Monday, December 12, 2011

थोड़ी सी तुम भी पहल करो

थोड़ी सी तुम भी पहल करो
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शृंगार
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यह मधुर मिलन की प्रथम रात,ऐसे ही बीत नहीं जाये
तुम्हारे मधुर अधर का रस,मै पी न सकूँ,मन ललचाये
ये झिझक निगोड़ी ना जाने,क्यों खड़ी बीच में बन बाधा
चन्दा सा मुखड़ा घूंघट से,बस दिखता है आधा आधा
जो ललक ह्रदय में है मेरे,तुम्हारे मन में भी होगी
तुमको छू  लूं ,मन करे,झिझक,तुम्हारे मन में भी होगी
यदि ये सब यूं ही बना रहा,तो कैसे होगा मधुर मिलन
जाने फिर कैसे टूटेंगे,ये शर्मो हया के सब बंधन
जब मेहंदी लगे हाथ की ही,छुवन है इतनी उन्मादक
जब तन तुम्हारा छू लूँगा,तो क्या होगी मेरी हालत
तुम्हारे चन्दन से तन की,है खुशबू ने बेचैन करा
मन में उमंग,तन में तरंग,है अंग अंग में जोश भरा
तुम मौन सिमट कर बैठी हो,मै भी कुछ शरमाया सा हूँ
कैसी होगी प्रतिक्रियाये,तुम्हारी,घबराया सा हूँ
ये मन बेचैन मचलता है,इसको मत ज्यादा विकल करो
मै भी थोड़ी सी पहल करूं,तुम भी थोड़ी सी पहल करो

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

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