Thursday, May 5, 2011

चाह

    चाह
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प्रियतम!
मै नहीं चाहती,
चाय की पत्ती की तरह,
तुम संग ,घुलूं,मिलूँ,
और तुम मेरा सारा रस लेकर
मुझे ,शेष स्वादहीन पत्तियों की तरह
फ़ेंक दो
मै तो,
इंस्टंट कोफी की तरह
तुम में घुल मिल कर,
एक रस हो कर जीना चाहती हूँ
इसीलिए ,चाय नहीं ,
कोफी पीना  चाहती हूँ

मदन मोहन बहेती 'घोटू'

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