Thursday, July 14, 2011

मोडर्न एटिकेट

मोडर्न एटिकेट
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आज के इस आधुनिक समाज में
अपना जीवन अपने ढंग से जीने को भी,
हो गया हूँ मोहताज मै
बनावटीपन से भरी ,खोखली सी जीवन पद्धिति का,
आदमी इस कदर गुलाम हो गया है
कि जीने का मज़ा ही खो गया है
खिलखिला कर ठहाके मार कर हँसाना,
दुखी होने पर दहाड़े मार  कर रोना
पाँव पसार कर बैठना,
पलटियां मार कर सोना
और सोकर उठने पर अंगडाइया  लेना,
या फिर जोरदार जमहाईयां लेना
खुजली होने पर अंगों को खुजाना
खुश होने पर मस्ती में गाना
ये सारी क्रियायें, जिनसे मन होता आनंदित है
'मोडर्न एटिकेट' में प्रतिबंधित है 
न खुल कर छींक सकते हो,
न खर्राटे भर कर सो सकते हो
न डट कर खाने के बाद डकार ले सकते हो
न कुल्ले कर के मुंह धो सकते हो
और तो और ,कोमल से आम कि फांको को
काँटों से चुभा चुभा,खाया जाता है
जब कि आम का असली मज़ा,
गिलबिलाकर चूसने में आता है
चाय के कप में बिस्कुट डुबा कर खाना,
और चाय,प्लेट में डाल कर सुडबुडाना,
सबडके लेकर,खीर कि कटोरियाँ सटकना ,
और उँगलियों से श्रीखंड चाट कर गटकना
सच,इनमे आता कितना स्वाद है
पर ये आधुनिक तौर तरीकों के खिलाफ है
उदर से वायु का निस्तारण,
करते में, यदि होता शोर है
तो इस पर किसका जोर है
यह तो एक नेसर्गिक क्रिया है
पर इसे 'बेड मैनर्स '(bad manners ) का नाम दिया है
 हर एक बात में 'एक्स्कुज़ मी '(excuse  me ) की फोर्मिलिटी(formility )
हर अवसर पर एक कार्ड  भिजवाने की औपचारिकता,
बहुत दिनों के बाद किसी  अपने के मिलने पर,
प्रेम से झप्पी नहीं लेकर,
गाल से गाल मिलाना,
खोखली सी हंसी से मुस्कराना,
क्या इसे ही कहते है आधुनिकता
मै तो हूँ वही करता हूँ
जिसमे है मुझे आनंद मिलता
तुम मुझे कितना ही असभ्य कहो,
ऐसी आधुनिकता से,आया हूँ बाज मै
आज के इस आधुनिक समाज  में

मदन मोहन बहेती'घोटू'


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