Sunday, July 8, 2012

आशा की डोर

        आशा की डोर

आसमां को देखते थे रोज इस उम्मीद से,

          घुमड़ कर बादल घिरें,और छमाछम  बरसात हो
ताकते थे अपनी खिड़की से हम छत पर आपकी,
          दरस पायें आपका और आपसे  कुछ   बात हो
बादलों ने तो हमारी बात ससरी मान ली,
          और वो दिल खोल बरसे,  बरसता है प्यार ज्यूं
हम तरसते  ही रहे पर आपके दीदार को,
          आपने पूरी नहीं की,मगर दिल की आरजू
हो गयी निहाल धरती ,प्यार की बौछार  से,
            सौंधी सौंधी महक से वो गम गमाने लग गयी
और हम मायूस से है,मिलन के सपने लिये,
            बेरुखी ये आपकी  दिल को जलाने  लग गयी
मोर नाचे पंख फैला,बीज  बिकसे खेत में,
            बादलों की बरस से मन सभी का हर्षित  रहा
भीगने को बारिशों में तुम भी छत पर आओगी,
              ये ही सपने सजा छत को देखता  मै नित रहा
और मुझको आज भी है,आस और विश्वास  ये,
              तमन्नायें मेरे दिल की एक दिन रंग लायेगी
बारिशों में आई ना तो  सर्दियों में  आओगी,
               कुनकुनी सी धुप जब छत पर  तुम्हारे छायेगी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


    
       
                

No comments:

Post a Comment