Tuesday, August 30, 2011

शांति से क्रांति

शांति से क्रांति
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आज देश में,अग्निवेश में,कितने ही जयचंद छुपे है
दुराग्रही और अड़ियल कितने,कुटिलों को हम जान चुके है
ये चाहे जो करे कोई भी,नहीं विरोध प्रकट कर सकता
वरना तुमको गाली देने,रहते है तैयार  प्रवक्ता
कहने को तो जन प्रतिनिधि है,पर करते हैं तानाशाही
लूट खसोट हो रही कितनी,कितनी बढ़ा रहे मंहगाई
गीता कहती,जब धरती पर,घटता धर्म,पाप बढ़ता है
करने तभी धर्म की रक्षा,इश्वर को आना पड़ता  है
खुद में छुपी हुई ताकत को,जब हनुमत ने था पहचाना
लांघ समुद्र ,नहीं मुश्किल था,वापस  सीताजी को लाना
जब भी अत्याचार बढ़ा है,जागृति का संचार हुआ है
रावण हो या कंस,अंत में,सबका ही संहार हुआ है
भ्रष्टाचार मिटाने का यह,मुहीम चलाया है अन्ना ने
गाँव गाँव और गली गली में,अलख जगाया है अन्ना ने
देखो जन सैलाब उमड़ता,नयी क्रांति की राह यही है
भष्टाचार मुक्त भारत हो,जन जन की अब चाह यही है
अब जनता ,गुस्सा आने पर,तांडव ना,उपवास करेगी
और शांति से,नयी क्रांति का,उद्भव और विकास करेगी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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