Sunday, February 6, 2011

तुम बोराये हो आम्र वृक्ष

फूली सरसों ,फूले पलाश
विकसे पुष्पों की मधु सुवास
सब देख देख कर आस पास
फागुन की मदमाती ऋतु में
  तुम बोराये हो आम्र वृक्ष
गेहूं की बाली थी खाली
अब हुई भरे दानो वाली
मदमस्त थिरकती मतवाली
बाली की बाली उम्र देख ,
     तुम बोराये हो आम्र वृक्ष
सुन गीत मद भरे कोकिल के
तुम हुए मंजरित चंचल से
यह सोच लदोगे कल फल से
सपनो में बेसुध मतवाले
     तुम बोराये हो आम्र वृक्ष
कुछ बौर झडेगे आंधी में
कुछ बन अचार या चटनी में
पक पायेगे कुछ रस भीने
नियति नीयत से अनजाने
   तुम बोराये हो आम्र वृक्ष
हर फल की नियति भिन्न भिन्न
हर फल का जीवन प्रश्न चिन्ह
कोई प्रमुदित है,कोई खिन्न
हर फल बिछ्डेगा फिर भी तुम
क्यों बोराए हो आम्र वृक्ष



 

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