Thursday, June 26, 2014

चोरी चोरी -चुपके चुपके

        चोरी चोरी -चुपके चुपके

कुछ चीजें ,आम होकर भी,
हो जाती है  बड़ी ख़ास
जब वो नहीं मिल पाती तुम्हे ,
या तुम्हे नहीं जाने दिया जाता उनके पास
जैसे आम ,
इतने सारे तमाम ,
हर तरफ नज़र आते  है खुले आम
पर क्योंकि हमारे खून में है शकर
इसलिए डाक्टर के कहने पर,
हम आम खा नहीं सकते  है
सिर्फ तरसते हुये दूर से  तकते है
 बस खुशबूवें लेते हुए ,
अपनी मजबूरी पर करते है अफ़सोस
और रह जाते है मन को मसोस
जिसे कभी काट काट कर,
कभी गिलबिला कर,
रसपान किया  करते थे जी भर
आजकल बस दूर से निहार लेते है
और ,चोरी चोरी ,चुपके चुपके,
बीबी से नज़रें बचा,
कभी कभी डंडी मार लेते है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

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