Saturday, February 5, 2011

एक कहानी -एक कविता

एक  कहानी -एक  कविता
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चला यात्री सूखा पत्ता एक अकेला
मिला राह में उसे एक मिटटी का ढेला
भले एक से दो कह निकले तीरथ करने
ये दो साथी अपना पूर्ण मनोरथ करने
न थी उन दिनों रेल न तांगा,मोटर गाडी
धीरे धीरे पग धरते दोनों बढे अगाडी
आंधी चली और तूफ़ान जोर का आया
पत्ते पर चढ़ ढेले ने था उसे बचाया
आगे आंधी रुकी जोर का बरसा पानी
पत्ते ने चढ़ ढेले पर थी छतरी तानी
उठते गिरते ,इसी तरह काटा सब रास्ता
गला न ढेला,और नहीं उड़ पाया पत्ता
एक दूसरे की रक्षा जब करते साथी
होते पूरे कार्य ,मुश्किलें सब हट जाती

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