Friday, May 27, 2011

फसल- कथावाचक संतों की

नयी उम्र की नयी फसल तो ,
हर युग में पैदा होती है,
लेकिन पिछले कुछ वर्षों से,
बुरी तरह से विकस रही है,
फसल कथावाचक  संतों की
हर मंदिर में ,हर तीरथ में,
और टी वी की कुछ चेनल में
नज़र कोई पंडित जी आते
कथा, भागवत गान सुनाते
उसमे भी आधे से ज्यादा
टाइम भजन ,कीर्तन गाते
बड़े भव्य से पंडालों में
कथा भागवत ये करते है
 और कथा में भी कमाई का,
जरिया ढूंढ लिया करते है
व्यासपीठ से बतलायेंगे
कल प्रसंग रुक्मणी विवाह का ,
जिनने खुद का हरण करा कर,
श्री कृष्णा से ब्याह रचाया
कन्यादान रसम में उनको,
इसीलिए कुछ ना मिल पाया 
इसीलिए रुक्मणी विवाह में,
जो भी श्रोता,
वस्त्राभूषण दान करेगा
उसको काफी पुण्य मिलेगा
कथा सुदामा की होगी  तो बतलायेगे
भक्त सुदामा मुट्ठी भर चावल लाये थे,
प्रतिफल में प्रभु ने कितना एश्वर्य दे दिया
जो श्रोता श्रीकृष्णा को चावल लायेगे
प्रभु कृपा से ,वो धन और दौलत पायेगे
और पुण्य के लोभी श्रोता,
इक दूजे की प्रतिस्पर्धा में
खुले हाथ से दान चढाते
और पंडितजी के भंडारे भरते जाते
बहुत लाभदायक ये धंधा,
इसमें इज्जत है, दौलत है,
बहुत नाम है और शोहरत है
कई बार मै सोचा करता,
कथा भागवत की है वो ही,
लेकिन बार बार सुनने को
इतनी भीड़ उमड़ती क्यों है?
किया विवेचन तो ये जाना,
कुछ संताने
मात पिता को भिजवाती है,
कथा भागवत की सुन कर के पुण्य कमाने
इसी बहाने,
थोड़े दिन तक बच जाते सुनने से ताने
और मिल जाती
कुछ दिन अपने ढंग से जीने की आजादी
और ऐसी ही सोच बुजुर्गों में भी होती,
वे भी खुद को,
रंगते कथा भागवत रंग से
थोड़े दिन तक ,जीवन जीते अपने ढंग से
इसीलिए ऐसे आयोजन में जनता उमड़ी आती है
और हर दिन फल फूल रहा है,
धंधा इन सब नव संतों का

मदन मोहन बहेती 'घोटू'

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