Sunday, May 29, 2011

होती गर जो मोबाईल मै

होती गर जो मोबाईल मै
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मेरे प्रीतम ,होती गर जो मोबाईल मै
बस ,बस कर ही रह जाती,तुम्हारे दिल में
तुम्हारे प्यारे हाथों में सिमटी रहती
होठों  से और गालों से बस चिपकी रहती
होता जब भी मेरे मन में वाइब्रेशन
तो झट से अपने हाथों में ले लेते तुम
मै खुश  रहती इसी आस में
सोवोगे रख मुझे पास में
और जब मेरी घंटी बजती
मै तुम्हारे होठों लगती
तुम मुस्काते
घंटों मुझसे करते बातें
छूकर टच स्क्रीन ,मुझे जब टच तुम करते
मुख पर कितने भाव उमड़ते
'सेमसंग' की तरह सदा मै रहती संग में
'स्पाइस' की तरह चटपटी रहती मन में
नहीं दूसरा 'सिम' ,आने देती जीवन में
और मोबाईल होने पर भी,
साथ तुम्हारे हरदम टिकती
तुम्हारी महिला मित्रों के,
सारे एस एम एस  तुम्हारे
सबसे पहले मुझको मिलते,
मै उनको डिलीट कर देती बस एक पल में
मेरे प्रीतम ,होती गर जो मोबाईल मै

मदन मोहन बहेती 'घोटू'

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