Saturday, February 19, 2011

मैंने तुम पर प्यार लुटाया ,बस ऐसे ही

मैंने तुम पर प्यार लुटाया ,बस ऐसे ही
जाने क्यों तुम पर दिल आया ,बस ऐसे ही
बसंती ऋतू ,मुस्काती थी ,महक रही थी
कूक रही थी कोयल ,चिड़िया चहक रही थी
मस्त पवन के मदमाते झोके आते थे
भंवरे गुंजन कर फूलों पर मंडराते थे
खेत सुनहरी सरसों के सरसाये ही थे
गेहूं की बाली में दाने आये ही थे
तुमने मादक अंगडाई ली थी अलसा कर
तिरछी नज़रों से देखा था ,कुछ मुस्का कर
उगते सूरज में सोने सा रूप लगा था
मेरे मन में ,प्यार तुम्हारे लिए जगा था
मुझ पर था खुमार सा छाया ,बस ऐसे ही
मैंने तुम पर प्यार लुटाया ,बस ऐसे ही


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