Sunday, May 29, 2011

बँटी हुई माँ

बँटी हुई  माँ
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जिसने बांटा
प्यार बराबर सब बेटों में
आज बँट रही वो माँ अपने ही बेटों में
अब बूढी हो गयी अकेली है ,अशक्त है
भूख नहीं लगती,खाने से मन विरक्त है
दस बारह गोली दवाई की नित खाती है
मिनिट मिनिट में बात भूलती,बिसराती है
कमर झुक गयी ,होती है चलने में दिक्कत
मन ना लगता सुनने में अब कथा ,भागवत
दूर गाँव में खाली पड़ी,हवेली उसकी
बची नहीं पर कोई सखी,सहेली उसकी
ख्याल हमेशा जो रखती रहती हम सबका
पर कुछ करना,नहीं रहा अब उसके बस का
अब आश्रित है बेटों पर,कुछ ना कहती है
थोड़े थोड़े दिन  हर एक के घर रहती है
अब भी प्यार लुटाती है ,बेटी बेटों में
आज बँट रही वो माँ अपने ही बेटों में

मदन मोहन बहेती 'घोटू'

 

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