Friday, February 18, 2011

ये उमर बुढ़ापे की भी होती कमाल है ,

कहने को तो हम हो रहे सत्तर की उमर के
दिल की उमर अभी भी सिर्फ सत्रह साल है
है बदन बदहाल और तन पर है बुढ़ापा ,
लेकिन मलंगी मन में ,मस्ती है ,धमाल है
हो जाए बूढा कितना भी लेकिन कोई बन्दर,
ना भूले मारने का गुलाटी खयाल है
जब भी कभी हम देखते है हुस्न के जलवे
बासी कढी में फिर से आ जाता उबाल है
ये बात सच है आजकल गलती है देर से,
लेकिन कभी ना कभी तो गल जाती दाल है
ना कोई चिंता है किसी की ,ना ही फिकर है
ये उमर बुढ़ापे की भी होती कमाल है










 ,

No comments:

Post a Comment