Thursday, May 5, 2011

प्रेम रस

प्रेम रस
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भले कंटीली तीखी अंखिया
भले रसीली मीठी बतियाँ
गोरा आनन  चाँद सरीखा
सुन्दर नाक नक्श सब तीखा
भले अंग अंग हो मदमाया
बदन छरहरा ,कंचन काया
नाज़ुक,कमसिन,यौवन पूरा
पर सारा सौन्दर्य अधूरा
भरे न पिया ,प्रेमरस गागर
तब तक न हो रूप उजागर

मदन मोहन बहेती घोटू'

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