Thursday, May 12, 2011

कलयुग

   कलयुग
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आज कल के  गीत गाते ,बुरा बतला कर पुराना
कौन कहता है बदलता ,जा रहा है ये ज़माना
वही मिटटी ,वही कंकर,और वैसी ही धरा है
वही नीला नभ चमकता,और उदधि भी भरा है
है वही मौसम,हवाएं भी वही,दिन रात वो ही
है चमकता वो ही सूरज,और तारे ,चाँद वो ही
तो बदल फिर क्या गया है ,कोई तो हमको बताये
क्या पुराने जमाने में,था नहीं ,अब आ गया है
राम के युग में नहीं क्या,बाँध बांधे जा रहे थे
उन दिनों क्या नहीं पुष्पक ,व्योम में मंडरा रहे थे
और रावण जा रहा था ,स्वर्ग तक सीढ़ी लगाने
अमरिका और रूस जैसे ,लग गयें है ,चाँद जाने
उन दिनों भी कैद रावण ने वरुण को कर लिया था
जिस तरह हम पी रहे हैं ,नलों का पानी पिया था
उन दिनों हनुमान जैसे , उड्डयक थे,यान भी थे
सूर्य तक को ढक लिया,ऐसे किये अभियान भी थे
वारिधि पर शोध करना ,देव दानव ने किया था
मेरु सा जलपोत लेकर,समुन्दर को मथ दिया था
उन दिनों ब्रम्हास्त्र ,एटम बम से कुछ कम नहीं था
चल गया तो रोक ले ,कोई ,किसी में दम नहीं था
चिकित्सा विज्ञानं भी इतना समुन्नत कर लिया था
ह्रदय में रावण ने अपने, कुंड अमृत धर लिया था
उन दिनों अवतार शायद अविष्कारों को बताया
कृष्ण थे या क्रेन,गोवर्धन कभी जिसने  उठाया
और मच्छ  अवतार क्या था ,कुछ नहीं ,जलयान थे वो
बनी पनडुब्बी ,न कछुवा रूप  में भगवान थे वो
बराह का अवतार जिसने,धरा को बाहर निकाला
आज के बुलडोज़रों की तरह ही था यंत्र न्यारा
सेटेलाइट उन दिनों,अवतार वामन का कहाये
जो कि तीनो लोक को थे तीन पग में नाप आये
और हलधारी हुआ,अवतार था बलराम का जो
आजकल के ट्रेक्टरों कि तरह ही कुछ काम था जो
 उन दिनों भी रेडियो कि तरह थी आकाशवाणी
दिव्यदृष्टी ,टेलीविजन से कई वर्षो पुरानी 
उन दिनों भी पत्रकारों कि तरह नारद कई थे
और गोकुल के कन्हैया,डांस में कुछ कम नहीं थे
औरतों का राज तब भी था,अभी भी छा रहा है
बताओ ना,जमाने में, क्या बदलता जा रहा है
मदन मोहन बहेती 'घोटू'


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