Thursday, August 4, 2011

आज घिरे है फिर से बादल,

आज घिरे है फिर से बादल,शायद बारिश हो सकती है
एसा जब जब भी होता है,आशाएं मन में जगती है
लेकिन कितनी बार हवाएं,भटका देती है बादल को,
अपने साथ बहा ले जाती,कुछ दीवानी सी  लगती है
श्यामल श्यामल,मनहर बादल,जब छाते है आसमान में,
कब बरसेंगे,प्यास बुझाने,आस लगा,धरती  तकती है
लेकिन बादल आवारा से,थोडा बरस,दूर जा भगते,
कुछ बूंदों से,बरस बरस की,लेकिन प्यास नहीं बुझती है
फिर से आयेंगे,फिर फिर के,और बरसेंगे फिर जी भर के,
पिया मिलन की आस संजोये,धरती विरहन सी लगती है

मदन मोहन बहेती 'घोटू'

No comments:

Post a Comment