Friday, June 10, 2011

तुम खरबूजे,मै खरबूजा

तुम खरबूजे,मै खरबूजा
हम दोनों में फर्क बहुत क्यों,
एक है मीठा ,फीका दूजा
एक जात के हम दोनों,
फिर भी क्यों है इतना अंतर
लोग मुझे कहते है दानव,
तुम कहलाते,देव,पैगम्बर
लोग घृणा करते है मुझसे,
तुम्हारी होती है पूजा
तुम खरबूजे,मै खरबूजा
 रूप रंग में बड़ा फर्क है,
अलग अलग हम क्यों दिखते है
इतना रंग भेद क्यों होता,
हम सस्ते,महंगे बिकते है
सब खरबूजे, फिर भी,कोई,
'सिंह''खान' है,कोई 'डिसूज़ा'
तुम खरबूजे,मै खरबूजा
है विभिन्न रंगों के गूदे,
कहीं सफ़ेद,हरा,  या पीला
अलग,अलग है रंग रक्त का,
देखो प्रभु की कैसी लीला
खरबूजे को देख बदलता ,
है क्यों रंग ,हरेक खरबूजा
तुम खरबूजे,मै खरबूजा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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