Monday, January 17, 2011

तेरी चिट्ठी के दो पन्ने

देते है सब की याद दिला
तेरी चिट्ठी के दो पन्ने
मन को छू छू कर जाते है
तेरी चिट्ठी के दो पन्ने
जब कंप्यूटर के इस युग में
ई मेल नहीं ,ख़त मिलता है
मोती से अक्षर से सज कर
पैगामे महोब्बत मिलता है
ख़त के हर अक्षर में खुशबू
आती घर ,माटी, आँगन की
तुम्हारे प्यार महोब्बत की
चाहत की और अपनेपन की
उस दिन तुम्हारी चिट्ठी में
तो स्वाद गजब का आया था
तुमने मक्का की रोटी और
सरसों का साग बनाया था
एक दिन गोबर की खुशबू थी
गाय का दूध दुहा होगा
थी महक एक दिन चुम्बन की
ख़त होटों से छुवा होगा
या खुशबू पुए पकोड़ों की
और रस की खीर महकती है
मन बेकल सा हो जाता है
सब यादें आने लगती है
कल की चिट्ठी के कुछ अक्षर
थोड़े धुंधले धुंधले से थे
ख़त लिखते लिखते आँखों से
शायद कुछ आंसू टपके थे
ख़त छोड़ अधूरा भागी तं
अम्मा ने बुला लिया होगा
या फिर शायद बाबूजी को
खांसी का दौर उठा होगा
मै हाथ फेरता चिट्ठी पर ,
आभास तुम्हारा होता है
खुशबू आती तेरे तन की
और साथ तुम्हारा होता है
सारे जज्बात उमड़ कर के
बस चिट्ठी में आ जाते है
मै बार बार चिट्ठी पढता 
आँखों में आंसू आते है
देते है मेरी नींद उड़ा
तेरी चिट्ठी के दो पन्ने
मन को छू छू कर जाते है
तेरी चिट्ठी के दो पन्ने


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