Saturday, November 30, 2013

जीवन की चाल

              जीवन की चाल
बचपन में घुटनो बल चले ,डगमग सी चाल थी,
                     उँगली पकड़ बड़ों की,चलना सीखते थे हम
 आयी जवानी ,अपने पैरों जब खड़े हुए ,
                      मस्ती थी छायी और बहकने लगे कदम
चालें ही रहे चलते उल्टी ,सीधी ,ढाई घर ,
                       उनको हराने ,खुद को जिताने के वास्ते ,
सारी उमर का चाल चलन ,चाल पर चला ,
                     आया बुढ़ापा ,लाठी ले के चल रहे है हम
घोटू

हम गुलाब है

       हम गुलाब है

छेड़ोगे तो चुभ जायेंगे ,कांटे है बदन पर ,
                   सूँघोगे ,देंगे  तुमको ख़ुशबू  लाजबाब हम 
दिखते है पंखुड़ी पंखुड़ी अलग ,मगर एक है,
                    हैं एकता और भाईचारे की किताब  हम
मसलोगे तो गुलकन्द ,उबालो तो इत्र बन,
                    आयेंगे काम आपके ,बस बेहिसाब हम
काटोगे डाली ,रोप दोगे ,फिर से उगेंगे ,
                     महका देंगे जीवन तुम्हारा ,हैं गुलाब हम

घोटू

बलात्कार

           बलात्कार

कितने ही स्थानो पर ,कितनी ही बार
डाक बंगलों में,सूनी जगहों में ,
इधर उधर या सरे बाज़ार
हो जाता है बलात्कार
कितनी ही महिलाओं की ,इज्जत लूटी जाती है
उनमे से आधी से ज्यादा ,
सामाजिक कारणो से ,सामने नहीं आती है
कुछ की रिपोर्ट पुलिसवाले नहीं लिखते,
कुछ की रिपोर्ट ,लिखाई नहीं जाती है
रोज होते है ,कितने ही ऐसे बलात्कार
पर नहीं बनते है हेडलाइन के समाचार
ब्रेकिंग न्यूज तब बनती है जब कोई,
वी आई पी ,नेता ,संत या हाई प्रोफाइल वाला
किसी कन्या से करता है मुंह काला
और जब पीड़िता साहस करती है,
करने का  अपनी पीड़ा उजागर
तो बार बार टी वी के चेनलों पर
उस घटना की बखिया उधेड़ी जाती है
बिना सोचे कि इससे पीड़िता ,
कितनी और पीड़ा पाती है
पर उनकी तो टी आर पी बढ़ जाती है
ये बलात्कारी कैसे होते है ,
इन्हे कैसे है पहचाना जाता
जब भी ,किसी के अंदर का पशु ,
जहाँ कहीं भी है जग जाता
हो जाता वो उद्दण्ड ,भूल जाता मर्यादा
और अपनी हवस मिटाने को ,
क्या क्या कर जाता
उन्माद के क्षणों में ,
जब कुछ कर गुजरने की असीम उत्कंठा ,
विवेक का गला दबा देती है ,
मस्तिष्क निष्क्रीय हो जाता है ,
और पशुता पड़  जाती है भारी
आदमी बन जाता है बलात्कारी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Friday, November 29, 2013

मैं सुई हूँ

       मैं  सुई हूँ

तीखी बातें दिल को चुभती ,मिर्च तीखी चरपरी
मगर मै तीखी बहुत हूँ,आत्म गौरव से  भरी
बड़ी दुबली पतली सी हूँ,मगर मुझ में तेज है
एक तरफ से हूँ नुकीली ,एक तरफ से छेद  है
साथ में लेकर के धागा ,मै फटों  को टाँकती
मगर दुनिया ,नहीं मेरी ,सही कीमत आंकती
खाल मानव ओढ़ता था ,लायी हूँ मै सभ्यता
मेरी ही तो बदौलत है ,इन्सां कपड़ों से सजा
कभी इंजेक्शन में लग कर ,डालती तन में दवा
अच्छे अच्छे टायरों की,निकलती मुझसे हवा
दिखने में हूँ क्षीणकाया ,और छुई मुई हूँ
मै सुई हूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

मन उच्श्रृंखल

          मन उच्श्रृंखल

इधर उधर भटका करता है ,हर क्षण,हरपल
मन उच्श्रृंखल 
कभी चाँद पर पंहुच ,सोमरस पिया करता
कभी चांदनी साथ किलोलें ,किया करता
करता है अभिसार कभी संध्या के संग में
हो जाता है  लाल , कभी  उषा  के  रंग में
कभी तारिकाओं के संग है मौज मनाता
कभी बांहों में,निशा की,बंध  कर खो जाता
सो जाता है कभी ओढ़ ,रजनी  का आँचल
मन उच्श्रृंखल
कभी किरण के साथ ,टहलने निकला करता
कभी भोर के साथ ,छेड़खानी  है करता
कभी पवन के साथ,मस्त होकर है  बहता
कभी कली के आस पास मंडराता रहता
कभी पुष्प रसपान किया करता ,बन मधुकर
कलरव करता ,कभी पंछियों के संग ,उड़ कर
नहीं किसी के बस में ये दीवाना ,पागल
मन उच्श्रृंखल  
 
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

समझदार औरतें

          समझदार औरतें

              फायदा
सर्दियों के शुरू होने के पहले ,
खरीदती है गर्मियों के कपडे
और गर्मियों केशुरु होने पर,
ऊनी कपडे खरीद कर लाती है
सुनने में तो अजीब लगता है,
लेकिन कुछ समझदार औरतें,
'ऑफ सीजन डिस्काउंट सेल'का ;
फायदा इस तरह उठाती है

           देर से आने की दुआ

बच्चे देर से आते हैं ,तो घबराती है
पति देर से आये तो खफा हो जाती है
मगर 'डोमिनो 'में पिज़्ज़ा का ऑर्डर देकर ,
उसके देर से आने की दुआ मनाती है

घोटू

तीन सामयिक क्षणिकाए

तीन सामयिक क्षणिकाए
            साहस
फंसे कानूनी फंदे में ,बड़े नामी थे एडीटर
बहुत जो संत पूजित थे ,आज है जेल के अंदर
कृष्ण खुद को बताते थे ,भटकते साँई है दर दर
एक लड़की के साहस ने ,दिया है देखो क्या क्या कर

           पुलिस वाले
हम पुलिस वाले है
हमारी मजबूरियों के भी अंदाज निराले है
आज की  राजनैतिक व्यवस्था को कोसते है
क्योंकि कल तक डंडे से ठोकते थे,
आज उन्हें सलाम ठोकते है

          नया कुत्ता
मेरी गली के ,दूसरी मंजिल के फ्लेट में,
किसी ने एक कुत्ता पाला
गली के कुत्तो ने ,उसकी आवाज सुनी ,
हंगामा कर डाला
उनकी गली में नया कुत्ता आ जाये ,
वो हजम ना कर पाये
इसलिए ,उसके फ्लेट के नीचे ,
भोंकते रहे,चिल्लाये
पर जब   कुछ बस न चला तो चुपचाप,
रिरियाते ,अपने आप
फ्लेट की नीची सीढ़ी के आसपास ,
कर के चले गए पेशाब

घोटू 
 

Thursday, November 28, 2013

जवानी सलामत रहे

               जवानी सलामत रहे

नाती ,पोते पोतियों की शादियां होने लगी ,
                उसपे भी हम कहते हैं कि सलामत है जवानी
इसी जिंदादिली ने है अभी तक ज़िंदा रखा ,
                  वरना अब तक खत्म हो जाती हमारी कहानी
बुढ़ापा तन का नहीं,अहसास मन का अधिक है ,
                   जंग हमको बुढ़ापे से ,लड़ते रहना   चाहिये
सोचता है जिस तरह ,इंसान बनता उस तरह,
                    हमेशा खुद को जवां ,हमको समझना चाहिये
घोटू     

नाम

             नाम

होते है सबके अलग अलग ,अपने नाम है
कुछ नाम कमाते है करके नेक काम  है
होते ही पैदा सबसे पहले मिलती चीज जो ,
होती जो तुम्हारी है ,वो तुम्हारा  नाम है
बच्चे के पीछे नाम रहता उसके बाप का,
बीबी के पीछे रहता वो शौहर का नाम है
करते है बुरे काम जो,बदनाम वो होते,
बदनाम जो हुए तो क्या,उसमे भी नाम है  
लगती जो पीछे नाम के दुम जात पात की,
होता बिगड़ना चालू ,यहीं पर से काम है
होता है शुरू सिलसिला ,अलगाव ,बैर का,
बंट  जाता कई खेमो में,इंसान आम है
कुछ राजनेता और थोड़े धरम के गुरु,
लगते चलाने अपनी अपनी ,सब दुकान है
है ईंट वही,चूना वही,वो ही पलस्तर ,
रंग जाते अलग रंग में ,सबके मकान है
तन जाती क्यों तलवारें है ,मजहब के नाम पर,
अल्लाह है वो ही,वो ही यीशु ,वो ही राम है
खिलता हुआ चमन है अपना मादरे वतन ,
हैम एक है और एक अपना हिन्दुस्थान है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

गांधी जी

             गांधी जी

कहते तो हैं वो गाधीजी को राष्ट्र का पिता ,
               बेटों ने अपने बाप के संग,देखो क्या किया
गड्ढों  भरी कुछ सड़कें बची ,उनके नाम की ,
              गांधीजी के सिद्धांतों को,सबने भुला दिया
लाखों ,करोड़ो नोटों पे,गांधी को छाप के ,
                रिश्वत के लेन देन  का,जरिया बना दिया
 गांधी की टोपी पहन के ,नेताजी बन गए ,
                  खद्दर पहन के खुद का मुकद्दर  बना लिया
गांधी का नाम लेके सत्ता से चिपक गये ,
                   जम्हूरियत को पुश्तेनी ,धंधा बना दिया
मारी थी गोडसे ने सिरफ तीन गोलियां,
                    सीने को इनने गांधी के ,छलनी बना दिया
गांधी को बेच बेच के,लिंकन को खरीदा ,
                     जाकर विदेशी बेंक में ,सारा  जमा किया
गांधी का सपना कोई मुकम्मल नहीं किया ,
                     सपनो को उनने अपने ,मुकम्मल बना लिया

मदन मोहन बाहेती'घोटू'                     

जलने सभी लगे

              जलने सभी  लगे

घर के चिराग सब के सब ,अब तक थे गुल पड़े ,
                 सूरज को ढलता देख कर ,जलने सभी लगे
दिखलाते थे हमदर्दियां ,बिगड़े  नसीब पर ,
                सूरज जो चमका भाग्य का ,जलने सभी लगे
जब तक नहीं वो पास थे ,हम बेकरार थे ,
                   जीवन था कुछ बुझा बुझा ,मायूस बड़े थे ,
उनने जो छुआ प्यार से,आया करंट यूं,
                    अंगों में आग लग गयी , जलने सभी लगे

घोटू  

Wednesday, November 27, 2013

आइना

         आइना

आईने में खुद को ऐसे तुम, देखो नहीं अगर 
बेचारे आईने को कहीं लग गयी नज़र
तुम तो संवर के ,सज के ,चली जाओगी कहीं,
हो जाए 'क्रेक 'आइना ,बेचारा  बेखबर

घोटू 

तहलका

              तहलका
तरुण भी है,तेज भी है ,कलम में भी जोर है ,
कितनो का ही भंडा फोड़ा,जब भी मिल मौक़ा गया
लिफ्ट में एक रूपसी ने लिफ्ट उनको नहीं दी ,
बात बिगड़ी इस तरह कि तहलका सा मच  गया

घोटू

Monday, November 25, 2013

खुश्की -सर्दियों की

     खुश्की -सर्दियों की

इधर खुजली ,उधर खुजली
जिधर देखो, उधर खुजली
खुश्क अब सारी  त्वचा है
सर्दियों की ये सजा   है
क्रीम कितने ही चुपड़ लो
तेल की मालिश भी कर लो
पर मुई ये  नहीं जाती
रात दिन हमको सताती
पहले आती कभी जब ,तब
उसका कुछ होता था मतलब
हाथ में जब कभी आती
खर्च या इनकम कराती
पाँव में जो कभी आये
यात्रा हमको कराये
आँख कि खुजली बीमारी
खुजलियां  थी ,कई सारी
सर्दियों में तो मगर अब
हो रहे है ,हाल बेढब
हर जगह और हर ठिकाने 
चली आती है सताने

घोटू

जीवन के दो रंग

     जीवन के दो रंग
               १
बचपने में लहलहाती घास थे
मस्तियाँ,शैतानियां ,उल्लास थे
ना तो थी चिता कोई,ना ही फिकर ,
मारते थे मस्तियाँ,बिंदास थे
                २
हुई शादी ,किले सारे ढह गये 
दिल के अरमां ,आंसुओं में बह गये 
लहलहाती घास ,बीबी चर गयी,
पी गयी वो दूध ,गोबर रह गये

घोटू 

संतरा और नीबू

             संतरा और नीबू

संतरा और नीबू ,
एक ही वंश के फल है
पर संतरे में होता है मिठास
इसमें होता है विकास
और ये बनता है फल ख़ास
इसकी हर फांक स्वतंत्र हो जाती है
जिन्हे छील छील कर खाया जाता है
और आनंद उठाया जाता है
पर इसके भाई नीबू में होती है खटास
वह छोटा  का छोटा ही रहता है,
विकस नहीं पाता है
अपनी फांकों को स्वतंत्र नहीं होने देता ,
इसलिय काट कर और निचोड़ कर ,
काम में लाया जाता है
इसलिए अपने स्वभाव में ,
मिठास लाओ
संतरे के गुण अपनाओ
 
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

माँ-मेहरबां

            माँ-मेहरबां

आसमां में माँ है,माँ का दिल है फैला आसमां
चन्द्रमा   में माँ है ,माँ की आँखों में है चन्द्रमा
कैसी भी औलाद हो ,रखती हमेशा ख्याल है,
प्यार बच्चों के लिए ,मन में बसा बेइन्तहां
रख्खा है ,नौ माह जिसने ,तुम्हे अपनी कोख में,
तुम सलामत ,खुश रहो,माँगी हमेशा ये दुआ
खुदा की रहमत मिलेगी ,इबादत माँ की करो,
उसके कदमो  में है जन्नत,रहमदिल वो रहनुमा
कितने ही तीरथ करो तुम ,व्रत करो,पूजन करो,
सबसे ज्यादा पुण्य मिलता ,माँ के चरणो को दबा
माँ नहीं,साक्षात् ये तो रूप है भगवान  का ,
करो वंदन ,इसमें बसते ,सारे देवी ,देवता

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Saturday, November 23, 2013

मै हूँ उल्लू

      मै  हूँ उल्लू

मै लक्ष्मी जी का वाहन हूँ ,लोग मुझे कहते है उल्लू
लक्ष्मी जी की पूजा करते ,मुझसे झटकाते  है पल्लू
दिन भर पति के पाँव दबाती ,लक्ष्मी जी,पति के सोने पर
जहाँ ,जिधर जाना होता है,निकला करती,रात होने पर
इसीलिये उनको तलाश थी ,चाह  रही थी वाहन  ऐसा
जिसे रात में ही दिखता हो,जो उल्लू हो,मेरे  जैसा
जब से उनने मुझको पाया ,उनकी सेवा में,तत्पर मै
लिया न उनका कोई फायदा,अब भी रहता उजड़े घर में
समझदार यदि जो मै होता,उनको ब्लेकमेल  कर लेता
वो सबको ,इतना कुछ देती ,मै भी अपना घर भर लेता
पर यदि मैं ऐसा कुछ करता ,वो निकाल देती सर्विस से
मेरा नाम जुड़ा लक्ष्मी संग ,मैं बस खुश रहता हूँ इससे
मैं कितना  भी उल्लू हूँ पर ,मेरे मन में एक गिला है
मुझको नहीं ,लक्ष्मी संग में ,कभी उचित स्थान मिला है
सभी देवता और देवी संग ,पूजे जाते हैं वाहन भी 
विष्णुजी के साथ गरुड़ जी,शिवजी के संग जैसे नंदी 
सरस्वती जी,हंस वाहिनी,शेरोंवाली  दुर्गा माता
किन्तु लक्ष्मी ,साथ मुझे भी,कभी ,कहीं ना पूजा जाता
लेकिन समझदार बन्दे ही,जाना करते परम सत्य है
वाहन या वाहन चालक का ,दुनिया में कितना महत्त्व है
मुझको अगर रखोगे फिट तुम,काम तुम्हारे आ सकता हूँ
तुम्हारे घर भी लक्ष्मी को,गलती से पहुंचा सकता हूँ
मैं भी परिवार वाला हूँ, भले नहीं खुद लाभ उठाता
अपने भाई बंधुओं के घर ,लक्ष्मी जी को ,मैं पहुंचाता
अब इतना उल्लू भी ना हूँ,लोग भले ही समझें लल्लू
मैं लक्ष्मी जी का वाहन हूँ,लोग मुझे कहते है उल्लू

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Friday, November 22, 2013

क्रोध


            क्रोध
देखो गुस्से में क्या क्या क्या ,कर देता इंसान
ले लेता  है जान किसी की ,ले लेता है जान
कभी कूद जाता है छत से ,यूं ही परेशानी में
कभी छलांग लगा लेता है ,गंगा के पानी में
कभी नोचता बाल स्वयं के ,मार पीट है करता
बीबी,बच्चे,घरवालों पर ,रहता व्यर्थ बिगड़ता
कभी डाल कर केरोसिन है खुद को आग लगाता
शिशुपाल की तरह गालियां देता,सर कटवाता
हानि लाभ और यश अपयश तो,होता प्रभु के बस है
फिर भी क्रोध किया करता क्यों,हो जाता बेबस है
वो क्यूँ,कैसे और क्या करता ,होंश नहीं रहता है
और बाद में पछताता है ,पीड़ाएं सहता  है
क्रोध बड़ा दुश्मन मानव को कर देता हैवान
देखो गुस्से में क्या क्या क्या ,कर देता इंसान
(ऑरेंज काउंटी में हुए हादसे के सन्दर्भ में -भगवान
अंकुर गुप्ता ,सारिका और पार्थ की आत्मा को शांती
प्रदान करे और उनके परिवार को इस कुठाराघात की
पीड़ा सहने की शक्ती प्रदान करे )
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Thursday, November 21, 2013

माँ बीमार है
दिल थोडा कमजोर हो गया,घबराता है
थोडा सा भी खाने से जी मचलाता  है
आधी से भी आधी रोटी खा पाती है
अस्पताल का नाम लिया तो घबराती है
साँस फूलने लगती जब कुछ चल लेती है
टीवी पर ही कथा भागवत सुन लेती है
जी घबराता रहता है ,आता बुखार है
माँ बीमार है
प्रात उठ स्नान ध्यान पूजन आराधन
गीताजी का पठन, आरती, भजन कीर्तन
फिर कुछ खाना,ये ही दिनचर्या होती थी
और रात को हाथ सुमरनी ले सोती थी
ये दिनचर्या बीमारी में छूट गयी है
कमजोरी के कारण थोड़ी टूट गयी है
बीमारी की लाचारी से बेक़रार है
माँ बीमार है
फ़ोन किसी का आता है,खुश हो जाती है
कोई मिलने आता है,खुश हो जाती है
याद पुरानी आती है,गुमसुम हो जाती
बहुत पुरानी बाते खुश हो होकर बतलाती
अपना गाँव मकान , मोहल्ला याद आते है
पर ये तो हो गयी पुरानी सी बाते है
एक बार फिर जाय वहां ,मन बेक़रार है
माँ बीमार है
बचपन में मै जब रोता था,माँ जगती थी
बिस्तर जब गीला होता था,माँ जगती थी
करती दिन भर काम  ,रात को थक जाती थी
दर्द हमें होता था और माँ जग जाती थी
अब जगती है,नींद न आती ,तन जर्जर  है
फिर भी सबके लिए काम , करने तत्पर है
ये ममता ही तो है ,माँ का अमिट प्यार है
माँ बीमार है
उसके बोये हुए वृक्ष फल फूल रहे है
सभी याद रखते है पर कुछ भूल रहे है
सबसे मिलने ,बाते करने का मन करता
देखा उसकी आँखों में संतोष झलकता
और जब सब मिलते है तो हरषा करती है
सब पर आशीर्वादो की बर्षा करती है
अपने बोये सब पोधों से उसे प्यार है
माँ बीमार है
यही प्रार्थना हम करते हैं हे इश्वर
उनका साया बना रहे हम सबके ऊपर
जल्दी से वो ठीक हो जाये पहले जैसी
प्यार,डांट  फटकार लगाये पहले जैसी
फिर से वो मुस्काए स्वर्ण दन्त चमका कर
हमें खिलाये बेसन चक्की स्वम बना कर
प्रभु से सबकी यही प्रार्थना बार बार है
माँ बीमार है

शहनाइयां और बेंड

     शहनाइयां और बेंड

पहले ,जब होती थी शादियां
तब बजा करती थी शहनाइयां
और शादीशुदा जिंदगी में जीवनभर
गूंजते थे ,शहनाई के मधुर स्वर
पर, आजकल ,शादियों में,
 बेंड बजा करता है
और आदमी का जीवन भर
बेंड बजा करता है
घोटू

अंगरेजी -क्षणिकाए

     अंगरेजी -क्षणिकाए
                  १
      अंग्रेजी चक्कर
अंगरेजी चक्कर में,
संस्कार 'फेड'हुए
जीवित माँ ,बनी 'ममी '
पिताजी 'डेड'हुए
              २ 
            हाय
पड़ोसी लड़के से ,
हाय,हाय करती लड़की ,
प्यार में इतना पगलाई ,
उसके संग भग गयी
घरवाले बोले ,
हाय,हमारी बेटी को ,
किसकी हाय लग गयी
                ३
          पॉटी
अंगरेजी परिपाटी
पॉट पर बैठ कर ,करो तो 'पॉटी  '
मगर आजकल देशी लोग ,
जो लोठा ले जंगल जाते है
उसे भी 'पॉटी 'बतलाते है
                ४
             बाथरूम 
छोटा बच्चा चिल्लाया
मम्मी ,बाथरूम आया
बाथरूम अचल था
बच्चा बेकल था
मम्मी आयी और हुई लालपीली थी
बच्चे की चड्डी गीली थी
                ५
         परमोशन
एक पड़ोसन से बोली ,दूसरी पड़ोसन
आज तुम्हारे पति  जी ,हैं घर पर
क्या बीमार  है,गए नहीं दफ्तर
पड़ोसन बोली, नहीं ,कोई खास बात नहीं,
तबियत तो है ठीक,हुए है,पर 'मोशन '
दूसरी बोली ,मिठाई खिलाओ ,
मुबारक हो पति जी का परमोशन
                   ६
       लेट आउंगा
मातहत ने साहब को फोन किया ,
आज ट्रेन से आरहे है बच्चे ,बीबी साथ ,
मै ज़रा लेट आउंगा
अगर आपकी परमोशन पाउँगा
साहब ने जबाब दिया गुस्से में  थे 
अगर लेटना ही है ,
तो छुट्टी क्यों नहीं ले लेते 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

विवाह -क्षणिकाएं

          विवाह -क्षणिकाएं
                      १
      चूड़ियाँ
उनके प्यार का स्क्रू ,
एक एक चूड़ी ,चढ़,
दिल पर चढ़ गया ,
एक दम टाइट हो है
उनके हाथों में ,
नौ नौ चूड़ियाँ जो है
                 २
      अंगूठी
'रिंग सेरेमनी '
ये प्रथा है अनूठी
शादी के रिश्ते को,
'ओ'रिंग 'की तरह
'सील' करके रखती है,
सगाई की अंगूठी
                    ३
    वरमाला
वर ने वधू  को,वरमाला पहना दी
क्योकि फूलों की थी ,
वधू  ने ,वैसी ही ,दूसरी लौटा दी
अबकी बार वर ने,
वधु के गले में ,
सोने का मंगलसूत्र डाल दिया 
सोने को देख वधू  ने
यह प्रक्रिया नहीं दुहराई ,
इस तरह सोने ने ,
दोनों को एक सूत्र से बाँध दिया
              ४
        सोचो ,समझो और करो
एक विवाह के अवसर पर
एक बुजुर्ग बाँट रहे थे ,एक पुस्तक ,मित्रवरों!
'सोचो,समझोऔर करो,
                 ५
         खरबूजा
प्यार किया उसने
या प्यार किया तुमने ,
एक समझदार ने ये बूझा
कटा तो खरबूजा
                 ६
         अंदाज
समझदार लड़के
पहले लड़की का मुंह नहीं ,
पैर देखते है झुक के
लोग समझते है शरमीले है,
पर उनका अंदाज है जुदा
पैरों की  उँगलियों में ,बिछुवा को देख कर ,
पहले ही जान लेते है ,
कंवारी है या शादीशुदा
                 ७
             मांग
एक समझदार,
 कंवारी लड़की ने
रचाया ये  स्वांग
भरली अपनी मांग
मन में ये विचार के
शादीशुदा पर लड़के ,
लाइन नहीं मारते

मदन मोहन बाहेती'घोटू '

Tuesday, November 19, 2013

घर घर की कहानी

     घर घर की कहानी

रहो मिल ,बन दूध ,पानी
जिंदगी होती    सुहानी
दूध ही  कहलाओगे तुम
काम में आ जाओगे तुम
तेल,पानी सा न बनना 
कभी भी होगा मिलन ना
तैरते   ही  रहोगे  पर
अलग  अलग ,लिए स्तर
काम कुछ भी आओगे ना
मिलन का सुख पाओगे ना
प्यार हो जो अगर सच्चा
साथ रहना तभी अच्छा
एक में जल भाव जो है
एक तेल स्वभाव  जो है
साथ  ये  बेकार का  है
बस दिखावा  प्यार का है
भिन्न हो विचारधारा
मेल क्या होगा तुम्हारा
अलग रहना ही सही है
क्योंकि सुखकर बस यही है
अलग निज पहचान तो है
आप आते काम तो है
भले ना सहभागिता है
स्वयं की उपयोगिता है
बात यूं तो   है  पुरानी
किन्तु घर घर की कहानी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

आ गया चुनाव है

       आ गया चुनाव है

मुफलिसी और बदनसीबी ,झेलना मुश्किल बहुत 
अगर झगडालू हो बीबी,   झेलना  मुश्किल बहुत
भूख,बदहाली ,गरीबी,    झेलना  मुश्किल बहुत
आधासीसी हो या टी बी ,झेलना  मुश्किल बहुत
                          झूंठे वादे और भाषण ,झेल अब ना पाएंगे
                           मीठी बातें,आश्वासन,झेल अब ना पाएंगे
                        चीर खींचे जो दुःशासन ,झेल अब ना पाएंगे
                        भ्रष्ट हो ,ऐसा कुशासन , झेल अब ना पाएंगे
रोज के   आरोप,  प्रत्यारोप में क्या रख्खा है
कोल माईन या कि बोफोर तोप में क्या रख्खा है
रोज की झूंठी दिलासा  ,होप  में क्या   रख्खा है
इस तरह नाराजगी और कोप में क्या रख्खा है
                          बहुत हैं हम चोंट खाये,  आ गया चुनाव है
                           बदल डालें व्यवस्थाएं ,आ गया चुनाव है
                          नहीं भ्रष्टों को जिताएं  ,आ गया  चुनाव है
                          नयों को भी आजमाएं ,आ गया चुनाव है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Monday, November 18, 2013

रजाई-मन भायी -सर्दी आयी

       रजाई-मन भायी -सर्दी आयी

अभी तक हम ओढ़ते थे चादरें
आयी सर्दी,चादरें ,उससे  डरें
कुछ दिनों कम्बल का ही सम्बल रहा
पर नहीं अब कम्बलों में बल रहा
पड़ी जबसे ,सर्दियों की ग़ाज है
आजकल बस रजाई का राज है
नरम ,सुन्दर,मुलायम और मखमली
ओढ़ने में बहुत लगती है भली
उष्मा का संचार ये तन में करे
सदा जिसमे दुबकने को मन करे
कितनी है नरमाई इसके तन भरी
सर्दियों में रात की ये सहचरी
मज़ा आता इसे तन पर ओढ़ कर
जी नहीं करता है जाओ छोड़ कर
पहलू में निज बाँध ये लेती हमें
शयन का भरपूर सुख देती हमें
सर्दियों की होती  खुश नसीबी है 
एक रजाई और संग में बीबी है
जब भी आते इनके हम आगोश में
सच बता दें,नहीं रहते होंश में
इस तरह से ,रजाई मन भाई है
आजकल गरमाई ही गरमाई है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

चुनाव-तीन क्षणिकाएं

          चुनाव-तीन क्षणिकाएं
                        १
          चुनाव
       चूना  या नाव
जिसे' नाव' याने 'बोट' मिलते है
उसका बेड़ा हो पार  जाता है
और उसे 'चूना' लगता है ,
जो बाजी हार जाता है
                     २
चुनाव ,एक शादी है
जिसमे दुल्हन एक ,और कई प्रत्याशी है
और दुल्हन किसको बनाएगी वर
इसका निर्णय करते है 'वोटर'
जो सारे होते बाराती है
                    ३
जब भी कोई दल ,सत्ता में आता है
उस प्रदेश या देश के वृक्ष पर ,
अमर बेल की तरह छा जाता है
अपना अस्तित्व कायम रखने के लिए ,
वृक्ष को सुखाता है
और खुद हराभरा होकर ,फैलता जाता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Sunday, November 17, 2013

प्यार ,दिल के तार और चाशनी


   प्यार ,दिल के तार और चाशनी

आदमी की जिंदगी में ,पहली पहली बार
जब जुड़ते है दिल के तार
याने हो जाता है प्यार
तो उसकी मिठास
होती है कुछ ख़ास
जैसे चीनी और पानी
जब मिल कर गरम किये जाते है ,
तो बनती है चाशनी
शुरू शुरू में चाशनी होती है एक तार की
जैसे जवानी वाले प्यार की
अपने प्यार की गरम गरम जलेबी ,
इस में तल कर डालो
और प्यारी  और करारी लज्जत पा लो
या तुम्हारी महोब्बत का गुलाबजामुन
इसमें डूब कर रस से परिपूर्ण हो जाएगा
खाओगे तो बड़ा मज़ा आएगा
जैसे जैसे उमर बढ़ती जाती है
ये चाशनी दो तार की हो जाती है
इसमें जब प्यार का सिका हुआ खोया ,
या भुना हुआ बेसन मिलाओगे  
तो कलाकंद या बर्फी की तरह जम जाओगे
उसका नरम  और प्यारा स्वाद
दिल को देगा आल्हाद
और बुढ़ापे में चाशनी ,उमर के साथ
तीन तार की बनने लगती है
अपने आप जमने लगती है
इसमें जिसे भी डालो ,
उसी के साथ चिपक कर जम जाती है
उसी की होकर बाहर  साफ़ नज़र आती है
जैसे खुरमा या  चिक्की
कड़क भी होती है और देर तक रहती है टिकी
तो मेरे प्यारे दोस्तों ,मत शरमाओ
दिल के तारों को ,चाशनी के तारों से मिलाओ
और प्यार के मिठास का ,
हर उमर में आनन्द उठाओ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

दिल की बात

         दिल की बात

दिल,शरीर का वो अंग है
जैसे कोई पम्प है
जिसका काम ,रक्त को पम्प कर,
नसों में प्रवाहित  करना है
और जीवन में गति भरना है
यह प्रोसेस है मेकेनिकल
और यह क्रिया चलती है निरंतर
जिस दिन ये पम्प बंद होता
आदमी चिर निंद्रा सोता
लेकिन इस दिल की  मशीन को ,
हम भावनाओं से क्यों जोड़ते है
कभी दिल जोड़ते है,कभी दिल तोड़ते है
कभी दिल जलता है,कभी दिल बुझता है 
कभी दिल लगता है ,कभी दिल कुढ़ता है
कभी किसी पर दिल आता है
कभी किसी के लिए तड़फ जाता है
कभी हम दिल मसोस कर रह जाते है
कभी हम दिल में करार पाते है
प्यार होने पर दिल मिल जाते है
जुदाई में दिल टूट जाते है
पर डाक्टरों के हिसाब से ,प्यार होने में ,
दिल की कोई भूमिका नज़र नहीं आती है
हाँ,प्रेम की कुछ प्रक्रियाओं में ,
दिल की धड़कन,कम ज्यादा हो जाती है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

सर्दियों का सितम -बुढ़ापे में

सर्दियों का सितम -बुढ़ापे में

बुढ़ापे में यूं ही ढीली खाल है
सर्दियों के सितम से ये हाल है
हाथ जो थे पहले से ही खुरदुरे ,
                    आजकल तो एकदम झुर्रा गये
महकते थे डाल पर सर तान के
गए दिन,जब बगीचे की शान थे
एक एक कर पंखुड़ियां गिरने लगी ,
                     आजकल हम  और भी कुम्हला गये
रजाई में रात ,घुस ,लेटे रहे
और दिन भर धूप में बैठे रहे
गले में गुलबंद ,सर पर केप है,
                       ओढ़ कर के शाल हम  दुबका गये 
 हमें अपनी जवानी का वास्ता
कभी मियां मारते थे फाख्ता
सर्दियों में चमक चेहरे की गयी ,
                       गया दम ख़म,अब बुरे दिन आ गये 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Wednesday, November 13, 2013

सुप्रभातम्

           सुप्रभातम्

प्रातः की लुनाइयां सब, हो मुबारक
पवन कि शहनाइयां सब, हो मुबारक
लालिमा सिन्दूर सी जिसने बिखेरी ,
उषा की अंगड़ाइयां सब, हो मुबारक
आ रही है दबे पाँव ,चुपके चुपके,
भोर के आने की आहट ,हो मुबारक
तरुओं की डाल पर कर रहे कलरव,
पंछियों की  चहचहाहट ,हो मुबारक
झांकती सी किरण की चंचल निगाहें ,
दिखाती मुख,हटा घूंघट,हो मुबारक
डाल पर खिलती कली की सकुचाहट ,
और भ्रमर की गुनगुनाहट ,हो मुबारक
छुपा कर मुख ,सितारों की  ओढ़नी में ,
हो रही है,रात रुखसत,हो मुबारक
सजा कर निज द्वार तोरण आज प्राची ,
कर रही नवदिवस स्वागत,हो मुबारक
बांटता है सूर्य ,ऊर्जा ,बैठ जिसमे ,
सप्त अश्वों का रवि रथ ,हो मुबारक
आज का दिन ,आपको सुख ,समृद्धी दे,
खुशी बरसे,भली सेहत ,हो मुबारक

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Tuesday, November 12, 2013

मौसम सर्दियों का

         मौसम  सर्दियों का

उनने ओढ़ी ,शाल काली ,अपना तन ऐसे ढका ,
                     जैसे सूरज बादलों में ,छुप गया ,ढलने लगा
उनने पहना ,श्वेत स्वेटर ,तो हमें ऐसा लगा ,
                     ढक गए है पहाड़ उनपर ,बर्फ है  पड़ने  लगा
हाथ उनके ,कमल जैसे ,दस्तानों से ढक गए,
                     ज्यों कमल के सरोवर में ,कोहरा हो छा गया
हममे भी सिहरन हुई और उनमे भी सिहरन हुई ,
                      ऐसा लगता है कि मौसम ,सर्दियों का आ गया

घोटू


इलेक्शन आ गया

       इलेक्शन आ गया

लगी बिछने खेल की  है  बिसातें,
                       ऐसा  लगता है  इलेक्शन आ गया
अपने अपने मोहरे सब  सजाते ,
                        ऐसा लगता है इलेक्शन  आ गया
सत्ताधारी गिनाते उपलब्धियां ,
                         और विरोधी दलों को है कोसते
अपनी नाकामयाबियों का ठीकरा ,
                           सब विपक्षी दलों पर है फोड़ते
घोषणा पत्रों में देखो सब के सब,
                              मुंगेरी सपने तुम्हे  दिखलायेंगे
काम छांछट साल में कुछ ना किया ,
                              पांच सालों में वो कर दिखलायेंगे
एक दूजे को है देते गालियां ,
                              खींचते एक दूसरे की  टांग है
वोट की मछली पकड़ने के लिए ,
                               धरते बगुले भगत जी का स्वांग है
कहीं पर है खेल जातिवाद का ,
                               धर्म पर दंगे  कहीं  करवा  रहे
राजनिती का खुला हम्माम है ,
                                सभी नंगे नज़र हमको आ रहे
बांटते  है खुल्ले हाथों हर तरफ ,
                                 मिठाई  आश्वासनों की लीजिये
जोड़ कर के हाथ सब विनती करें,
                                 वोट अबकी बार हमको दीजिये
बाद में रंग अपना असली दिखाते,
                                  रंग  बदलने  का है  मौसम आ गया 
लगी बिछने खेल की है बिसाते ,
                                   ऐसा लगता है इलेक्शन  आ गया

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

Monday, November 11, 2013

सर्दियों की दस्तक

        सर्दियों की दस्तक 

                          
नारियल के तेल में अब ,
श्वेत श्वेत कुछ रेशे
           ऐसे मंडराने लगे है
जैसे झील के किनारे ,
विदेशी सैलानी पक्षी,
            फिर से अब आने लगे है
अंग जो तरंग  भरते ,
उमंगें  नयी तन में,
            अब ढके जाने लगे है
सांझ  आये ,सिहरता तन
क्योंकि  सूरज देवता भी ,
              जल्दी घर जाने लगे है
गरम गरम चाय ,काफी,
प्याज ,आलू के पकोड़े
                आजकल  भाने लगे है
दे रही है  शीत दस्तक,
ऐसा लगता सर्दियों के,
                अब तो दिन आने लगे है  
घोटू 

Sunday, November 10, 2013

मनेगी कैसे दिवाली -अपनी तो है प्लेट खाली

  मनेगी कैसे दिवाली -अपनी तो है प्लेट खाली

बिन मिठाई यूं ही जी कर
करेले का ज्यूस  पी कर
                  मनेगी  कैसे दिवाली
जलेबी,रसगुल्ले ,चमचम
रोज खाना चाहता मन
                       मगर अपनी प्लेट खाली
तला खाना नहीं मिलता
तेल दीये में है जलता
                      और हम बस जलाएं दिल
लोग सब पकवान खाते
और हमको है पकाते
                        हमारे  संग यही मुश्किल
रक्त में है शकर संचित
इसलिए है हमें वर्जित
                       स्वाद सब मिठाइयों का
खाएं सब गुलाब जामुन
हमें मिलता सिर्फ चूरन
                       वो भी जामुन गुठलियों का

भले होली या दिवाली
दवाई की  गोली  खाली
                       लगे है प्रतिबन्ध सारे
कैसा ये त्योंहार प्यारा
मीठा ना हो मुंह हमारा
                         नहीं कुछ आनंद प्यारे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Saturday, November 9, 2013

रावण दहन

                 रावण दहन

आज मारो एक रावण,दूसरा कल फिर खड़ा है
और अगले बरस वाला ,आज वाले से बड़ा है
दर्प का रावण हमेशा ,तामसी है, तमतमाता
भेष धर कर साधू का ,सदभाव की सीता चुराता
मान का हनुमान लेकिन ,ढूँढता  सीता ,निरंतर
पार करता,लांघ जाता ,प्रलोभन के ,सब समंदर
और उसकी ,पूंछ प्रिय पर,आग जब रावण लगाता
कोप कपि का उग्र होकर ,स्वर्ण की लंका जलाता
धर्म और विवेक ,बन कर ,राम,लक्ष्मण ,सदा आते
वानरों की फ़ौज लेकर,गर्व रावण का मिटाते
हर दशा में,दशानन के ,अहम् का है हनन होता
हम मनाते हैं दशहरा और   रावण  दहन होता

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

टायर ,हवा और हम

       टायर ,हवा और हम

जब तलक थे नौकरी में ,शान से चलते थे हम ,
                       भरी हो जिसमे हवा ,हम  ऐसे टायर की तरह
घिसा टायर और रिटायर हुए तो ऐसा लगा ,
                          हवा सारी निकाली ,कोई ने पंक्चर की तरह
जोड़ कर पंक्चर को फिर से भरो तुम ताज़ी हवा ,
                           आपको महसूस होगी ,एक नयी सी ताज़गी
रिटायर टायर में रीट्रेडिंग करा कर देखिये ,
                            नया लुक आ जाएगा और जायेगी बढ़ जिंदगी
टायरों में जो हवा का ठीक हो प्रेशर ,अगर,
                              तभी गाडी ठीक चलती ,वरना जाती डगमगा
आदमी की  जिंदगी  में ,बड़ी आवश्यक हवा ,
                                  हवा से ही सांस है और जिंदगी का सिलसिला
वायु के विकार से ,आती कई है व्याधियां ,
                                   इसलिए यह जरूरी है,नियंत्रित  वायु  रहे
करें प्राणायाम निश  दिन ,घूम लें ताज़ी हवा ,
                                     स्वस्थ तब ही रहे तन मन,दीर्घ ये आयु रहे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

रात अच्छी नींद आयी

         रात अच्छी नींद आयी

कष्ट ना कुछ,नहीं पीड़ा
न ही काटा  कोई कीड़ा
 रात सारी मधुर सपनो में ही खो कर के बितायी
                                     रात अच्छी नींद आयी
मै थका था,तुम थकी थी
नींद भी गहरी लगी  थी
नहीं हर दिन कि तरह से ,भावनाएं कसमसाई
                                      रात अच्छी नींद आयी
रही दिन भर व्यस्त इतनी
हो गयी तुम पस्त इतनी
पडी बिस्तर पर तुम्हारे ,पड़े खर्राटे सुनायी
                                   रात अच्छी नींद आयी
नींद में ग़ाफ़िल हुई तुम
मौन पसरा रहा ,गुमसुम
करवटें हमने न बदली ,ना ही खटिया चरमराई
                                   रात अच्छी नींद आयी
रहे डूबे  हम मजे में  
नींद के मादक नशे में
क्या पता कब रात गुजरी ,क्या पता कब भोर आयी
                                      रात अच्छी नींद आयी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'         


Friday, November 8, 2013

बेझिझक आनंद लें हम

      बेझिझक आनंद लें हम

दोस्ती मेरी तुम्हारी       ,दुग्ध जैसी ,शुद्ध पावन
पर झिझक कि खटाई का,ज़रा सा पड़ गया जावन
जम गया है दूध सारा ,बन गया है दही सुन्दर
शीघ्र इसका स्वाद ले लें ,कहीं खट्टा जाय ना पड़
दूध का तो ले न पाये ,दही का ही स्वाद ले लें
मधुर सी लस्सी बनाकर ,क्यों न हम आल्हाद ले लें
नहीं तो मथनी समय की,बिलो कर घृत छीन लेगी
और फिर तो छाछ खट्टी ,सिर्फ ही बाकी बचेगी
और तुमको कढ़ी बनने ,उबलना फिर से पडेगा
दूध के गुण ना मिलेंगे,स्वाद थोडा सा बढ़ेगा
क्यों नहीं फिर दूध का ही ,बेझिझक आनंद लें हम
या दही उसका जमा दें,नहीं फटने ,मगर दें हम

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

पत्नियां भारी पड़े है

          
          पत्नियां भारी पड़े है
आप माने या न माने बात पर ये है हकीकत ,
पतियों पर हमेशा ही,पत्नियां भारी पड़े है
बात मेरी ना तुम्हारी ,हरेक घर का है ये किस्सा ,
हार जाते सूरमा भी,इनसे जब नयना लड़े है
चाहते है आप गर ये ,शांति हो,सदभाव घर में ,
बात बीबी कि हमेशा ,मानना तुमको पडेगा
उनकी सब फरमाइशों की,पूर्ती करना है जरूरी ,
राज़ सुखमय गृहस्थी का ,जानना तुमको पडेगा
पत्नीजी के हर कथन को ,श्लोक गीता का समझना ,
होता है चौपाई मानस की वचन जो भी कहे वो
उनकी हाँ में हाँ मिलाओ,गहने लाओ ,गिफ्ट लाओ ,
ग़र्ज ये है करो वो सब ,जिससे खुश हरदम रहे वो
अगर वो खुश,खुशी घर में,वो दुखी तो घर दुखी है,
वो है भूखी तो तुम्हे भी ,भूखा ही रहना पडेगा
बात उनकी गलत भी हो,मानना तुमको पड़ेगी ,
रात को वो दिन कहे तो,तुम्हे भी कहना पडेगा
एक समझौता है शादी ,मगर ये होता हमेशा ,
पत्नियां झुकती नहीं है,पति ही है नमा करता
पति कि यह दुर्गति क्यों,सताया जाता पति क्यों ,
बलि का बकरा हमेशा ,पति ही क्यों बना करता
जरा सी टेढ़ी भृकुटी कर,देखती जब वो पति को ,
तो बिचारे आदमी का ,सदा ब्लड प्रेशर  बढे है
आप माने या न माने ,बात पर ये है हक़ीक़त ,
पतियों पर हमेशा ही,पत्नियां भारी पड़े है
पति की सारी कमाई ,की प्रथम अधिकारिणी वो,
क्योंकि फेरे सात लेकर ,उनके संग बंधन बंधा है
यदि कोई दिन अचानक ,वो दिखाये प्यार ज्यादा ,
समझलो कि आज तुमको ,लूटने की ये अदा है
कैसा भी हो रूप उनका ,दिखाना तुमको पडेगा ,
दुनिया की सबसे हसीं ,औरत वो तुम्हारी नज़र में
भूल कर भी ,किसी औरत ,की कभी तारीफ़ न करना ,
वरना फिर ये तय समझ लो,खैर तुम्हारी न घर में
उन्हें अच्छी चाट लगती ,आलू टिक्की ,गोलगप्पे ,
तुम भी अपना स्वाद बदलो ,उनके संग जा,खाओ बाहर
जाओ होटल में भी पर ये,बात कहना भूलना मत ,
तुम्हारे हाथों के खाने की नहीं लज्जत यहां पर
औरतों को समझ पाना ,दुनिया में सबसे कठिन है ,
खुदा भी ना समझ पाया ,समझेंगे क्या खाक ,हम तुम
ऱाज की एक बात लेकिन,बताता हूँ ,कोई औरत ,
अगर शरमा कर कहे 'ना'तो उसे 'हाँ'समझना तुम
खुशियों की  बरसात होगी ,सुहानी हर रात होगी ,
प्यार से औरत पिघलती ,भले ही तेवर कड़े है
आप माने या न माने ,बात पर ये है हक़ीक़त ,
पतियों पर हमेशा ही,पत्नियां भरी पड़े है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'




घर की मुर्गी

          घर की  मुर्गी

बिन बीबी के तो एक दिन भी,लगता हमको साल बराबर
फिर भी क्यों कहते बीबी को,घर की  मुर्गी ,दाल बराबर
घर कि मुर्गी अंडे देती ,बीबी देती है सुख प्यारा
सुबह नाश्ता,लंच ,डिनर फिर,करती घर का काम तुम्हारा
और दाल क्या,एक बार जो ,उबल गयी तो छौंक लगा कर
हम खुश होकर ,खा लेते है,रोटी उसके साथ लगा कर
बीबी रोज रोज सुख देती,दाल एक दिन,पक कर,खा कर
फिर भी क्यों कहते बीबी को,घर की  मुर्गी दाल बराबर
भले चना हो,मूंग,उरद या अरहर ,टूट दाल है बनती
मुर्गी से अंडा बनता है,     अंडे से है मुर्गी  बनती
मगर दाल से चना बने ना ,पिसती दाल,बने है बेसन
मुर्गी और दाल में अंतर ,दालें जड़ है ,मुर्गी चेतन
दालें मौन,बोलती बीबी,और खिलाती,माल बनाकर
फिर भी क्यों कहते बीबी को ,घर की  मुर्गी ,दाल बराबर
मुर्गी और दाल कि आपस में तुलना है क्यों की जाती
दाल न खा सकती मुर्गी को,मुर्गी मगर दाल खा जाती
मुर्गी प्रातः करे 'कुकडूँ कूँ ',बीबी बातें करती दिन भर
बीबी होती भारीभरकम ,और दाल होती रत्ती भर
रहे बराबर दिल के बीबी,जीवन को खुश हाल बनाकर
फिर भी क्यों कहते बीबी को,घर की  मुर्गी ,दाल बराबर

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

लक्ष्मी जी और वाहन

          लक्ष्मी जी और वाहन
                         १
कारों  के मॉडल नये , आते है हर साल
लक्ष्मी पति है बदलते ,निज वाहन हर बार
निज वाहन हर बार ,देख कर के ये फेशन
लक्ष्मीजी ने भी सोचा बदलूं निज वाहन
बोली'बहुत दिनों तक ,तुमने ली सेवा कर
अब बूढ़े हो,तुम उलूक ,हो जाओ रिटायर '
                          २
उल्लू ने विनती करी ,निज हाथों को जोड़
माँ ,इतनी सेवा करी ,कहाँ जाउंगा छोड़
कहाँ जाउंगा छोड़ ,चलाऊंगा घर कैसे
ना पगार ही मिले ,पेंशन के ना पैसे
लक्ष्मी बोली सेवा व्यर्थ न जाने दूंगी
केबिनेट में ,मंत्री का पद दिलवा दूंगी

घोटू