Saturday, August 20, 2011

तुम्हे क्या आपत्तियां है

तुम्हे क्या आपत्तियां है
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आज हमतुम है अकेले,बुझ गयी सब बत्तियां है
                    तुम्हे क्या आपत्तियां है
तुम्हे कोई देख ना ले,इसलिए  आती शरम है
तुम्हे ढंग से अँधेरे में,देख भी पाते न हम है
देख तुम्हारी शरम को,चाँद छुप कर झांकता है
रूप का कैसा खजाना,छुपा कर तुमने रखा है
तुम्हे छूने में हवांए,भी सहम ,कतरा रही है
आई जो खुशबू तुम्हारी,चमेली शरमा रही है
छुई मुई की तरह तुम,लाजवंती हो लजीली
तुम्हारा स्पर्श मादक,तुम्हारी नज़रें नशीली
मै मधुप प्रेमी तुम्हारा,चाहता रसपान करना
कभी शरमा कर सिमटना,कभी मुस्का कर झिझकना
हुई बेकल मधु मिलन को,हमारी अनुरक्तियाँ है
                      तुम्हे क्या आपत्तियां है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

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