Wednesday, August 27, 2014

        मारामारी

अगर साथ देती जो किस्मत हमारी
 नहीं करनी पड़ती हमें मारा मारी
 कभी हमने भी खूब मारी थी मस्ती ,
बड़ी बेफिकर ,जिंदगी थी हमारी
बहुत गप्प मारी,बहुत झक्क  मारी ,
करते रहे हम, यूं ही चाँद मारी
कभी आँख मारी,कभी मारे चक्कर ,
लगी इश्क़ करने की हमको बिमारी
लगे लोग कहने ,हमें मजनू मियां ,
हुई आशिकों में ,हमारी शुमारी
बड़ी मुश्किलों से पटाई थी लड़की,
मगर बन गयी है वो बीबी हमारी
रही थोड़े दिन तक  तो छाई खुमारी,
गृहस्थी की हम पर,पड़ी जिम्मेदारी
फंसा इस तरह दाल आटे का चक्कर ,
यूं ही मरते मरते कटी   उम्र   सारी

घोटू  

No comments:

Post a Comment