरज को छुपाया, देख ना ले,वो वहां से
छा रहा इतना धुंधलका,आज पंछी कम उड़े  है
देख मौसम की नजाकत,नीड़ में दुबके पड़े है
और तुम पीछे पड़ी हो,उठो,अब छोडो  रजाई
और तुम अंगड़ाई लेकर,भर रही हो ,तुम जम्हाई
आओ ना,शरमाओ ना तुम,हो गयी जो सुबह तो क्या
प्यार का है मधुर मौसम,चैन से लो,मज़ा इसका
'अजी छोडो,बुढ़ापे में,चढ़ रही मस्ती तुम्हे है
काम वाली भी अभी तक आई ना ,बर्तन पड़े है
मुझे चिंता काम की है ,और रूमानी हो रहे तुम'
सर्दियों की इस सुबह में,बढ़ रही है ,बहुत ठिठुरन

मदन मोहन बहेती'घोटू'

Saturday, November 19, 2011

माँ के सपनो में बसा-गाँव का पुराना घर

माँ के सपनो में बसा-गाँव का  पुराना घर
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मिनिट मिनिट में सारी बातें,माँ अब भूल भूल जाती है
लेकिन उसे पुराने घर की, यादें बार बार आती है
दूर गाँव में कच्चा घर था
फिर भी कितना अच्छा घर था
लीप पोत कर उसे सजाती
माटी की खुशबू थी आती
और कबेलू  वाली छत थी
बारिश में जो कभी टपकती
सच्चा  प्यार वहां पलता था
मिटटी का चूल्हा जलता था
लकड़ी और कंडे जलते थे
राखी से बर्तन मंजते थे
दल भरतिये में थी गलती
अंगारों पर रोटी सिकती
खाने को बिछता था पाटा
घट्टी से पिसता था आटा
शाम ढले फिर दिया बत्ती
चिमनी,लालटेन थी जलती
 सभी काम खुद ही करते थे
कुंए से पानी भरते थे
पीट धोवना,कपडे धुलते
बच्चे सब जाते स्कूल थे
बाबूजी    ऑफिस  जाते  थे
संझा को सब्जी लाते थे
कभी पपीता कभी सिंघाड़े
खाते थे मिल कर के सारे
ना था टी वी,ना ट्रांजिस्टर
बातें करते साथ बैठ कर
बच्चे सुना पहाड़े  रटते
होम वर्क बस ये ही करते
सुन्दर और सादगी वाला
वो जीवन था बड़ा निराला
चलता रहा समय का चक्कर
और हुआ पक्का,कच्चा घर
बिजली आई,नल भी आये
ट्रांजिस्टर,टी.वी. भी लाये
वक़्त लगा फिर आगे बढ़ने
बेटे गए नौकरी करने
और बेटियां गयी सासरे
नहीं कोई भी रहा पास रे
बस माँ थी और बाबूजी थे
संग थे दोनों,बड़े सुखी थे
लेकिन लगा वक़्त का झटका
छोड़ साथ,माँ का,हम सब का
बाबूजी थे स्वर्ग  सिधारे
और हो गया घर सूना रे
जहाँ कभी थी रेला पेली
बूढी  माँ,रह गयी अकेली
बेटे उसे साथ ले आये
पर उस घर की याद सताए
पूरा जीवन जहाँ गुजारा
ईंट ईंट चुन जिसे संवारा
बाबूजी संग ,हँसते गाते
जिसमे बसी हुई है यादे
सूना पड़ा हुआ है वो घर
पर माँ का मन अटका उस पर
और  अब माँ बीमार पड़ी है
लेकिन जिद पर रहे अड़ी है
एक बार जा,वो घर देखूं,आंसू बार बार लाती है
वो यादें,वो बीत गए दिन,बिलकुल भूल नहीं पाती है
मिनिट मिनिट में सारी बातें,माँ अब भूल भूल जाती है
लेकिन उसे पुराने घर की,यादें बार बार आती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Friday, November 18, 2011

ख्वाब सुनहरे

ख्वाब सुनहरे
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एश्वर्या सुन्दर बहुत,चेहरे पर है आब
विश्व सुंदरी  का मिला था जब उसे खिताब
था जब उसे खताब,आपको क्या बतलाऊ
मन में आया ख्वाब,गले से उसे लगाऊ
लेकिन ब्याह रचाया उसने ,हुई पराई
ख़ुशी हुई जब उसके घर में बेटी आई
                   २
बेटी हिरोईन बने,बीस बरस के बाद
और मेरा पोता बने,हीरो उसके साथ
हीरो उसके साथ,प्यार उनमे हो जाये
फिर  वो दोनों मिले जुले और ब्याह रचाये
हो सपने  साकार,बहुत रोमांचत है मन
लगे लगाऊ,एश्वर्या हो मेरी समधन

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Thursday, November 17, 2011

अब चुनाव है आनेवाला


अब आने वाला चुनाव है
-----------------------------
मरे हुए सपनो को फिर से,
जीवन दिलवाने के खातिर
सपनो का संसार दिखा कर,
फिर से बहलाने के खातिर
पांच साल में,एक बार जो,
मिलकर यज्ञ किया जाता है
राजनीती के इस खेले को,
नाम चुनाव दिया जाता है
इक दूजे को 'स्वाह 'स्वाह' कर,
'इदं न मम' की बातें करते
बार बार इस आयोजन में,
मन्त्र न,झूंठे वादे पढ़ते
मन में भर कर भाव कलुषित,
फैलाते ये घना धुंवां  है
मार पीट और खूनखराबा,
अक्सर कितनी बार हुआ है
समिधा बना खरचते पैसा,
आहुति होती धन और बल की
संचित धन हो जाए कई गुना,
इसी मधुर आशा में कल की
बाहुबली, दबंग सभी तो,
सत्ता सुख का सपना पाले
उजले वसन पहन कर दिखते,
बगुला भगत बने ये सारे
पदासीन फिर सत्ता पाने,
एडी चोंटी जोर लगाते
बढ़ा दाम,फिर सस्ता करते,
घटा रहे मंहगाई ,बताते
अच्छा ,भला,बुरा क्या छांटे,
जिसको देखो वो है नंगा
डुबकी सभी लगाना चाहें,
बहती है सत्ता की गंगा
कोशिश टिकिट जाय मिल सबको,
बीबी ,बेटा,साला,भाई
वंशवाद फैले और विकसे,
पांच साल तक करें कमाई
  भ्रष्टाचार  मिटा देंगे हम,
और विकास का वादा करते
सर्व प्रथम खुद का विकास कर,
अपनी अपनी झोली भरते
एक बार मिल जाए सत्ता,
जीवन में आ जाय उजाला
फेंट रहे सब अपने पत्ते,
अब चुनाव है आनेवाला
 
 मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Sunday, November 13, 2011

गोल गप्पे

गोल गप्पे
------------
जिंदगी,
पानीपूरी के पानी की तरह,
खट्टी,मीठी,चटपटी,तीखी,
और स्वादिष्ट होती है
और आदमी इसे गटागट पी भी सकता है
पर उसमे इतना मज़ा नहीं आता
अगर उसका असली स्वाद लेना हो,
तो गोलगप्पे की तरह,
एक जीवनसाथी की जरुरत पड़ती है,
जिसमे भर भर कर,
घूँट घूँट पीने से,
जिंदगी का असली मज़ा आता है

मदन मोहन बहेती'घोटू'

लेटना

लेटना
-------
लेटना,एक शारीरिक प्रक्रिया है,
जिसमे  आदमी,
अकेला या किसी के साथ,
पैर फैला कर या सिकोड़ कर,
थका हुआ,या  अनथका ,
 आराम करने के लिए या थकने को,
सीधा,उल्टा या करवट लेकर,
पसर जाता है,
उसे लेटना कहते है
आदमी जब दुनिया में आता है,
तो आते ही लेटता है,
और जब दुनिया से जाता है ,
तो लेट कर ही जाता है
और अपना एक तिहाई से भी ज्यादा जीवन,
लेट कर ही बिताता है
नींद,लेटने की परम मित्र है,
और वो कई बार लेटने के साथ ही आ जाती है,
सुलाती है और सपने दिखाती है
और सोना इंसान को बहुत प्रिय है,
 और किसी के साथ सोने में उसे आनंद मिलता है,
पर  असल में उस समय  ,
वो सोता नहीं,लेटता है
और इस तरह जागते हुए सोने की प्रक्रिया,
आनंद दायिनी होती है,
धन प्रदायिनी होती है,
करियर बढ़ावनी होती है
धन लुटावनी होती है
पर सुहावनी होती है
अक्सर ,इस तरह लेटने से,
शरीर की मांसपेशियों का तनाव दूर हो जाता है
इसलिए लेटना आदमी के लिए जरूरी है
क्योंकि बिना लेटे जिंदगी अधूरी है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Saturday, November 12, 2011

वृद्ध का सन्मान कर दो

बहुत पूजित वृद्ध जन है
प्यार का ऊंचा गगन है
सफलता की सीढियां है,
संस्कृति का ये चमन है
हमारे बूढ़े ,बड़े  है
मुश्किलों से ये लड़े है
डगमगाए जब कभी हम,
थामने हरदम खड़े  है
आज ये पीढ़ी पुरानी
सफलताओं की कहानी
आज हम जो है,जहाँ है,
ये इन्ही की मेहरबानी
उम्र मत तुम  प्यार देखो
भावना,उपकार देखो
करो सेवा,पाओगे तुम,,
आशीषें  हर बार देखो
जिन्होंने सारी उमर भर
लुटाया,निज नेह तुम पर
मांगते ,प्रतिकार में है,
प्यार और सन्मान केवल
उमर का यशगान  करदो
वृद्ध  का सन्मान कर दो
प्यार की ले पुष्पमाला,
अनुभवों का मान कर दो
हो ख़ुशी मुस्कायेंगे वो
भाव से भर जायेंगे वो
मुदित हो विव्हल ह्रदय से,
अश्रुजल छलकायेंगे वो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

आएगा कब 'लिटिल बच्चन ?'

आएगा कब 'लिटिल बच्चन ?'
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लगा कर के टकटकी सब
प्रतीक्षा में   लगे है   अब
जल्द आये वह मधुर क्षण
आएगा  जब 'लिटिल बच्चन'
अमित जी उत्सुक बहुत है
जया जी व्याकुल बहुत है
उल्लसित  अभिषेक जी है
प्रतीक्षा में  ये सभी है
मगन मन बेचेन श्वेता
आएगा  नन्हा चहेता
एश्वर्या दर्द पीड़ित
किये मन में प्यार संचित
राह पर है  प्रसूति की
एक नयी अनुभूति  की
ह्रदय में आनंद ज्यादा
बनेंगे अमिताभ दादा
और 'गुड्डी 'जया  दादी
खबर ने खुशियाँ मचा दी
टिकटिकी कर रही टक टक
धड़कने बढ़ रही   धक धक
प्रतीक्षा में है सभी जन
आएगा कब 'लिटिल बच्चन'
 मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Friday, November 11, 2011

एक कबूतर ---

एक कबूतर ---
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एक कबूतर आता जाता
मेरा फ्लेट सातवीं मंजिल पर बिल्डिंग की,
फिर भी ऊपर उड़ कर आता,ना इतराता
वही सादगी और भोलापन
मटकाता रहता है गरदन
अपनी वही गुटरगूं  करना
सहम सहम धीरे से चलना
कभी कभी जब होता प्यासा,
रखे गेलरी में पानी से भरे पात्र में,
चोंच डूबा,कुछ घूंटे भर कर प्यास बुझाता
एक कबूतर आता जाता
एक दिन उसके साथ आई थी एक कबूतरी
सुन्दर सी मासूम ,जरा सी भूरी भूरी
उसकी नयी प्रेमिका थी वो,
ढूंढ रहे थे वो तन्हाई
बैठ गेलरी के कोने में चोंच लड़ाई
इधर उधर ताका और झाँका,
प्यार जताया एक दूजे से
और प्रणय क्रीडा में थे वो लीन हो गए
फिर दोनों ने पंख फैलाये,फुर्र हो गए
देखा कुछ दिन बाद साथ में कबूतरी के,
चोंचे भर भर तिनके लाता
शायद निज परिवार बसाने,नीड़ बनाता
एक कबूतर आता जाता

मादा मोहन बाहेती'घोटू'

सोने की चेन और चैन का सोना

सोने की चेन और चैन  का सोना
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बहुत शिकायत मुझसे तुमको,कि मै बड़ी देर सोता हूँ
होश नहीं रहता सपनो में,मै इतना गाफिल होता हूँ
चिंतामुक्त आदमी होता,नींद उसे आती आती है गहरी
इसीलिए मै सो जाता हूँ,भले रात हो या दोपहरी
सोना नींद चैन कि केवल,किस्मत वालों के नसीब में
तुम भी सोती नीद प्रेम से,भर खर्राटे बीच बीच में
नींद बड़ी गहरी आती है,जब कोई मेहनत कर थकता
पैसे वाला परेशान है,करवट लेता सिर्फ बदलता
सोना तो सचमुच सोना है,सबके मन को प्रिय लगता है
पर जिसके घर ज्यादा सोना,रातों रात सदा जगता है
त्रेता युग में कुम्भकरण जो रावण का भाई होता था
रामायण ये बतलाती है,वो छह छह महीने   सोता था
वो राक्षस था मगर देव भी,चार चार महीने सोते है
रहते प्रेमी दुखी इन दिनों,शादी ब्याह नहीं होते है
राक्षस,मानव,देव सभी को,होती है आदत सोने की
मुझे चैन   से सोने दो, ला दूंगा चेन तुम्हे सोने की
मुझे जगाती ही रहती हो,जब मै सपनो में खोता हूँ
नहीं शिकायत करना अब तुम,कि मै बहुत देर सोता हूँ

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Thursday, November 10, 2011

लोक- परलोक

लोक- परलोक
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हमारे एक धार्मिक प्रवृत्ति  के दोस्त ने समझाया
उम्र बढती जारही है,
और तुमने ना कोई पुण्य कमाया
थोडा दान धरम कर लो
थोड़ी कथा भागवत सुन लो
ये ही पुण्य बाद में काम आएगा
तुम्हे स्वर्ग दिलवाएगा
देखो आजकल लोगों की प्रवृत्ति में,
धार्मिकता कितनी बढ़ गयी है
मंदिरों और कथा भागवत में भीड़ उमड़  रही है
सबके सब जुटे है पुण्य कमाने में
सीधा स्वर्ग जाने में
मैंने कहा यार तुमको पता है
भीडभाड से मेरा मन डरता है
मंदिरों या सत्संगो की भीड़ से घबराता हूँ
इसीलिए ऐसे आयोजनों में नहीं जाता हूँ
और फिर इतनी सारी जनता,जो पुण्य कमा रही है,
सीधे स्वर्ग जायेगी
तो निश्चित ही स्वर्ग में भी भीड़ बढ़ जायेगी
शांति कहाँ मिल पाएगी
ऐसे स्वर्ग जाने से फायदा ही क्या है यार,
यहाँ भी झेलो भीड़ भाड़ और वहां भी भीड़ भाड़
अगर हम दिल के सच्चे है
तो ऐसे ही अच्छे है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 

रिटायर हो हम गए है

रिटायर हो हम गए है
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रिटायर हो हम गए है
बदल सब मौसम गए है
थे कभी सूरज प्रखर हम
हो गए है आज मध्यम
आई जीवन में जटिलता
मुश्किलों से वक़्त कटता
थे कभी हम बड़े अफसर
सुना करते सिर्फ 'यस सर'
गाड़ियाँ थी,ड्रायवर थे
नौकरों से भरे घर थे
रहे चमचों से घिरे हम
रौब का था गजब आलम
जरा से करते इशारे
काम होते पूर्ण सारे
सदा रहते व्यस्त थे हम
काम के अभ्यस्त थे हम
आज कल बैठे निठल्ले
रह गए एक दम इकल्ले
हो गए है बड़े बेबस
नौकरों के नाम पर बस
पार्ट टाइम कामवाली
है बुरी हालत हमारी
काम करते हाथ से है
क्षुब्ध अपने आप से है
रौब अब चलता नहीं है
कोई भी सुनता नहीं है
आदतें बिगड़ी हुई है
कोई भी चारा नहीं है
बस जरासी पेंशन है
और हजारों टेंशन है
हो बड़े बेदम गए है
रिटायर हो हम गए है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

अपेक्षायें

अपेक्षायें
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अपेक्षायें मत करो तुम,तोडती दिल अपेक्षायें
पूर्ण यदि जो ना हुई तो,तुम्हारे  दिल को दुखायें
किया यदि कुछ,किसी के हित,करो और करके भुलादो
मिलेगा प्रतिकार में कुछ,आस   ये दिल से मिटा दो
तुम्हारा कर्तव्य था यह,जिसे है तुमने निभाया
क़र्ज़ था पिछले जनम का,इस जनम में जो चुकाया
या कि फिर यह सोच करके,रखो यह संतोष मन में
इस जनम के कर्म का फल,मिलेगा अगले जनम में
या किसी के लिए कुछ कर,पुण्य है तुमने कमाये
अपेक्षायें मत करो तुम,तोडती दिल अपेक्षायें
बीज जो तुम बो रहे हो ,वृक्ष बन कर बढ़ेंगे कल
नहीं आवश्यक तुम्हारे,हर तरु में लगेंगे फल
और यदि फल लगे भी तो,मधुर होगे,तय नहीं है
तुम्हे खाने को मिलेंगे,बात ये निश्चय नहीं है
इसलिए तुम बीज बोओ,आएगी ऋतू,तब खिलेंगे
आस तुम मत करो फल की,भाग्य में होंगे,मिलेंगे
नहीं आवश्यक सजग हो,सब सपन ,तुमने सजाये
अपेक्षायें मत करो तुम, तोडती दिल अपेक्षायें

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Tuesday, November 8, 2011

आखरी मौका


  आखरी मौका
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मेरी शादी के अवसर पर,
जब मै घोड़ी पर बैठ रहा था,
मेरे शादीशुदा मित्र ने कहा था,
'देखले,कितना शानदार मौका है
एसा मौका बार बार नहीं मिलता'
उस समय तो मै समझ नहीं पाया,
पर अब समझ में आया है  उसका मतलब
दोस्त ने कहा था'घोड़ी भी है,मौका  भी है,
जीवन भर की गुलामी से बचना है ,तो,
एडी दबा,घोड़ी दोड़ा,और भागले अब '
भागने का आखरी  मौका  था
पर मुझे रास्ता न दिखे,इसलिए लोगों ने,
मेरा चेहरा,सेहरे से ढक रखा था
 और मै भाग ना जाऊं ,मुझे रोकने के लिए,
बारातियों ने मुझे घेर कर रखा था
और तो और ,आपको मै क्या बतलाऊं
जब मै शादी के मंडप में पहुंचा,
मेरे जूते छिपा दिए गए,
कहीं मै भाग ना जाऊं
और विवाह  की बेदी के सामने बैठा कर,
दुल्हन के हाथ से मेरा हाथ बाँधा गया
जैसे गुनाहगार को हवलदार  पकड़ता है,
दुल्हन ने मेरा हाथ पकड़ा,
और मेरा भागने का ये मौका भी  हाथ से गया
और हाथ को बांधे बांधे ,
दुल्हन को आगे कर उसके पीछे पीछे,
मैंने अग्नि के चार फेरे भी काटे
और मुझे बहला कर ले लिए सात वादे
तब कहीं अगले तीन फेरों के लिए,
मुझे निकलने दिया आगे
और फिर चांदी के सिक्के से
मैंने उसकी मांग भरी
और एक वो दिन था और एक आज का दिन,
उसकी सभी मांगों को पूरी कर
वो आगे और उसके पीछे पीछे,
काट रहा हूँ मै चक्कर
काश घोड़ी पर बैठते वक़्त ही,
अपने दोस्त की बात समझ में आ जाती
तो आज ये नौबत नहीं आती

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

ढीठ है हम

ढीठ है हम
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करो तुम रथ यात्राये,और भूख हड़ताल,अनशन
मौन,मुंह पर पट्टियाँ या,मोम बत्ती ले प्रदर्शन
बढ़ रही मंहगाई कोई,इस तरह ना रोक सकता
 जब तलक है पास सत्ता ,कमाएंगे मालमत्ता
घटेगी मंहगाई तब ही,जब घटाएंगे  उसे हम
नहीं सुधरे थे कभी हम,नहीं सुधरेंगे कभी हम
                        ढीठ  है हम
कर रहे उपवास अन्ना,लाओ लोकायुक्त बिल तुम
मिटे भ्रष्टाचार जिससे,साफ़ सुथरा हो प्रशासन
पास जब हो जाएगा  बिल,जाएगी घट कई मुश्किल
कहीं भ्रष्टाचार घटता,पास होने से कोई बिल
भ्रष्टता तब ही मिटेगी,जब मिटायेंगे उसे हम
नहीं सुधरे थे कभी हम,नहीं सुधरेंगे कभी हम
                          ढीठ है हम
देश तब संपन्न होगा,जब विदेशों में जमा धन
देश को मिल जाए वापस,आन्दोलन कर रहे तुम
भला ये भी बात है क्या ,किस तरह स्वीकार करलें
कई वर्षों की कमाई,इस तरह बेकार करलें
चुनावों में खर्च करने,जुटाएंगे कहाँ से धन
नहीं सुधरे थे कभी और नहीं सुधरेंगे कभी हम
                            ढीठ  है हम
 मदन मोहन बाहेती'घोटू'

हमें भी लगता बुरा है


हमें भी लगता बुरा है

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हमारी हर बात पर ही,
तुम्हे लग जाता बुरा है
मौन है हम,मगर समझो,
हमें भी लगता बुरा है
बहुत है दिल को दुखाती,
तुम्हारी रुसवाईयां  है
ह्रदय में नश्तर चुभोती,
आजकल तनहाइयाँ है
और अपने में मगन तुम,
उड़ रहे ऊंचे गगन में
अरे,हम कुछ है तुम्हारे,
ख्याल आया कभी मन में
अभी भी मन में हमारे,
प्यार का सागर उमड़ता
और तुम भूले पिघलना ,
इस कदर आ गयी जड़ता
तुम्हे करके  के याद अक्सर ,
उभरते है प्यार के स्वर
मगर हर वाणी हमारी,
लौट आती,प्रतिध्वनि कर
तुम वही हो,हम वही है,
बीच में क्यों दूरियां है
बताओ ना क्या हुआ है,
कौनसी मजबूरियां है
बहुत मिलते हम पियाले,
बहुत मिलते हम निवाले
ना मिलेंगे मगर हम से,
चाहने वाले, निराले
कभी हम संग संग चले थे,
साथ हँसते और गाते
डूब यादों के भंवर में,
डुबकियाँ है हम लगाते
साथ हम थे तो ख़ुशी थी,
जिंदगी थी मुस्कराती
बिना सहलाये हमारे,
नींद भी थी नहीं आती
हमारा स्पर्श तुमको,
लगा लगने खुरदुरा है
मौन है हम,मगर समझो,
हमें भी लगता बुरा है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मुझे तडफाया सभी ने

मुझे तडफाया सभी ने
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उम्र की इस बेबसी में
मुझे तडफाया सभी ने
और मुझ पर बीतती क्या,
ये नहीं सोचा किसी ने
तान कर ताने दिए और,
दिल दुखाया दिल्लगी में
कभी थे दावत उड़ाते,
आज है फांकाकशी में
उम्र ऐसे ही गयी कट,
कभी दुःख में या ख़ुशी में
मुझे दीवाना समझ कर,
यूं ही ठुकराया सभी ने
नहीं देखा पीर कितनी,
छुपी है मेरी हंसी में
नेह बांटो,खोल कर दिल,
रंजिशे क्यों आपसी में
आओ फिर से दिल मिलाएं,
क्या रखा तानाकशी में

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

ग़ज़ल

ग़ज़ल
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जो कम बालों वाले या गंजे होते है
अक्सर उनकी जेबों में कंघे होते है
अपने घर में वो ताले लटका कर रखते,
जो धनहीन और भूखे नंगे होते है
प्रेम भाव,मिल जुल रहना ,सब धरम सिखाते,
नाम धरम का  ले फिर क्यों दंगे  होते है
जो कुर्सी पर बैठे ,वो ही बतलायेंगे,
कुर्सी के खातिर कितने पंगे होते है
हो दबंग कितने ही कोई,मर जाने पर,
दीवारों पर ,बन तस्वीर ,टंगे होते है
पांच साल तक ,शासन करते,पर चुनाव में,
वोट मांगते,नेता,भिखमंगे  होते है
इनकी सूरत मत देखो,फितरत ही देखो,
होते सभी सियार,मगर रंगे होते है
'घोटू' ज्यादा मत सोचो,मन में दुःख होगा,
वो खुश रहते,जिनके मन चंगे होते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

ममता तुम कितनी निर्मम हो

ममता,तुम कितनी निर्मम हो
गाहे बगाहे,जब जी चाहे,
हमें डराती रहती तुम हो
ममता तुम कितनी निर्मम हो
तुम्हे पता,कितनी मुश्किल,पर
घेर लिया है सब ने मिल कर
आन्दोलन करते है अन्ना
पत्रकार है,सब चोकन्ना
भ्रष्टाचार और मंहगाई
काबू होती,नहीं दिखाई
रोज फूटते ,कांड नये है
साथी कई तिहाड़ गये है
मंहगाई हद लांघ गयी है
जनता भी अब जाग गयी है
फेल हो रहे,सभी दाव है
और अब तो सर पर चुनाव है
डगमग है कानून व्यवस्था
मै बेचारा,क्या कर सकता?
हालत बड़ी बुरी हम सबकी
ऊपर  से तुम्हारी धमकी
कहती ,गठबंधन छोडोगी
बुरे वक़्त में ,संग छोडोगी
अटल साथ भी यही किया था
बार बार तंग बहुत किया था
क्या है भेद तुम्हारे मन का
धर्म न जानो,गठबंधन का
शायद इसीलिए क्वांरी हो
पर पड़ती सब पर भारी हो
देखो एसा,कभी न करना
अब संग जीना है संग मरना
कोई किसी को ,दगा न देगा
जो चाहो,पैकेज  मिलेगा
मौका देख ,दिखाती दम हो
ममता तुम कितनी निर्मम हो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 

Saturday, November 5, 2011

लेपटोप क्या आया घर में----

लेपटोप क्या आया घर में----
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लेपटोप क्या आया घर में,जैसे  सौत आ गयी मेरी
दिन भर साथ लिए फिरते हो,करते रहते छेड़ा छेड़ी
एक ज़माना था जब मेरी,आँखों में दुनिया दिखती थी
कलम हाथ में  थाम उंगलियाँ,प्यारे प्रेमपत्र लिखती थी
अब तो लेपटोप परदे पर,नज़रें रहती गढ़ी तुम्हारी 
छेड़ छाड़ 'की पेड'बटन से,उंगली करती रहे  तुम्हारी
अब मुझको तुम ना सहलाते,अब तुम सहलाते हो कर्सर
लेपटोप को गोदी में ले,बैठे ही    रहते  हो     अक्सर
कभी कभी तो उसके संग ही , लेटे काम किया करते हो
'मेल' भेजते,'चेटिंग','ट्विटीग' ,सुबहो- शाम किया करते हो
रोज 'फेस बुक' पर तुम जाने किस किस के चेहरे हो ताको
और खोल कर के' विंडो 'को,जाने कहाँ कहाँ तुम झांको
कंप्यूटर था,तो दूरी थी,ये तो मुआ रहे है चिपका
करते रहते 'याहू याहू',फोटो देखो हो किस किस का
मेरे लिए जरा ना टाइम ,दिन है सूना,रात अँधेरी
लेपटोप क्या आया घर में,जैसे सौत आ गयी मेरी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

ऊनी कपड़ों वाला बक्सा

ऊनी कपड़ों  वाला बक्सा
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सर्दी का मौसम आया तो मैंने खोला,
बक्सा ऊनी  कपड़ों वाला
जो पिछले कितने महीनों से,
घर के एक सूने कोने में,
लावारिस सा पड़ा हुआ था,
हम लोग भी कितने प्रेक्टिकल होते है
जरुरत पड़ने पर ही किसी को याद करते है,
वर्ना,उपेक्षित सा छोड़ देते है
बक्से को खोलते ही,
फिनाईल  की खुशबू के साथ,
यादों का एक भभका आया
मैंने देखा ,फिनाईल की गोलिया,
जब मैंने रखी थी ,पूरी जवान थी,
पर मेरे कपड़ों को सहेजते ,सहेजते,
बुजुर्गों की तरह ,कितनी क्षीण हो गयी है
सबसे पहले मेरी नज़र पड़ी,
अपने उस पुराने सूट पर, 
जिसे मैंने अपनी शादी पर  पहना था,
और  शादी की सुनहरी यादों की तरह,
सहेज कर रखा था
मुझे याद  आया,जब तुमने पहली बार,
अपना सर मेरे कन्धों पर रखा था,
मैंने ये सूट पहन रखा था
मैंने इस सूट को,हलके से सहलाया,
और कोशिश की ढूँढने की,
तुम्हारे उन होठों  के निशानों को,
जो तुमने इस पर अंकित किये थे,
पिछले कई वर्षों से,
इसे पहन नहीं पा रहा हूँ,
क्योंकि सूट छोटा हो गया है,
पर हकीकत में,सूट तो वही है,
मै मोटा हो गया हूँ,
क्योंकि कपडे नहीं बदलते,
आदमी बदल जाता है
फिर निकला वह बंद गले वाला स्वेटर,
जिसे उलटे सीधे फंदे डाल,
तुमने  बड़े प्यार से बुना था,
और जिसे पहनने पर लगता था,
की तुमने अपने बाहुपाश मै,
कस कर जकड  लिया हो,
इस बार उस स्वेटर के  कुछ फंदे,
उधड़ते से नज़र आये
फिर दिखी शाल,
देख कर लगा,जैसे रिश्तों की चादर पर,
शक  के कीड़ों ने,
जगह जगह छेद कर दिए है,
मन मै उभर आई,
जीवन की कई ,खट्टी मीठी यादें,
भले बुरे लोग,
सर्द गरम दिन,
बनते बिगड़ते रिश्ते
फिर मैंने सभी ऊनी कपड़ों को,
धूप में फैला दिया,इस आशा से कि,
सूरज कि उष्मा से,
शायद इनमे फिर से,
नवजीवन का संचार हो जाये
मै हर साल  जब भी,
ऊनी कपड़ों का बक्सा खोलता हूँ,
चंद पल,पुरानी यादों को जी लेता हूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Friday, November 4, 2011

वह युग 'ऐ जी'ओ जी' वाला

अब भी मुझे याद आता है,वह युग 'ऐ जी'ओ जी' वाला
पश्चिम की संस्कृती ने आकर,सब व्यवहार बदल ही डाला
जब सर ढके पत्नियाँ घर में,पति का नाम नहीं लेती थी
अजी सुनो पप्पू के पापा,या चूड़ी खनका  देती थी
कभी बुलाना हो जो पति को,कमरे की सांकल खटकाना
कभी कोई आ जाये अचानक,शर्मा कर झट से हट जाना
चंदा से मुखड़े को ढक कर,दिन भर घूंघट करके रहना
कितना प्यारा ,मनभाता था,उनका 'ऐ जी'ओ जी'कहना
ले लेने से नाम पति का,उमर पति की कम होती थी
तब पति पत्नी के रिश्ते में,थोड़ी झिझक,शरम होती थी
घर के बूढ़े बड़े बैठ कर,कर देते थे रिश्ता पक्का
पहली बार सुहागरात में,मुंह दिखता था,पति पत्नी का
कैसा होगा जीवन साथी,मन में कितना 'थ्रिल 'होता था
मुंह दिखाई से मन रोमांचित,प्रथम बार जब मिल होता था
इस युग में,शादी से पहले,मिलना जुलना  अब होता है
होती रहती डेटिंग वेटिंग,पिक्चर विक्चर  सब होता है
हनीमून हिल स्टेशन पर,घूंघट,मुंह दिखाई सब गायब
जींस और टी शर्ट पहन कर,नव दम्पति घूमा करते अब
एक दूजे को ,प्रथम  नाम से ,पति पत्नी है अब पुकारते
गया  ज़माना,'सुनते हो जी',का पुकारना बड़े  प्यार से
लेकर नाम बुलाने का तो, होता है अधिकार सभी का
पर 'ऐ जी'ओ जी'कहने का,हक़ था केवल पति पत्नी का
रहन सहन सब बदल गया है,इस युग का है चलन निराला
अब भी मुझे याद आता है,वह युग 'ऐ जी'ओ जी' वाला

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

i

Tuesday, November 1, 2011

दफ्तरी लंच

दफ्तरी लंच
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एक बड़े दफ्तर के आगे,
हम्मर एक खोखा है
जहाँ पर दफ्तरी लंच खाने का,
बड़ा अच्छा मौका है
जैसे घर का खाना खा कर,
आप फील करते है 'होमली'
इसी तरह हमारे यहाँ खाकर,
आप फील करेंगे 'दफ्तरी'
जैसे कागज़ की प्लेटें,लकड़ी के चमचे,
जो  काम निकलने के बाद,
फेंक दिए जाते है
जैसे चाटुकार चमचे,जो अपने 'बॉस 'को,
मक्खन लगाते है और  चाटते है पाँव
उनके लिए मिलते है,
मौजे और जूतों की बदबू रहित,पाव
और वो भी मख्खन लगे,फिर भी सस्ता भाव
चाटुकारों ने ,जब से हमारे पाव खाएं है
एसा टेस्ट बदला है,बार बार आये है
दूसरा आइटम 'सेंडविच आम' है
आम आदमी के लिए,
एक तरफ घर की समस्याओं की स्लाइस है,
और दूसरी तरफ दफ्तर की मुश्किलों की स्लाइस
बीच में ,थोड़ी सी मजबूरी का मख्खन,
टिमटिमाती आस का  टमाटर ,
पत्ते दर पत्ते मुसीबतों से आते हुए,
पत्ता गोभी के चंद कतरे
लोगों के उपहास की नमक मिर्च,
बस बन गयी सेंडविच
आम आदमियों सी कितनी आम साईं
फिर भी सस्ते दाम है
एक बाईट लेने पर लगता है,
सभी समस्याओं का हल हो गया है
मन को बहलाना कितना सरल हो गया है
तीसरा आइटम 'ख्वाईशी दही बड़े 'है
बड़े बनने की इच्छा में,
दलहन को दल कर दाल बनना पड़ता है
फिर रात भर पानी में गलना पड़ता है
बचपन के साथी छिलकों का साथ छोड़ ,
समय के सिल पर पिसना पड़ता है
फिर  दुनियादारी की कढ़ाही में,
उबलते हुए समझोतों के तेल में तले जाना होता है
तब कही जाकर,माखनी दही में,
डुबकी लगाने का आनंद मिलता है
 इन दहिबडों को खाकर ही,
मन का कमल खिलता है
और भी कई आइटम है,
जो यदि आप खायेंगे,
दफ्तरी पायेंगे
जैसे गुलाब जामुन,
जिनमे  ना गुलाब की खुशबू है,
न जामुन का स्वाद,
फिर भी गुलाब जामुन कहाते है
बिलकुल आपके बॉस की तरह,
या आपके जॉब की तरह
जिनके नाम और काम में ,
आप बहुत बड़ा फर्क पाते है
सभी आइटमो का बेसिक सेलरी की तरह,
सस्ता दाम है
और मंहगाई भत्ते की तरह,
पानी पीने का मुफ्त इंतजाम है
क्योकि साहब,बेसिक सेलरी तो,
बेसिक मदों में ही चली जाती है
महीने खर्चा तो डी.ए.से चलता है
उसी तरह सेंडविच ,दहिबडों से,
भूख थोड़े ही मिटती है,
पेट तो पानी से ही भरता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जिस क्यारी से की यारी,वो क्यारी फिर क्यारी न रही
जिस डाली पे नज़र डाली,वो डाली फिर डाली  न रही
जिस गुलशन में हम पहुँच गये,कुछ गुल न खिले नामुमकिन है,
जिस महफ़िल के मेहमान हुए,वो महफ़िल फिर खाली न रही

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Sunday, October 30, 2011

चंदा

चंदा
-----
किसी अच्छे कार्य के लिए,
या किसी आयोजन के लिए
किसी पूजा के लिए,
या किसी की सहायतार्थ,
जब कोई धनराशी,
विभिन्न लोगों से मांग मांग कर,
एकत्रित की जाती है,
उसे चन्दा कहते है
पर क्या आपने कभी ये सोचा है,
इसे चंदा ही क्यों कहते है?
सूरज ,सागर,सरिता या बादल क्यों नहीं कहते?
चन्दा,
सूरज से रौशनी उधर मांग,
दुनिया भर को शीतल उजाला देता है
और  इसी परोपकार में,लगा ही रहता है
इसी तरह ,लोगों से मांग मांग,जो राशी ,
परोपकार की आयोजन में लगाई जाती है ,
चन्दा कहलाती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'












हड्डियाँ और दांत

(मेडिकल कविता)
हड्डियाँ और दांत 
----------------------
डाक्टर बताते है
बच्चा जब पैदा होता है,
उसके शरीर में 350  हड्डियाँ होती है,
पर जैसे जैसे उमर बढती है
हड्डियाँ जुडती है
आदमी में बदलाव आता है
हड्डिय मजबूत होती है,
और उनमे जुडाव आता है
हड्डियाँ और आदमी ,
दोनों हो जाते है सख्त
और बचपन की 350 हड्डियाँ,
बड़े होने पर,206 ही रह जाती है फ़क्त
और इसी तरह बचपन में,
आदमी के जबड़े में,
छुपे होते है बावन दांत
इनमे से बीस,जो हड़बड़ी में होते है,
जल्दी निकल जाते है
पर पांच सात बरस में टूट कर  गिर जाते है
ये दूध के दांत कहलाते है
पर बाकि के बत्तीस दांत,
जो धीरज रखते है
धीरे धीरे निकलते है
और पूरी उमर चलते है
हमारे शरीर के ये अंग,
हमें बहुत कुछ सिखाते है
हड्डियाँ जुडाव की ताकत बताती है,
और दांत धीरज की महत्ता बताते है

मदन मोहन बहेती 'घोटू'

 

Friday, October 28, 2011

इस दीपावली पर

इस दीपावली पर
--------------------
कोई  के घर आये लक्ष्मी पद्मासन में,
कोई के घर अपने प्रिय वाहन उल्लू पर
मेरे घर पर लेकिन आई लक्ष्मी मैया,
एक नहीं,दो नहीं,तीन इक्कों पर चढ़ कर

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

उल्लू बीसा

उल्लू बीसा
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श्री लक्ष्मी वहां प्रभो,महिमा धन्य अपार
सोना,चाँदी और तुम,जगती के  आधार
करे रात के समय जो,कोई भी व्यापार
श्री उल्लू की कृपा से,भरे रहे भंडार
नमो नमो उल्लू महाराजा
प्रभो आप रजनी के राजा  
निशा दूत अति सुन्दर रूपा
वास आपका कोटर ,कूपा
सूखे तरु पर आप विराजे
राज सिंहासन पर नृप साजे
कौशिकनाथ,लक्ष्मी भक्ता
धन्य धन्य रजनी अनुरक्ता
प्रभो आपकी महिमा न्यारी
लक्ष्मी जी की आप सवारी
भक्त,तपस्वी,साधू,संता
पक्षीराज निशा के कंता
चाँद,उलूक ,दोई एक जाती
रात पड़े निकले ये साथी
सूरज छिपे,होय अंधियारा
दर्शन होए प्रभु तुम्हारा
दिन का हल्ला,हुल्लड़ बाजी
हुई प्रभु को लख नाराजी
दुनिया की भगदड़ से ऊबे
क्षीण चक्षु भक्तिरस डूबे
शांति रूप को भक्ति जागी
सब कुछ त्याग बने बैरागी
करे रात को लक्ष्मी सेवा
धन्य निशाचर उल्लू देवा
धनी सेठ और जग की माया
सब पर प्रभू आपका साया
घूक,तिजोरी,पैसेवाले
तीनो लक्ष्मी के रखवाले
तीनो एक सरीखे के ग्यानी
एक घाट का पीते पानी
कीर्ति आपकी वेद बखाने
गुण महिमा मूरख भी जाने
सुन कर मधुर आपकी वाणी
विव्हल होते जग के प्राणी
करे रात को जो व्यापारा
धन और पैसा आय अपारा
जो भी ध्यावे उल्लू बीसा
बने कीमती देशी घी  सा
उसका दुःख दारिद मिट जाए
पैसा औ लक्ष्मी को पाए
उल्लू बीसा तुम पढो,बन लक्ष्मी के दास
भर जायेगी तिजोरी,मिट जायेगे त्रास
(इति श्री उल्लू बीसा संपन्न)
(लक्ष्मी जी की कृपा के लिए उनके प्रिय वाहन
उल्लू  का आराधन धन प्रदायक होता है )

Tuesday, October 25, 2011

आत्मदीप

लो फिर से आ गए दिवाली
मेरे मन के आत्मद्वीप पर
उस प्रदीप पर
काम क्रोध के
पर्तिशोध के
वे बेढंगे
कए पतेंगे
शठ रिपु जैसे थे मंडराए
मुझ पर छाए
पर मैंने तो
उनको सबको
बाल दिया रे
अपने मन से
इस जीवन से
मैंने उन्हें
निकाल दिया रे
मगन में जला
लगन से जला
और मैंने
शांति की दुनिया बसा ली
लो फिर से आ गए दिवाली

सूनी सूनी है दीवाली

सूनी सूनी है दिवाली
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जब से मइके गयी,पड़ी है मेरे दिल की बस्ती खाली
दीपावली आ गयी पर ना अब तक घर आई घरवाली
                             सूनी सूनी है दिवाली
थी आवाज़ पटाखे सी पर फिर भी लगती भली बड़ी थी
हंसती थी तो फूल खिलाती,मेरे दिल की फूलझड़ी थी
छोड़ा करती थी अनार सा,हंस कर खुशियों का फंव्वारा
जिसकी पायल की रुनझुन से ,गूंजा करता था घर सारा
जिसके  हर एक इशारे पर,मै,चकरी सा खाता था चक्कर
वह चूल्हे चौके की रौनक,चली गयी है अब पीहर
महीने पहले चली गयी,मेरे घर की खुशियों की ताली
दीपावल आ गयी पर ना ,अब तक घर आई घरवाली
                              सूनी सूनी है दीवाली
कौन मुझे पकवान खिलाये,घेवर,फीनी,बर्फी,गुंझा
गृहलक्ष्मी ही पास नहीं फिर आज करूं मै किसकी पूजा
श्रीमती जी ,आ जाओ ना,दीप जला दो,मेरे दिल का
कुछ तो ख्याल  करो रानीजी,अपने राजा की मुश्किल का
तुम मइके में मना रही होगी दीवाली खुश हो हो कर
मेरी  आँखे,नीर भरी है,बाट तुम्हारी ,बस जो जो कर
देखो तुम्हारे विछोह में,मैंने कैसी दशा बना ली
दीपावली आ गयी पर ना अब तक घर आई घरवाली
                                सूनी सूनी है दीवाली

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

Sunday, October 23, 2011

कोहरा छाने लगा है

कोहरा छाने लगा है
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चमकती उजली ऋतू का ,रूप धुंधलाने लगा है
                               कोहरा     छाने  लगा     है
बीच अवनी और अम्बर ,आ गया है  आवरण सा
गयी सूरज की प्रखरता,छा  गया कुछ चांदपन सा
मौन भीगे,तरु खड़े है,व्याप्त  मन में दुःख बहुत है
बहाते है,पात आंसू, रश्मियां उनसे विमुख है
कभी बहते थे उछालें मार कर, जब संग थे सब
हुए कण कण,नीर के कण,हवाओं में भटकते अब
 कभी सहलाती बदन,वो हवाएं चुभने लगी  है
स्निग्ध थी तन की लुनाई,खुरदुरी होने लगी है
पंछियों की चहचाहट ,हो गयी अब गुमशुदा है
बड़ी बदली सी फिजा है,रंग मौसम का जुदा है
लुप्त तारे,हुए सारे,चाँद  शरमाने   लगा है
                          कोहरा  छाने लगा है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Saturday, October 22, 2011

कौन हो तुम, ये बताओ?

कौन हो तुम, ये बताओ?
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देख तुमको मै चमत्कृत
हुए दिल के तार  झंकृत
देख कर सौन्दर्य प्यारा
हुआ पागल दिल हमारा
रूप का हो तुम खजाना
ह्रदय चाहे तुम्हे पाना
चन्द्र सा मुख,तुम सजीली
तुम्हारी चितवन  नशीली
भंगिमायें मन लुभाती
तुम सुरा सी मद मदाती
मोहिनी सुन्दर बड़ी हो
स्वर्ण की जैसे छड़ी  हो
खोल सारे  द्वार मन के
तुम्हारे संग मधु मिलन के
सपन प्यारे सजाता मै
क्योंकि लगता विधाता ने
तुम्हे फुर्सत से गढ़ा है
निखर कर यौवन चढ़ा है
रूप सुन्दर परी सा धर
आयी अम्बर से उतर कर
और ना अब तुम सताओ
कौन हो तुम, ये बताओ?

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

लक्ष्मी माता और आज की राजनीति

 लक्ष्मी माता और आज की राजनीति
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जब भी मै देखता हूँ,
कमालासीन,चार हाथों वाली ,
लक्ष्मी माता का स्वरुप
मुझे नज़र आता है,
भारत की आज की राजनीति का,
साक्षात् रूप
उनके है चार हाथ
जैसे कोंग्रेस का हाथ,
लक्ष्मी जी के साथ
एक हाथ से 'मनरेगा'जैसी ,
कई स्कीमो की तरह ,
रुपियों की बरसात कर रही है
और कितने ही भ्रष्ट नेताओं और,
अफसरों की थाली भर रही है
दूसरे हाथ में स्वर्ण कलश शोभित है
ऐसा लगता है जैसे,
स्विस  बेंक  में धन संचित है
पर एक बात आज के परिपेक्ष्य के प्रतिकूल है
की लक्ष्मी जी के बाकी दो हाथों में,
भारतीय जनता पार्टी का कमल का फूल है
और वो खुद कमल के फूल पर आसन लगाती है
और आस पास सूंड उठाये खड़े,
मायावती की बी. एस.  पी. के दो हाथी है
मुलायमसिंह की समाजवादी पार्टी की,
सायकिल के चक्र की तरह,
उनका आभा मंडल चमकता है
गठबंधन की राजनीती में कुछ भी हो सकता है
तृणमूल की पत्तियां ,फूलों के साथ,
देवी जी के चरणों में चढ़ी हुई है
एसा लगता है,
भारत की गठबंधन की राजनीति,
साक्षात खड़ी हुई है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Wednesday, October 19, 2011

ऊष्मा

ऊष्मा
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माँ की गोद,पिता की बाहें,या पति पत्नी का आलिंगन
इनकी ऊष्मा सुखप्रदायिनी ,जिसमे भरा हुआ अपनापन
भुवन भास्कर,दिन भर तप कर,देता सबको ऊष्मा से भर
टिम टिम करता,दीपक जल कर,दे प्रकाश,लेता है तम हर
पंचतत्व में ,अगन तत्व है,जो देता इस तन को सुषमा
इससे ही जीवन चलता है ,जग में बहुत  जरूरी  ऊष्मा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'   

मौसम बदला

मौसम बदला
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धूप कुनकुनी,नरम नरम दिन,और सौंधी सौंधी सी राते
साँझ चरपरी,भोर रसभरी,और खट्टी मीठी सी बातें
गरम जलेबी,गाजर हलवा,स्वाद भरा मतवाला  मौसम
छत पर धूप,तेल की मालिश,चुस्ती फुर्ती वाला मौसम
है स्वादिष्ट,चटपटा, मनहर,प्यारा मौसम मादकता का
और उस पर से छोंक लगा है, मधुर तुम्हारी सुन्दरता का
ये मौसम जम कर खाने का,छकने और  छकाने का है
नरम रजाई,कोमल कम्बल,तपने और तपाने का है
प्यारा प्यारा ठंडा मौसम,पर इसकी तासीर गरम है
सिहरन सी पैदा कर देती,तेरे तन की गरम छुवन है
तन की ऊष्मा,मन की ऊष्मा और फिर अपनेपन की ऊष्मा
मादक नयन ,गुलाबी डोरे,बढ़ जाती प्रियतम की सुषमा
सर्दी के आने की आहट,सुबह शाम है ठण्ड गुलाबी
गौरी के गोरे गालों की,रंगत होने लगी   गुलाबी
दिन छोटा,लम्बी है रातें,है ये मौसम मधुर मिलन का
सूरज भी जल्दी घर जाता,पल्ला छोड़ ,ठिठुरते दिन का
इस मतवाली,प्यारी ऋतू में,आओ हम सब मौज मनाएं
त्योंहारों का मौसम आया,आओ हम मिल दीप जलाएं

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'



Sunday, October 16, 2011

अपहरण

अपहरण
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जो अपनी बहन के अपहरण का
 बदला लेने के लिये,
पृथ्वीराज को हरवा दे,
उसे जयचंद कहते है
और जो खुद अपने मित्र अर्जुन के साथ,
अपनी बहन सुभद्रा को   भगवा दे,
उसे श्रीकृष्ण कहते है
लोगों की सोच में,
या अपहरण अपहरण में कितना अंतर है

मदन मोहन बहेती 'घोटू;

चंदा मामा और करवाचौथ

चंदा मामा और करवाचौथ
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जब भी कभी होती है पूनम की रात
मेरे मन में उठती रह रह यह बात
चाँद और सूरज  दोनों चमकते है
राहू और केतु दोनों को डसते  है
पर सूरज  हर दिन चमकता ही रहता
और  चाँद पंद्रह दिन बढ़ता फिर घटता
अमावस  की रात को चाँद कहाँ है जाता
और चंदा बच्चों का मामा क्यों कहलाता
औरते करवा चौथ को,क्यों पूजती है चाँद को
सामने छलनी रख,क्यों देखती  है चाँद को
मनन करने पर आया कुछ ज्ञान मन में
सभी प्रश्नों का किया समाधान हमने
चाँद की शीतलता जानी पहचानी है
चन्द्रमा दुनिया का सबसे बड़ा दानी है
सूरज से रौशनी वो लेता उधर है
बांटता दुनिया को,करता उपकार है
इसी दान वीरता और परोपकार के कारण
बढ़ता ही रहता है ,जब तक कि हो पूनम
और पूर्ण होने पर,अहंकार है  आता
इसी लिए रोज़ रोज़ फिर घटता ही जाता
चाँद को केरेक्टर थोडा सा ढीला है
वैसे भी तबियत का थोडा  रंगीला है
अहिल्या के किस्से से,औरतें घबरायी
चाँद को बना लिया उनने अपना भाई
कहने लगी बच्चों से,ये चंदा मामा है
भाई का फ़र्ज़ बहन कि इज्जत बचाना है
 फिर भी कर्वाचोथ का व्रत वो करती है
चाँद और अपने बीच,चलनी रख लेती है
जिससे बस धुंधली सी शकल ही नज़र आये
रूप देख चंदा की नीयत ना ललचाये
दुखी हो पड़ा रहता ,धुत्त ,सोमरस पीकर
इसीलिए अमावास को नहीं आता धरती पर

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Saturday, October 15, 2011

सूरज पसर गया

सूरज पसर गया
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दूर दूर तक बिखरे हुए घर
और घरों की छतों से,
आसमान की और झांकते हुए एंटीना
और  पानी से भरी, लदी,
काली काली काया वाली,
ढेरों टंकियां
कहीं कहीं  सर उठाते हुए,
मोबाईल के टॉवर
सड़क के किनारे,
नन्हे से कन्धों पर,
भविष्य का भारी बोझा लादे
बस्ते लिये हुए ,
बस का इंतजार करते हुए बच्चे
मसहरी छोड़,
अंगडाई लेती हुई ललनायें
पुरब के कोने से,
सूरज ने झाँका और,
खाली सी छतों पर,
पग फैला कर पसर गया
और सुबह हो गयी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Friday, October 14, 2011

काम ही पूजा है

काम  ही पूजा है
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निष्काम भाव से काम नहीं है होता
क्योंकि काम में काम बसा है होता
और काम ही पूजन है आराधन
आराधन के मन में भी रहता धन
आराधन  के बाद आरती   होती
बसी आरती में भी रति है होती
और आरती बाद भोग है चढ़ता
और भोग सम्भोग शब्द में बसता
काम ,रति,सम्भोग,सृजन क्रियाएं
करें आरती ,पूजन ,भोग चढ़ाएं

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 

पानी ही पानी

पानी ही पानी
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जब किसी सुन्दर सी लड़की की जवानी,
और चेहरे का पानी देख
किसी लड़के के मुंह में पानी आता है
तो वह उसे पटाने के लिए ,
पैसा पानी की तरह बहाता है
और जब प्यार परवान चढ़ता है
तो वह उससे पाणिग्रहण  करता है
 अपना घर बसाता है
गृहस्थी का बोझ,जब कंधो पर पड़ता है
साड़ी मौज मस्ती पर पानी फिर जाता है
और फिर वह घर चलाने के लिए
पसीना पानी की तरह बहाता है
कभी प्यार में,कभी मनुहार में
पानी पानी होता रहता है
बहुत कुछ  सहता है
और जब पानी सर के ऊपर से
गुजरने लगता है
उसकी आँखों से पानी बहता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रावण का पुनर्जन्म

रावण का पुनर्जन्म
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रामायण की कथा ,मुझे अच्छी लगती है
राम से बेटे,
सीता सी पत्नी,
और लक्ष्मण से भाई
आज के सन्दर्भ में,ये बातें,
अविश्वसनीय तो है,
मगर एक बात आज भी सच्ची लगती है
की रावण नाभि में,अमृत कुंड था,
ये तथ्य आज भी नज़र आता है
  हम हर साल दशहरे पर रावण को मारते है
पर हर अगले दशहरे पर, 
उसका पुनर्जन्म हो जाता है
कोई कितनी ही कोशिश करे,
उसका कुछ नहीं बिगड़ सकता
ये भ्रष्टाचार का रावण है
कभी मर नहीं सकता

मदन मोहन बहेती]घोटू'

 

एक चिठ्ठी -मनमोहन सिंह जी के नाम

एक चिठ्ठी -मनमोहन सिंह जी के नाम
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आदरणीय मनमोहन सिंह जी,
सादर प्रणाम
(राम राम नहीं करूँगा ,
वर्ना आप मुझे बी जे पी का समझ लेंगे
और ये चिठ्ठी दिग्विजय सिंह को दे देंगे)
दशहरे के दिन आपको टी वी पर देखा,
रामलीला मैदान में
हाँ,उसी राम लीला मैदान में,
जहाँ आपकी सेना ने,
युद्ध के सारे नियमो का अवलंघन कर,
रात के दो बजे,
लाठी चार्ज किया था,
सोती हुई महिलाओं और साधू संतो पर
आपने मंचासीन होकर,
सोनिया जी के साथ में
धनुष बाण लेकर हाथ में
कागज के पुतले रावण पर तीर चलाया
हर साल की प्रक्रिया को दोहराया
जैसे हर साल आप पंद्रह अगस्त पर,
लाल किले पर भाषण देते हुए,
अपनी मृदुल वाणी में बतलाते है
की मंहगाई घटा देंगे
भ्रष्टाचार मिटा देंगे
पर ये दोनों बढ़ते ही जाते है
आप कुछ नहीं कर पाते है
और इसे गठबंधन की मजबूरी बताते है
वैसे ही दशहरे के दिन तीर चलाने से,
भ्रष्टाचार का रावण नहीं मर पायेगा
आपका तीर खाने को बार बार,
हर साल दशहरे को आएगा
क्योंकि उसकी महिमा प्रचंड है
आप लोगों की कृपा से,
उसकी नाभि में ,अमृत कुंड है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

सानिध्य सुख

सानिध्य सुख
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मुझे मत ऐसे निहारो,मचल जाए मन न मेरा
इन नज़र की बिजलियों से,जल न जाये बदन मेरा
कौन सी उर्जा छुपी है,तुम्हारे तन की छुवन में
फैलती विद्युत तरंगें, शिराओं में और बदन में
तुम्हारे आगोश में आ ,जोश भरता  है उछाले
होश ही रहता कहाँ है,पास में आकर  तुम्हारे
प्यार की उष्मा तुम्हारे ,इस तरह तन को तपाती
मोम सा मन पिघल जाता,जब मिलन बाती जलाती
उस मिलन की वारुणी से,मचलता मदहोश मन है
तैर कर आनंद उदधि में,बदन में आती थकन है
डूब तुम में समा कर मन,दूर हो जाता जहाँ से
इस तरह मुझको सताना,बताओ सीखा कहाँ से
रसीला,मादक बहुत है,मिलन रस का मधुर प्याला
तुम्हारे सानिध्य का सुख,बड़ा ही अद्भुत  निराला

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रोटी मिलेगी

रोटी मिलेगी
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राहुल गांधीजी ,
आप किसी गरीब के घर जाते हो
दरवाजा खटखटाते हो
और मांगते हो ,रोटी मिलेगी
और वो गरीब परिवार
खुश होकर अपार
आपको  आलू की सब्जी पूरी खिलाता है
और धन्य हो जाता है
अगर वो ही गरीब परिवार
भूख से बेहाल
आपके घर आये
और गुहार लगाये
रोटी मिलेगी
तो सबसे पहले,
उसे आपकी सिक्युरिटी मिलेगी
फिर पोलिस वालों के  डंडे, तलाशी
थाने में इन्क्वायरी अच्छी खासी
 सुनने को बहुत खरी खोटी मिलेगी
हाँ,लोकअप में शायद,
खाने को जेल की रोटी मिलेगी

मदन मोहन  बाहेती 'घोटू'

Thursday, October 13, 2011

छोटी दुनिया-बड़ा नजरिया

छोटी  दुनिया-बड़ा नजरिया
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मैंने पूछा लिफ्ट  मेन से
ऊपर नीचे, नीचे ऊपर
बार बार आते जाते हो
लोगों को अपनी मंजिल तक,
रोज़ रोज़ तुम पंहुचाते हो
छोटे से इस कोठियारे में,
दिन भर टप्पा खाते रहते,
तुमको घुटन नहीं होती है?
लिफ्ट मेन बोला  मुस्का  कर
सर,ये तो अपनी ड्यूटी है
इससे ही रोटी मिलती है
लिफ्ट भले ही ये छोटी है,
पर इसमें दुनिया दिख जाती
हरेक सफ़र में नूतन चेहरा,
हर फेरे में नयी  खुशबूये
बार बार मेरे साथ
लिफ्ट में ऊपर नीचे जाकर
झूला झूलने का सुख पाकर
खुश होते हुए बच्चे
अचानक एक दूसरे से मिल जाने पर,
हाय, हल्लो करते हुए पडोसी
बच्चों के भरी स्कूली बेग थामती हुई
अस्त व्यस्त मातायें,
कोलेज जाने के नाम पर,
पिक्चर का प्रोग्राम बनाते हुए,
युवक युवतियां
अपने मालिक मालकिन की ,
बुराइयाँ करते हुए,
नौकर नौकरानियां
सुबह सुबह अख़बारों का बण्डल उठाकर,
दुनिया जहाँ की खबर बाँटने वाले,
न्यूज़ पेपर वेंडर
बहुओं की बुराई करती हुई सासें,
और सासों की आलोचना करती हुई बहुए
अपने पालतू कुत्ते को
पति से ज्यादा प्यार करती महिलाएं
बसों की भीड़ से उतर
पसीने में तर बतर
कुछ थके हारे पस्त चेहरे
अपनी बीबी के आगे भीगी बिल्ली बनते,
बड़े बड़े रोबीले साहेब
शोपिंग कर ढेरों बैगों का ,बोझ उठाये
थकी हुई पर प्रसन्न  महिलायें
हर बार
आती है एक नयी खुशबू की फुहार
नए नए परिधानों में
नए पुराने लोग
विभिन्न वेशभूषाएं
भिन्न भिन्न भाषाएँ
मुझको इस छोटे से घर में
हिंदुस्तान नज़र आ जाता
कभी बिछड़ों को मिलाता हूँ
कभी जुदाई के दृश्य देखता हूँ
ऊपर नीचे करते करते
मै रोज़ दुनिया के कई रंग देखता हूँ
और आप सोचते है की मुझे घुटन होती होगी
क्योंकि मै एक छोटे से डिब्बे में सिमटा हूँ
मै तो इस छोटे से डब्बे में भी,
खुश रहता हूँ, चेन से


मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

रचायें महारास ,हम तुम

आज छिटकी चांदनी है
मिलन की मधु यामिनी है
पूर्ण विकसा चन्द्रमा है
यह शरद की पूर्णिमा है
आओ आकर  पास हम तुम
रचायें महारास ,हम तुम
राधिका सी सजो सुन्दर
मै तुम्हारा कृष्ण बन कर
बांसुरी पर तान छेड़ूं
मिलन का मधुगान छेड़ूं
रूपसी तुम मदभरी सी
व्योम से उतरी परी सी
थिरकती सी पास आओ
बांह में मेरी समाओ
प्यार में खुद को भिगो कर
दीवाने मदहोश होकर
रात भर हों साथ हम तुम
रचायें महारास  हम तुम
चाँद सा आनन तुम्हारा
और नभ में चाँद प्यारा
मंद शीतल सा पवन हो
चमकता नीला गगन हो
हम दीवाने मस्त नाचें
लगे चलने गर्म साँसें
भले सब श्रिंगार बिखरे
मोतियों का  हार बिखरे
जाय कुम्हला ,फूल ,गजरा
आँख से बह चले  कजरा
तन भरे उन्माद हम तुम
रचायें महारास हम तुम

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Thursday, October 6, 2011

दशानन

दशानन
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लंकाधिपति रावण के,
दस सर थे ,पर,
पेट एक ही था
झुग्गीवाली गरीबी के रावण के  भी,
दस सर होते हैं,
मगर पेट भी दस होते है
इसीलिये,
एक राज करता था,
दूसरे रोते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Tuesday, October 4, 2011

दशहरे के दिन

दशहरे के दिन
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दशहरे के दिन,वो हमारे घर आये
बोले बच्चे रावण देखने गए हैं,
हमने सोचा,चलो हम आपको ही देख आयें
हमने कहा  सच ,होता बड़ा तमाशा है
रावण को देखने सब जाते हैं,
राम को देखने कोई नहीं जाता है
आप तो हमेशा से रूढ़ियाँ तोड़ते आये है
अच्छा हुआ,आप रावण देखने नहीं गये,
हमारे यहाँ आये है
पर वहां बच्चों को क्या मज़ा आएगा
आप तो यहाँ है,
बच्चों को रावण  कैसे  नज़र आएगा?

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Monday, October 3, 2011

हम नूतन घर में आयें है

हम नूतन घर में आये है
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नए पडोसी,नयी पड़ोसन
नया चमकता सुन्दर आँगन
नूतन कमरे और वातायन
      ये  सब मन को अति भाये है
       हम नूतन घर में आये है
कोठी में थे,बड़ी शान में
थे जमीन पर ,उस मकान में
आज सातवें आसमान में
        हमने निज पर फैलायें है
        हम नूतन घर में आये है
प्यारा दिखता उगता सूरज
सुदर लगता ढलता सूरज
धूप,रोशनी,दिन भर जगमग
        नवप्रकाश में मुस्काये है
        हम नूतन घर में आये है
तरणताल में नर और नारी
गूंजे बच्चों की किलकारी
 क्लब,मंदिर,सुख सुविधा सारी
          पाकर के हम हर्शायें है
          हम नूतन घर में आये है

झरने,फव्वारे खुशियों के

शीतल,तेज हवा के झोंक

ताक झांक करने के मौके
        इस ऊंचे घर में पायें है
     
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
(यह  कविता मेरे ओरंज काउंटी में
 आने के उपरान्त लिखी गयी है)

उस सर्दी की सुबह

उस सर्दी की सुबह
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सर्दी की देर सुबह,
जवान होती हुई कुनकुनी धूप'
अपने विकसते यौवन की ऊष्मा की,
 प्रखरता बिखरा रही थी
और सामनेवाली छत पर,
एक सद्यस्नाना सुमुखी,
अपने गीले बालों को
धूप में
सुखा रही थी
उसके श्यामल श्यामल केश,
उसके चन्द्र मुख पर,
कभी बादल से छाते थे,
कभी हट जाते थे
और रह रह कर'
उस छत पर,
पूनम के चाँद की छवि'
नज़र आ रही थी
पास की एक छत पर,
एक किशोर लड़का,
हाथों में लिए हुए किताब,
इधर उधर झांक रहा था
और दूसरी छत पर खड़ी,
जवान होती हुई लड़की को,
कनखियों से ताक रहा था
दूसरी छत पर,
रस्सी की तनी हुई तनी पर,
एक महिला,तनी तनी सी,
धुले हुए कपडे सुखा रही थी
हवा के प्रवाह से,
उसकी धुली हुई छोटी सी अंगिया,
बार बार उड़ कर गिर जाती थी,
और वह उसे,
सूखती साड़ी के नीचे दबा  रही थी
मै इन अद्भुत नजारों को,
देखने में मस्त था,
मगर घर के चौके से,
मक्की की रोटी और सरसों के साग की ,
सोंधी सोंधी खुशबू आ रही थी
मैंने आँखों का स्वाद छोड़ा,
और जिव्हा का स्वाद पाने के लिए,
रसोईघर की ओर दौड़ा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Sunday, October 2, 2011

हसरत और हकीकत

हसरत और हकीकत
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झांक कर के देखना या देख कर के झांकना
कुछ दिखे, इस ताक में,बस हर तरफ ही ताकना
तितलियों सी नज़र उडती,फूल कितने ही खिले,
एक पर जा कर कभी भी ,मगर टिकती आँख ना
चाहतों के पंख लम्बे,हैं उड़ाने दूर की ,
सभी चाहे चाँद पाना, मगर मिलता चाँद ना
सभी का मन लुभाती है,खुशबुएँ  पकवान की,
पेट घर की रोटियों  से ही पड़ेगा  पाटना
उनके घर के झाड़ फानूस ,देख कर ललचाओ मत,
लायेगा घर का दिया ही, झोंपड़ी में चांदना
आपकी की जूही कली ही, जिंदगी महकाएगी,
मिल सकेगा,दूसरों के बाग़ का गुलाब ना

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Saturday, October 1, 2011

ये उन्नत उन्नत युग्म शिखर

सागर की लहरों का योवन,सरिता का कल कल स्पंदन
ये उन्नत उन्नत युग्म शिखर,जिनमे हर पल हर क्षण कम्पन
जैसे पुष्पों में बिकसे फल,फल में भी पुष्पों का सौरभ
योवन के उपवन की बहार, माता की ममता के गौरव
इन  में   अपरिमित वात्सल्य ,ममता से भी ज्यादा ममत्व,
है घनीभूत इन पुंजों में,सुन्दरता का सारा रहस्य
ये मादकता से भी मादक,ये कोमलता भी कोमल
कितने सुंदर चंचल मनहर ,ये स्नेहिल ममता के निर्झर
जैसे की क्षीर सरोवर में ,हो खिले हुए दो श्वेत कमल
या एक साथ हो चमक रहे,ज्यों भुवनभास्कर ,रजनीकर
या सुधा भरे ये युगल कलश,ममता मादकता का संगम
कितना स्निग्ध कितना कोमल,ये गंगा जमुना का उदगम
इनके स्पंदन कम्पन में,मुखरित होते जीवन के स्वर
ये ज्योतिर्पुंज कर रहे है ,आलोकित प्रणय विभा सुंदर
जब खुद अपना ही ह्रदय भेद,कर प्रकटे है ये युग्म शिखर
तो औरों के उर भेदन में,इनको लगता केवल पल भर
मन को चुभ चुभसा जाता है,स्वछंद मचलता सा योवन
पर आलिंगन के बंधन में बढता है इनका तीखापन
सुन्दरता का रस छिपा हुआ है,इन्ही वक्र रेखाओ में
 नारी तन का सारा सोश्तव, सिमटा है इनकी बाँहों में
कटी कंचन कट विधि ने जब,ममता की माटी में घोला
अपनी सम्पूर्ण कलाओं को ,पहनाया यह जीवित चोला
गढ़ डाले ये स्तूप युगल, तो अमर हो गयी सुन्दरता
रह गया देखता खुद अपनी ,रचना को वह सृष्टिकर्ता
लख मूर्त रूप सुन्दरता का,यदि दोल गया आराधक मन
कोमल कगार पर फिसल गयी,चंचल दृग की चंचल चितवन
ये दोष नहीं है चितवन का,ये मौन निमंत्रण देते है
ये दो उभरे नवनीत शिखर ,जब खुद आमंत्रण देते है
पुष्पों का सौरभ पाने को,सबका ही मन ललचाता है
इनका आलिंगन पाने को,जी किसका नहीं चाहता है
वह नजर  नजर ही नहीं अगर,इनको देखे और न फिसले
वह जिगर जिगर ही नहीं अगर,इनको देखे और न मचले
वह रूप रूप ही नहीं अगर,उसमे कोई आव्हान न हो
सौन्दर्य सार्थक न तब तक,जब तक उसका रसपान न हो

These two hillocks (breasts)

Like tidal waves of oscean
And gentle flowing of river
These two beautiful hillocks
Are vibrant always, ever
Like fruits have grown on flowers
And having the fragrance of flowers
Blooming in the garden of youth
And proud possession of mother
They are full of love for child
And are symbols of motherhood’s pride
All the secrets of women’s beauty
Are concentrated on this hill site
They are more exciting then excitement
And are softer than softness
These fountains of love for child
Are beautiful and full of goodness
Like two lotus are blooming
In a poand that is milky white
Or sun and moon are shining
Both together in the night
Or these two pots full of nectar
Combination of excitement and motherhood
These origins of river ganga jamuna
Are so soft lovely and good
The vibrations of these hillocks
Are singing the song of life
These two objects of light
Are brightening lovers night
These two hillocks have come out
By piercing their own heart
It hardly takes a moment
To pierce any body’s heart
These bubbling symbols of youth
Pricks hearts of all with grace
But their sharpness increases
Manifold when you embrace
All the secrets of women’s beauty
Is hidden in these beautiful curves
The built up of women’s body
Is concentrated in these hemispheres
After cutting gold from body’s waist
God mixed it with motherhood’s charm
With all His artistic talents
Gave the mixture this beautiful form
He made these two lovely hillocks
And immortal beauty blazed
So beautiful was His creation
That He gazed and gazed and gazed
By seeing these symbols of beauty
If your heart get perplexed
On the peaks of these beautiful mountains
Your eyes remain stayed
This is not the fault of eyes
They silently call for attention
These two lovely hills of butter
Are giving you an invitation
Who will not like to enjoy
The soothing fragrance of flowers
Who will not like to embrace
These two beautiful towers
That eye is not an eye
Which does not look when they are sited
That heart is not a heart
Who sees them and is not excited
That beauty is not a beauty
If does not have attraction
The real meaning fullness of beauty
Is when it is enjoyed with passion