Sunday, February 20, 2011

उमर का आलम

उमर का हमारी ये कैसा है आलम
सत्तर का है तन और सत्रह का मन
रंगे बाल हमने,किया फेशियल है
छुपाये न छुपती,मगर ये उमर है
होता हमारा ये दिल कितना बेकल
हसीनाएं कहती,जब बाबा या अंकल
करे नाचने मन,मगर टेढ़ा आँगन
उमर का हमारी ये कैसा है आलम
बहुत गुल खिलाये ,जवानी  में हमने
उबलता था पानी,लगी बर्फ जमने
भले ही न हिम्मत बची तन के अन्दर
गुलाटी को मचले है ,मन का ये बन्दर
कटे पर है ,उड़ने को बेताब है मन
उमर का हमारी ,ये कैसा  है आलम

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