Tuesday, December 30, 2014

मैं हूँ पानी

              मैं हूँ पानी

मैं औरों की प्यास बुझाता ,पर मन में तृष्णा अनजानी
                                                        मैं  हूँ  पानी
मधुर मिलन की आस संजोये , मैं कल कल कर ,बहता जाता
पर्वत , जंगल और चट्टानों से ,टकरा   निज    राह      बनाता
तेज प्रवाह ,कभी मंथर गति ,कभी सहम   कर धीरे  धीरे
कभी बाढ़ बन  उमड़ा  करता ,कभी बंधा मर्यादा   तीरे
कभी कूप में रहता सिमटा ,लहराता बन कभी सरोवर
मुझमे खारापन आ जाता ,जब बन जाता ,बड़ा समंदर
उड़ता बादल के पंखों पर,आस संजोये ,मधुर मिलन की
और फिर बरस बरस जाता हूँ,रिमझिम बूंदों में सावन की
तुम जब मिलती ,बाँह  पसारे ,मेरा मन प्रमुदित हो जाता
तुम शीतल प्रतिक्रिया देती,तो मैं बर्फ  बना जम जाता
कभी बहुत ऊष्मा तुम्हारी ,मुझे उड़ाती ,वाष्प बना कर
और विरह पीड़ा तड़फ़ाती ,अश्रुजल सा ,मुझे बहा कर
मैं तुम्हारा पागल प्रेमी ,या फिर प्यार भरी   नादानी
                                                     मैं  हूँ  पानी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सर्दी की दोपहरी

              सर्दी की दोपहरी

बहुत दिनों के बाद आज फिर गरम गरम सी धूप खिली,
          आओ चल कर  छत पर बैठें ,इसका मज़ा उठायें  हम
और मूँज की खटिया पर हम,बिछा पुरानी  सतरंजी ,
               बैठें पाँव पसार प्रेम से ,छील मूंगफली  खाएं हम
लगा मसाला मूली खायें कुछ  अमरुद  इलाहाबादी ,
          थोड़ी गज़क रेवड़ी खालें ,कुछ प्यारी पट्टी तिल की
 बहुत दिनों के बाद खुले मे ,तन्हाई में बैठेंगे ,
आज न शिकवे और शिकायत ,बात सिर्फ होगी दिल की
बड़ा सर्द मौसम है मेरे तन पर बहुत खराश बड़ी ,
           ज़रा पीठ पर मेरे मालिश करना,तैल लगा देना
बदले में मैं ,मटर तुम्हारे ,सब छिलवा दूंगा लेकिन,
   गरम चाय के साथ पकोड़े ,मुझको गरम खिला देना
बहुत खुशनुमा है ये मौसम ,खुशियां आज बरसने दो ,
         मधुर रूप की धूप तुम्हारी में खुशियां सरसाएँ हम
बहुत दिनों के बाद आज फिर गरम गरम सी धूप खिली,
       आओ चल कर छत पर बैठें ,इसका मज़ा उठायें हम

मदन मोहन बाहेती'घोटू '  

Friday, December 26, 2014

बीबी का मोटापा

         बीबी का मोटापा 
                     १
पत्नीजी पर ज़रा भी ,अगर मांस चढ़ जाय
तो पतिजी जब तब उसे,मोटी  कहे,चिढ़ाय
मोटी कहे चिढ़ाय ,दोष पत्नी का क्या है
शादी के ही बाद इस तरह बदन भरा है
बदन छरहरा था ,फूला पति के घर आकर
मोटा पति ने किया ,प्यार का डोज़ पिलाकर
                       २
पतिजी से पत्नी कहे ,दिखला थोड़ा क्रोध
खुद को भी देखो पिया,निकल आयी है तोंद
निकल आयी है तोंद ,हो रहे तुम भी भारी
थोड़ी सी मेहनत से  फूले  सांस तुम्हारी
'घोटू'बदन सासजी का भी क्या कुछ कम है
अपनी माँ को मोटा बोलो ,यदि जो दम है

घोटू 

मै केजरीवाल आया हूँ

      मै  केजरीवाल आया हूँ

सुनाने हाल आया हूँ
मैं केजरीवाल आया हूँ
नहीं धरने पे बैठूंगा,
छोड़ हड़ताल  आया हूँ
आदमी आम जो हूँ ,
आप का मैं चाहनेवाला ,
विदेशों में ,डिनर करवा,
बहुत सा माल लाया हूँ 
ढके ना कान मफलर से ,
सभी की अब सुनूंगा मैं ,
बताने आंकड़ों का ढेर सा,
मैं  जाल लाया हूँ
पड गयी थी 'जरी'काली,
जब एसिड टेस्ट से गुजरी ,
मगर अबके ,खरे सोने का ,
असली माल लाया हूँ
पिटारे में मेरे अबके ,
है वादे भी,इरादे भी,
पुराना राग ना अब मैं ,
सुरीली ताल लाया हूँ
समय के साथ मैंने भी ,
बदल डाला है अपने को,
विरोधी कहते मैं करने ,
यहाँ बवाल आया  हूँ
सुनाने हाल आया हूँ
मैं  केजरीवाल  आया हूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जब तलक सांस रहती है

              जब तलक सांस रहती है

नहीं जिसको जो मिल पाता ,उसी की आस रहती है
ध्यान उस पर नहीं जाता ,जो हरदम पास रहती है
खेलना होता है  जब, फेंटे  जाते  ताश  के  पत्ते ,
वार्ना बस बंद डब्बे में, सिसकती  ताश रहती है
छोड़ कर घर का खाना ,होटलों में जो भटकते है ,
न जाने किस मसाले की, उन्हें तलाश   रहती है
छिपी घूंघट में जो रहती ,न उस पर ध्यान देतें है ,
ध्यान बस खींचती है वो,जो बन बिंदास रहती है
छुपा कर  रेत  में मुंह  सोचते,कोई न देखेगा ,
सुना है ये शुतुरमुर्गों की आदत ख़ास रहती है
जरूरी ये नहीं की हमेशा ,हर अश्क़ खारा हो,
खुशीके आंसूओं में भी,अजब मिठास रहती है
परेशां बेबसी में भी,लोग घुट घुट के जीते है,
फिरेंगे दिन हमारे भी ,ये मन में आस रहती है
ये काया पांच तत्वों की ,उन्ही में लीन  हो जाती,
आदमी ज़िंदा तब तक है ,जब तलक सांस रहती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

औरतें नाज़ुक बड़ी है

                  औरतें नाज़ुक बड़ी है

 उँगलियों के इशारों से, अगर जाय हो सब कुछ,
             व्यर्थ में ही करें मेंहनत ,भला किसको ,क्या पडी है
भृकुटी ऊंची और नीची ,काम सब देती करा है,
             वरना घर भर को हिलाती,लगा आंसू की  झड़ी  है
जो हमेशा दुम हिलाये,भोंकना जिसको न आये,
            इस तरह का पति पाकर ,हौंसले से ये बढ़ी   है
पकाती इसलिए खाना,स्वाद लगता है सुहाना,
          पति पकाता,स्वाद में कुछ,आ ही जाती गड़बड़ी है 
भले ही गलती कहो तुम ,या कि इसको प्यार कह दो,
          चढ़ाया सर पर है हमने ,इसलिए ये सर चढ़ी है
अदाओं से लुभाती है ,प्यार करके पटाती है,
          खुद न झुकती ,झुकाती है,औरतें नाज़ुक बड़ी है

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

मै शून्य हूँ

             मै शून्य हूँ

भले शून्य हूँ मैं ,अकेला न अांकों ,
            करूँ दस गुणित मै ,तुम्हे ,संग तुम्हारे
चलोगे अगर साथ में हाथ लेकर ,
            बदल जाएंगे  जिंदगी के  नज़ारे
 घटाओगे मुझको या मुझ संग जुड़ोगे
            न तो तुम घटोगे ,नहीं तुम बढ़ोगे
मेरे संग गुणा का गुनाह तुम न करना ,
           नहीं तो कहीं के भी तुम ना रहोगे
चलो साथ मेरे ,मेरे हमसफ़र बन  ,
            बढ़ो आगे कंधे से कंधा  मिला कर,
बढ़ें दस गुने होंसले तब हमारे
            हम दुनिया को पूरी ,रखेंगे हिला कर
मुझे प्यार दे दो,ये उपहार दे दो ,
            नहीं बीच में कोई आये हमारे
भले शून्य हूँ मैं ,अकेला न समझो ,
          करू दस गुणित मै ,तुम्हे,संग तुम्हारे
रहो आगे तुम, मैं रहूँ पीछे पीछे ,
          अणु से अनुगामिनी तुम बना दो
बंधे सूत्र से इस तरह से रहे हम,
          तुम चाँद ,मैं चांदनी तुम बनादो
हमेशा ही ऊंचे रहो दंड से तुम,
         उडू एक कोने में,बन मैं पताका
समझ करके मुझको,चन्दन का टीका ,
         मस्तक पर अपने ,लगालो,जरासा
इतराऊँगी मैं जो संग पाउंगी मैं ,
         मेरा मान भी होगा संग संग तुम्हारे
भले शून्य हूँ मैं ,अकेला न आंको ,
          करूं दस गुणित मैं ,तुम्हे,संग तुम्हारे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'     

नए वर्ष का धन्यवादज्ञापन

         नए वर्ष का धन्यवादज्ञापन

पिछले बारह महीने मेरे ,कुछ इसी तरह से गुजर गए
कुछ नए दोस्त का साथ मिला,कुछ मीत पुराने बिछड़ गए
सुख दुःख आते जाते रहते ,मैं क्या बिसरूं ,क्या करू याद 
जिन जिनका भी सहयोग मिला ,सबको देता हूँ धन्यवाद
है धन्यवाद उनको जिनने ,जी भर कर मुझको दिया प्यार
मैं  आभारी  उनका  भी हूँ, पहनाये  जिनने  पुष्पहार
है धन्यवाद उस पत्थर का ,जिसकी ठोकर खा, मै संभला
पथ किया प्रदर्शन ,जीने की,सिखलाई  जिसने मुझे कला 
उन निंदक का भी धन्यवाद ,गलती मेरी बतलाते है
है धन्यवाद के पात्र ,प्रशंसक ,जो उत्साह बढ़ाते  है
अपनी सहचरी संगिनी का ,मैं सच्चे मन से आभारी
जिसने पग पग पर साथ दिया ,खुशियाँ बरसाई है सारी
जो देती आशीर्वाद सदा , मेरा उस माँ को धन्यवाद
मेरे जीवन में जो कुछ है ,ये माता का ही  है प्रसाद
सबके सहयोग ,शुभेच्छा से ,अच्छा बीता जो बरस गया
है यही अपेक्षा ,मिले प्यार,और अच्छा बीते बरस नया

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Wednesday, December 24, 2014

सर्दी

             सर्दी
क्या बताऊँ आपको इस बार सर्दी यूं पडी
याद में उनकी हमारे लगी आंसूं की  झड़ी
ना तो हमने पोंछे आंसूं,गीला ना दामन किया ,
मारे सर्दी अश्क जम कर ,बने मोती की लड़ी

घोटू

बुढ़ापा -शाश्वत सत्य

        बुढ़ापा -शाश्वत सत्य

मेरे मन में चाह हमेशा दिखूं जवां मै
और जवानी ढूँढा करता ,यहाँ वहां  मै
कभी केश करता काले ,खिजाब लगाके
शक्तिवर्धिनी कभी दवा की गोली  खा के
कभी फेशियल करवाता सलून में जाकर
नए नए फैशन से खुद को रखूँ सजा कर
और कभी परफ्यूम लगाता हूँ मै  मादक
करता हूँ जवान दिखने की कोशिश भरसक
जिम जाता हूँ ,फेट हटाने ,रहने को फिट
जिससे मेरी तरफ लड़कियां हो आकर्षित
पर किस्मत की बेरहमी करती है बेकल
जब कन्याएं,महिलायें कहती है 'अंकल'
लाख छिपाओ,उम्र न छिपती ,तथ्य यही है
मै बूढा हो गया ,शाश्वत सत्य  यही  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

ये बीबियाँ

                ये बीबियाँ

पति भले ही स्वयं को है सांड के जैसा समझता ,
      पत्नी आगे गऊ जैसी ,आती उसमे सादगी  है
 पति को किस तरह से वो डांट कर के  रखा करती ,
      आइये तुमको बताते ,उसकी थोड़ी  बानगी है
पायलट की पत्नी अपने पति से ये बोलती है,
       देखो ज्यादा मत उड़ो तुम,जमीं तुमको दिखा दूंगी
और पत्नी 'डेंटिस्ट' की ,कहती पति से चुप रहो तुम,
             वर्ना जितने दांत तुम्हारे,सभी मै हिला   दूंगी 
प्रोफ़ेसर की प्रिया अपने पति को यह पढ़ाती है,
            उमर  भर ना भूल पाओगे ,सबक वो सिखाउंगी
और बीबी एक्टर की ,रोब पति पर डालती है ,
            भूलोगे नाटक सभी जब एक्टिंग मै  दिखाउंगी
सी ए की पत्नी पति से कहती है कि माय डीयर,
           मेरे ही हिसाब से ,रहना तुम्हे है जिंदगी  भर  
वरना तुम्हारा सभी हिसाब ऐसा बिगाड़ूगीं ,
           कि सभी 'बेलेंस शीटें 'तुम्हारी हो जाए गड़बड़
पत्नी ने इंजीनियर की ,समझाया अपने पति को,
          टकराना मुझसे नहीं तुम,पेंच ढीले सब करूंगी
'इंटेरियर डिजाइनर 'की प्रियतमा  उससे ये बोली
         मुझसे जो पंगा लिया ,एक्सटीरियर बिगाड़ दूंगी
नृत्य निर्देशक कुशल है  हुआ करती हर एक बीबी,
         जो पति को उँगलियों के इशारों पर है  नचाती 
उड़ा करते है हवा में ,घर के बाहर जो पतिगण ,
         घर में अच्छे अच्छे पति की,भी हवा है खिसक जाती

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 
           

ना इधर के रहे ना उधर के रहे

       ना इधर के रहे ना उधर के रहे

उनने डाली नहीं ,घास हमको ज़रा ,
         चाह में जिनकी आहें हम भरते रहे
चाहते थे क़ि कैसे भी पट जाए वो,
          लाख कोशिश पटाने की करते रहे
उम्र यूं ही कटी ,वो मगर ना पटी ,
          घर की बीबी को 'निगलेक्ट 'करते रहे
ना घर के रहे हम,नहीं घाट  के ,
          ना इधर के रहे ,ना उधर के   रहे

घोटू  

Saturday, December 20, 2014

सितम-सर्दियों का

           सितम-सर्दियों का
                पांच चित्र
                       १
हो गए हालात है कुछ इस तरह के धूप के ,
कभी दिखलाती है चेहरा ,कभी दिखलाती नहीं
बहाना ले सरदी का ज्यों  ,कामवाली  बाइयां ,
या तो आती देर से है या कि फिर आती नहीं
                            २
मुंह छिपाते फिर रहे हैं,आजकल सूरज मियां ,
सर्दियों  में देख लो, वो भी बेकाबू  हो  गए
आते भी है देर से और जाते है जल्दी चले ,
लगता है सरकारी दफ्तर के वो बाबू  हो गए
                      ३
एक तरफ आशिक़ है बिस्तर ,नहीं हमको छोड़ता ,
एक तरफ माशूक़ रजाई ,हम पर है छाई  हुई
आपको हम क्या बताएं आप खुद ही समझ लो ,
इस तरह शामत हमारी ,सरदी  में आयी हुई
                            ४
होता था दीदार जी भर ,जिस्म का जिनके सदा,
तरसते है देखने को भी हम सूरत आपकी
ढक  लिया है इस तरह से ,तुमने अपने आपको,
नज़र आती सिर्फ आँखे, नोक केवल नाक की
                           ५
तेल ,घी जमने लगे है ,दही पर जमता नहीं ,
मारे ठिठुरन,हाथ पाँव जम के ठन्डे पड़ गए
पीते पीते चाय का प्याला बरफ  सा हो गया ,
सर्दियों के सितम देखो ,किस कदर है बढ़ गए   

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Thursday, December 18, 2014

सर्दी -मौसम खानपान का

   सर्दी -मौसम खानपान का

हम सर्दी का मज़ा उठायें ,मौसम बड़ा सुहाना
बैठ धूप में अच्छा लगता,हमें मूंगफली खाना
गरम चाय की चुस्की लेना ,सबके मन को भाता
अगर साथ हो  गरम पकोड़े ,मज़ा चौगुना  आता
 कभी कभी मक्का की रोटी ,और सरसों का साग
तिल की पट्टी ,गज़क रेवड़ी ,इनका नहीं जबाब
गरम गरम रस भरी जलेबी और गुलाबजामुन
देख टपकती लार और मन होता अफ़लातून
खानपान का मौसम होता है मौसम सर्दी का
सोहन या बादाम का हलवा ,खाओ देशी घी का
कितना भी गरिष्ठ हो खाना ,सर्दी में सब पचता
आलू टिक्की की खुशबू से कोई नहीं बच सकता 
गरम पराठे मेथी के या मूली या कि मटर के
सर्दी में ही मिल पातें है ,क्यों न खाएं जी भर के
जिन्हे  फ़िकर अपने फ़ीगर की खाया करे सलाद
हम तो खाए गोंद  के लड्डू ,ले ले कर के स्वाद
प्रचुर विटामिन 'डी 'पाओगे और  निखरेगा  रूप    
मैं खाऊ गाजर का हलवा और तुम खाओ धूप

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

वक़्त काटना -बुढ़ापे में

    वक़्त काटना -बुढ़ापे में

किसी ने हमसे पूछा ऐसे
घोटूजी,आप भी तो अब हो गए हो,रिटायर  जैसे
अपना समय काटते  हो कैसे ?
हमने कहा,हम सुबह जल्दी उठ जाते है
घूमने जाते है
कुछ व्यायाम करते है और अपनी जर्जर होती हुई ,
शरीर की इमारत को, जल्दी टूटने से बचाते है
लौट कर फिर घर आना
बीबीजी के लिए चाय बनाना
फिर उन्हें उठाना ,
रोज यही दिनचर्या  चलती है
चाय हम इसलिए बनाते है क्योंकि,
हमारे हाथ की बनाई हुई चाय ,
हमारी बीबीजी को बहुत अच्छी लगती है
और सुबह सुबह ,इस प्यार भरे अंदाज से ,
होती है दिन की शुरुवात
जब चाय की चुस्कियां ,हम लेते है साथ साथ
फिर थोड़ा अखबार खंगालते है
रोज रोज चीर होती हुई मर्यादाओं का 
पतनशील होते हुए नेताओं का
धर्म के नाम पर लुटती हुई आस्थाओं का
भ्रष्ट आचरण करते हुए महात्माओं का
कच्चा चिट्ठा बांचते है
कभी दोपहरी में धूप में बैठ कर ,
पत्नी को मटर छिलाते रहते है
और बीच बीच में जब मटर के छोटे  छोटे ,
मीठे मीठे दाने निकलते है ,
खुद भी खाते है,उन्हें भी खिलाते रहते  है
कभी पास के ठेले पर जा गोलगप्पे खाते है
कभी फोन करके पीज़ा मंगाते है
बीच बीच में 'फेसबुक 'या 'व्हाट्सऐप'पर
कोई अच्छा जोक आता है तो पत्नी को सुनाते है
आपस में खुशियां बांटते है,
हँसते हँसाते है
कभी वो हमारे चेहरे की बढ़ती झुर्रियों को देख कर,
होती है परेशान
कभी हम ढूंढते है ,उसकी जादू भरी आँखों का,
खोया हुआ तिलिस्म और पुरानी शान
ये सच है आजकल हममे नहीं रही वो पुरानी कशिश
फिर भी बासी रोटियों पर,
कभी प्यार का अचार लगा कर
कभी दुलार का मुरब्बा फैला कर
नया स्वाद लाने की करते है कोशिश
न ऊधो का लेना है,न माधो का देना है
और भगवान की दया से पास में ,
काफी चना चबेना है
हम उसका और वो हमारा रखती है ख्याल
और भूल जाते है  जिंदगी के सब  बवाल
और जैसे जैसे उमर बढ़ रही है
चूँ चररमरर,चूँ चररमरर ,करती हुई ,
जिंदगी की भैंसागाड़ी ,मजे से चल रही है

मदन मोहन बाहेती' घोटू'
   

Wednesday, December 17, 2014

पाकिस्तानी आकाओं से

     पाकिस्तानी आकाओं से

दहशतगर्दी को शह देते ,पाल रहे हो नागों को,
        डस तुमको कब  लेंगे ,जिनको ,दूध पिलाया ,पता नहीं
चले हमें थे सबक सिखाने,ऐसा सबक मिला तुमको ,
         कितने मासूमो को तुमने ,बलि चढ़ाया ,  पता नहीं
अक्सर आग लगानेवाले ,खुद जलजल जाते,लपटों से ,
         कितनी माताओं का तुमने ,मन झुलसाया ,पता नहीं
अब छोडो ,नापाक इरादे ,नफरत त्यागो और बदलो ,
         दहशत गर्दो ने तुमको क्या,सबक सिखाया ,पता नहीं  
एटम बम पर मत इतराओ ,खतरे भरे खिलोने है ,
        तुम ही एटम ना बन जाओ,इन्हे चलाया ,पता नहीं
आतंकी गतिविधियाँ छोडो ,वरना  तुम पछताओगे ,
        कितनी बार तुम्हे समझाया,समझ न आया ,पता नहीं

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Tuesday, December 16, 2014

माँ और बच्चे

       माँ और बच्चे

मैं रोज देखता सुबह सुबह ,
माँएं ,अन संवरी ,बासी सी
कंधे ,बच्चों का बस्ता ले ,
कुछ लेती हुई उबासी सी
कुछ मना रही वो कुछ खाले ,
कुछ मुंह में केला ठूंस रही
तुम ने रखली ना सब किताब,
कुछ होमवर्क का पूछ रही
अपनी माँ की ऊँगली थामे ,
अलसाया बच्चा रहा दौड़
है हॉर्न बजाती स्कूल बस ,
वो कहीं उसको जाय छोड़
भारी सा बस्ता उसे थमा,
वह उसे चढ़ाती  है बस पर
निश्चिन्त भाव से फिर वापस ,
वो घर लौटा करती हंस कर
दोपहरी में फिर जब बस के ,
आने का होता है टाइम
आकुल व्याकुल सी बच्चे का,
वो इन्तजार करती हर क्षण
बस से ज्यों ही उतरे बच्चा ,
ले लेती उसका  बेग थाम
स्कूल की सब बातें सुनती ,
चलती धीमे से बांह थाम
माँ और बच्चों की दिनचर्या ,
मैं देखा करता ,रोज रोज
अनजाने ही मेरे मन में,
उठने लग जाता एक सोच
बच्चों का बोझ उठा पाते ,
माँ बाप सिरफ़ बस तक केवल
पड़ता है बोझ उठाना खुद ,
ही बच्चों को है जीवन भर
अक्षम होंगे जब मात पिता ,
जब ऐसे भी दिन आयेंगे
बच्चे उतने अपनेपन से ,
क्या उनका बोझ उठायेंगे ?

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रिटायरमेंट के बाद-पति का नज़रिया

रिटायरमेंट के बाद-पति का नज़रिया

शिकायत उनको रहती थी ,
उन्हें टाइम न देते हम
अब तो टाइम ही टाइम है,
रिटायर हो गए है हम
अब तो चौबीस घंटे ही,
हम 'डिस्पोजल' पे उनके है
मगर ये बात भी तो ना ,
मुताबिक़ उनके मन के है
गयी है गड़बड़ा उनकी ,
सभी दिनचर्या है दिन की
हो गयी चिड़चिड़ी सी वो ,
हमेशा रहती है भिनकी
ये आदत थी कि ऑफिस में ,
चार छह चाय पीते थे
हुकुम में चपरासी हाज़िर ,
शान शौकत से जीते थे
आदतन मांग ली उनसे,
चाय दो चार दिन भर में
हुई मुश्किल उन्हें , होने ,
लग गया दर्द फिर सर में
न सोने को मिले दिन में,
न सखियों संग,सजे महफ़िल
हमाए पास ही दिन भर,
लगाएं कैसे अपना दिल
तरसती साथ को जो थी ,
लग गयी अब अघाने है
और हम पहले जैसे ही,
दीवाने थे,दीवाने है
है बच्चे अपने अपने घर,
अकेले घर में हम दोनों
कभी भी साथ ना इतने ,
थे जीवन भर में हम दोनों
न चिंता काम की कोई,
मौज,मौसम है फुरसत का
रिटायर हो के ही मिलता ,
मज़ा असली मोहब्बत का

घोटू

रिटायरमेंट पति का-नज़रिया पत्नी का

 रिटायरमेंट पति का-नज़रिया पत्नी का

हुये जब से रिटायर है ,
हमेशा रहते ये घर है
चैन अब दो मिनिट का भी,
नहीं हमको मयस्सर है
कभी कहते है ये लाओ
कभी कहते है वो लाओ
आज सर्दी का मौसम है,
पकोड़े तुम बना लाओ
नहीं जाते है ड्यूटी पर,
हुई मुश्किल हमारी है
सुबह से शाम सेवा में ,
लगी ड्यूटी हमारी है
नहीं होता है खुद से कुछ,
दिखाते रहते  नखरा  है 
क्यों इतनी गंदगी फैली ,
ये क्यों सामान बिखरा है
निठल्ले बैठे रहते है,
नहीं कुछ काम दिनभर है
बहुत ये शोर करते है ,
हुए खाली कनस्तर है
जरा सी बात पर भी ये ,
लड़ाई,जंग करते है
प्यार के मूड में आते ,
तो दिन भर तंग करते है
चले जाते थे जब दफ्तर
चैन से रहते थे दिन भर
नहीं थी बंदिशें कोई,
कभी शॉपिंग ,कभी पिक्चर
रिटायर ये हुए जब से ,
हमारी आयी आफत है
होगया काम दूना है,
मुसीबत ही मुसीबत है

घोटू

Monday, December 15, 2014

विदेश में बसी औलाद-माँ बाप की फ़रियाद

     विदेश में बसी औलाद-माँ बाप की फ़रियाद

भूले भटके याद कर लिया करो हमें ,
             बेटे! इतना बेगानापन ठीक नहीं
पता नहीं हम कभी अचानक ही यूं ही,
          चले जाएँ कब, छोड़ ये चमन, ठीक नहीं
तुम बैठे हो दूर विदेशी धरती पर ,
           तुम्हे ले गयी है माया ,भरमाने की 
मातृभूमि की धरती ,माटी,गलियारे,
            जोह रहे है  बाट तुम्हारे  आने की
ऐसे उलझे तुम विदेश के चक्कर में,
            अपने माँ और बाप,सभी को भूल गये
तुमको लेकर क्या क्या आशा थी मन में,
             इतने सपने  देखे, सभी फिजूल गये
यहीं बसा परिवार,सभी रिश्ते नाते,
              ये  तुम्हारा देश,तुम्हारी  धरती  है
आस लगाए बैठे है कब आओगे ,
             प्यासी आँखे ,राह निहारा  करती है
जहाँ पले  तुम ,खेले कूदे ,बड़े हुए,
              याद तुम्हे वो घर और आँगन करता है
तुम शायद ही समझ सकोगे कि कितना,
             याद तुम्हे व्याकुल होकर मन करता है
सोच रहे होगे 'इमोशनल फूल' हमें ,
              हाँ ,ये सच है ,हम में बहुत 'इमोशन' है
नहीं 'प्रेक्टिकल'हैं हम इतने अभी हुये ,
             प्यार मोहब्बत अभी यहाँ का 'फैशन'है
हमको तुम हर महीने भेज चन्द 'डॉलर',
             सोचा करते ,अपना फर्ज निभाते हो
भूले भटके ,बरस दो बरस में ही तुम ,
              शकल दिखाने  ,कभी कभी आ जाते हो
यही देखने कि हम अब तक ज़िंदा है,
               कितनी 'प्रॉपर्टी' है,कीमत  क्या  होगी
हरेक  चीज, पैसों से तोला करते हो ,
               तुम्हे प्यार करने की फुर्सत कब होगी
हम माँ बाप ,तुम्हारी चिंता करते है ,
                देते तुमको सदा दुआ ,सच्चे  मन से
जबकि तुमने सबसे ज्यादा दुखी किया ,
                  बन  निर्मोही,अपने   बेगानेपन  से
 फिर भी इन्तजार में तुम्हारे,आँखें,
                  लौट आओगे ,आस लगाए ,बैठी है
शायद तुमको भी सदबुद्धी आजाये ,
                  मन में यह विश्वास जगाये बैठी  है      
ऐसा ना हो ,इतजार करते आँखें,
                  रहे खुली की खुली ,लगे पथराने सी
मरने पर भी लेट बरफ की सिल्ली पर ,
                   करे प्रतीक्षा ,तुम्हारे आ जाने की
बहुत जलाया हमको तुमने जीवन भर,
                 अंतिम पल भी तुम्ही जलाने आओगे
बहुत बहाये आंसू हमने जीवन भर ,
                   तुम गंगा में अस्थि बहाने आओगे
सदा प्यार से अपने भूखा रखा हमें ,
                    आकर कुछ पंडित को भोज कराओगे
और बेच कर सभी विरासत पुरखों की,
                     शायद अपना अंतिम फर्ज ,निभाओगे

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'  

Saturday, December 13, 2014

कोई है

            कोई है
मैं नहीं लिखता ,लिखाता कोई है
नींद से मुझको   जगाता  कोई  है
क्या भला मेरे लिए क्या है बुरा ,
रास्ता मुझको दिखाता कोई  है
कभी गर्मी,कभी सर्दी ,बारिशें ,
ऋतु में बदलाव लाता कोई है
हर एक ग्रह की अपनी अपनी चाल है,
मगर इनको भी  चलाता कोई है
कभी धुंवा ,लपट या चिंगारियां ,
अगन कुछ  ऐसी जलाता कोई है
डालते उसके गले में हार हम ,
जंग हमको पर जिताता  ,कोई है
कौन  है वो ,कैसा उसका  रूप है,
कभी भी ना ,नज़र आता कोई है
दुनिया के कण कण को देखो गौर से,
हर जगह हमको  दिखाता  कोई है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

वक़्त की बात

       वक़्त की बात

वक़्त किसको कब बना दे बादशाह ,
  धूल कब किसको चटा दे ,खेल मे
कल तलक थी जिसकी तूती बोलती ,
  आजकल वो सड़ रहे है   जेल में
खेलते थे करोड़ों में जो कभी ,
   आजकल वो हो गए कंगाल है
हजारों की भीड़ थी सत्संग में,
   कोठरी में जेल की बदहाल है
भोगते फल अपने कर्मो का सभी,
  जिंदगी की इसी रेलमपेल  में
कल तलक थी जिसकी तूती बोलती ,
आजकल वो सड़ रहे है जेल में

घोटू

पड़ी रिश्तों पर फफूंदी

     पड़ी रिश्तों  पर फफूंदी

जब से  मैंने खोलकर संदूक देखा ,
      पुरानी यादें सताने लग गयी है
 बंद बक्से में पड़े रिश्ते  पुराने ,
     महक सीलन की सी आने लग गयी है
फफूंदी सी रिश्तों पर लगने लगी है
    चलो इनको प्यार की कुछ धूप दे दे
पुराना अपनत्व फिर से लौट आये ,
     रूप उनको ,वक़्त के अनुरूप दे दें
दूध चूल्हे पर चढ़ा ,यदि ना हिलाओ,
   उफन, बाहर पतीले से निकल जाता
बिन हिलाये ,आग पर सब चढ़ा खाना ,
    चिपक जाता है तली से ,बिगड़ जाता
बंद रिश्ते बिगड़ जाते वक़्त के संग ,
    इसलिए है उनमे कुछ  हलचल  जरूरी
रहे चलता ,मिलना जुलना ,आना जाना ,
    तभी  नवजीवन मिले , हो  दूर  दूरी
चटपटापन भी जरूरी जिंदगी में ,
    मीठी बातों से सिरफ़  ना काम चलता
बनता है अचार कच्ची केरियों से ,
     मीठे आमों का नहीं  अचार  डलता
खट्टे मीठे रिश्तों को रख्खे मिला कर
दूध को ना उफनने दें ,हम हिला कर
इससे पहले क्षीण हो क्षतिग्रस्त रिश्ते ,
       आओ इनको हम नया एक रूप दे दें  
फफूंदी सी रिश्तो पर लगने लगी है,
        चलो इनको प्यार की कुछ धूप  दे दें

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बदलाव

        बदलाव

फोन एंड्रॉइड का जबसे लगा उनके हाथ है ,    
 उसको ही सहलाते रहते ,हमको सहलाते नहीं
जबसे पड़ने लग गयी है सर्दियाँ ,वो आजकल,
         रजाई  से लिपटे रहते ,हमसे  लिपटाते नहीं
जब से टी वी घर में आया ,ऐसा कुछ आलम हुआ ,
बढ़ती ही जाती दिनोदिन ,हमसे उनकी बेरुखी,
   देखते रहते उसी को ,वो लगाकर टकटकी ,
  बस उसी से चिपके रहते ,हमको चिपकाते नहीं   

घोटू

वक़्त का मिजाज

           वक़्त का मिजाज

रात जब सोया था छिटकी चांदनी थी ,
 सवेरे जब उठा ,देखा कोहरा  है
यूं ही पल पल रंग है अपने बदलता ,
वक़्त का मिजाज कितना दोहरा है

कौन सा पल कब बदल दे जिंदगानी ,
किसी को होता नहीं इसका पता है 
समय पर बस नहीं चलता है किसीका,
देखिए इंसान की क्या विवशता है
आसमां था साफ़ ,सूरज चमचमाता ,
कुछ पलों के बाद बादल से भरा है
यूं ही पल पल रंग है अपने बदलता ,
वक़्त का मिजाज कितना  दोहरा है

इस तरह से बदल जाती भावनायें ,
कल तलक था प्यार ,अब नफरत भरी है
जिसे देखे बिन नहीं था चैन कल तक,
आज उसने ,नज़र अपनी फेर ली  है
कल तलक था रेशमी तन जो सलोना,
उम्र के संग हो गया वो खुरदुरा  है
यूं ही पल पल रंग है अपने बदलता ,
वक़्त का मिजाज कितना  दोहरा है

कल तलक था दूध मीठे स्वादवाला ,
आज खट्टा पड़ गया है,फट गया है
एक जुट परिवार रहता था कभी जो,
कितने ही हिस्सों में अब वो बंट गया है
देखता है रोज ही ये सभी होते ,
वक़्त से इंसान फिर भी ना डरा  है   
यूं ही पल पल रंग है अपने बदलता ,
वक़्त का मिजाज कितना दोहरा है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Thursday, December 11, 2014

ऐसा भी होता है

       ऐसा भी होता है

एक लड़का ,साइकल पर सवार
पैदल घूम रहे थे एक बुजुर्गवार
लड़के ने उन्हें मार दी टक्कर
बुजुर्गवार  हो गए घायल
लड़के से पिता से जब की गयी शिकायत
उन्होंने  उत्तर ये दे दिया झट
हम क्या करें जनाब
ये तो जानते है आप
'BOYS WILL BE BOYS '
संयोग की बात
थोड़े ही दिनों बाद
उनकी लड़की को,
 पड़ोसी लड़के ने छेड़ दिया
शिकायत करने पर ,
लड़के के बाप ने दिया
वो ही टका सा जबाब
हमक्या करें जनाब
ये तो जानते ही है आप
'BOYS  WILL BE  BOYS '

घोटू

Tuesday, December 9, 2014

अपनी अपनी अर्जी

          अपनी अपनी अर्जी
                       १
       लड़की की अर्जी
प्रभु ऐसा पति दीजिये ,कृपा कीजिये आप
मनमोहन सिंह की तरह,सीधा और चुपचाप
सीधा और चुपचाप ,पास हो काफी पैसा
और कमाई में हो मुकेश अम्बानी जैसा
दीवाना मजनू  सा ,करे प्रेम से सेवा
और इशारों पर नाचे बन कर प्रभुदेवा
                      २
           लड़के की अर्जी
पत्नी ऐसी दिलाना,तुम हमको भगवान
ऐश्वर्या  सी  रूपसी ,सुंदरता  की  खान  
सुंदरता की खान ,रखे वो साफ़ सफाई
घर के सारे काम ,करे बन शांता बाई
कह 'घोटू'कवि ,पतिकी सेवा करे रोजाना
हो संजीव कपूर ,बनाने में वो खाना
                    ३
      लालाजी की अर्जी
लालाजी करने लगे ,मंदिर में अरदास
नहीं चाहिए आपसे ,भगवन कुछ भी ख़ास
नहीं चाहिए ख़ास ,देवता है जो  सारे
'एक एक रूपया दिलवा दो,इनसे म्हारे '
है छत्तीस करोड़ देवताओ  से   अर्जी
आठ आठ आने ही दिलवा दो,जो हो मर्जी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

दास्ताने इश्क़

      दास्ताने इश्क़

जब कली से फूल बन कर ,हम खिले,तुम आ गए,    
    बन के भँवरे ,खुशबुएँ लेने को मंडराते रहे
सजा करके दिल के गुलदस्ते में हमको रख लिया ,
   पिरो कर  माला में  हमको ,गले लिपटाते  रहे
बेअदब और बेरहम हो ,नाम लेकर प्यार का ,
    दबाते हमको रहे तुम और तड़फ़ाते रहे
आपकी गुस्ताखियाँ कुछ ऐसी मन को भा गयी
  चाहता दिल,पेश यूं ही ,आप बस आते रहें

घोटू

तिल की बात-दिल की बात

        तिल की बात-दिल की बात

तिल तो  है आजाद ,बैठे ,कहीं भी जा जिस्म पर ,
            होठों पर जब बैठता है, कहते है  कातिल  इसे
गाल पर  जब बैठता, होती  निराली शान है ,
            फिर भी कितने लोग कहते, दिलजलों का दिल इसे
एक दिन हम भी लुटे थे ,इसी तिल के फेर में,
             तिल बड़ा ही तिलस्मी था ,हम पे जादू कर गया
गोरे गोरे गालों पर वो' ब्यूटी का स्पॉट' था ,
              दिल हमारा बावला हो ,उसी तिल पर मर गया
तूल कुछ ऐसी पकड़ ली,दीवानेपन  ने मेरे ,
               उनकी उल्फत ने हमारा  दिया ऐसा हाल कर
मेहरबाँ तिल यूं हुआ कि दिलरुबा वो बन गए ,
               उम्र भर नाचा  किये हम,उसी तिल की ताल पर 
दिल मिलाना छोड़ कर वो तिलमिलाने लग गए ,
                गुस्से में लगती हसीं ,जब गलती से हमने कहा
और तिल तिल जिंदगी भर ,यूं ही हम पिसते रहे,
                   हाल ये अब , इन तिलों में ,तैल ना बाकी  रहा   
दोस्तों अब क्या बताएं तुम को अपनी दास्ताँ ,
                   घुटते तिल तिल,हसीना कातिल से दिल हारे हुए
इसलिए ही जम के खाते ,तिल की पट्टी और गजक ,
                    लेते है गिन गिन के बदला ,तिल के हम  मारे हुए

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Saturday, December 6, 2014

नींद क्यों आती नहीं

              नींद क्यों  आती नहीं       

आजकल क्या हो गया है रात भर ही ,
उचट जाती ,नींद क्यों आती नहीं है
कभी दायें,कभी बांयें ,करवटें भर
कभी तकिये को दबाता,बांह में भर
तड़फता रहता हूँ सारी रात भर ,पर,
भाग जाती,नींद क्यों आती नहीं है
उचट जाती ,नींद क्यों आती नहीं है
रात की सुनसान सी तन्हाइयों में
भावनाओं की दबी  गहराइयों में
कभी चादर ,कम्बलों,रजाइयों में ,
लिपट जाती,नींद क्यों  आती नहीं है
उचट जाती,नींद क्यों आती नहीं  है
न तो चिंता से ग्रसित ना कोई डर है
न हीं कोई बुरी या अच्छी खबर  है
कितने ही अनजान सपनो का सफर है
भटक जाती ,नींद क्यों आती नहीं है
उचट जाती,नींद क्यों आती नहीं है
फेर मे ननयान्वे के   रहा फंस कर
रह न पाया ,जिंदगी भर स्वार्थ तज कर
कुटिलता की जटिलता में बस उलझ कर
छटपटाती ,नींद क्यों आती नहीं है
उचट जाती ,नींद क्यों आती नहीं है

मदन मोहन बाहेती''घोटू'


Friday, December 5, 2014

निवेदन - पत्नी से

    निवेदन  - पत्नी से

प्रियतमे !
बड़ी जलन होती है हमें
बैठती हो जब तुम टी वी से सटी
देखती हो उसे लगा टकटकी
बड़ी निष्ठां और नियम से
बड़े चाव और सच्चे  मन से
तल्लीन होकर हर पल
देखती हो टीवी के सीरियल
तब लगता है कि काश
आप आकर हमारे भी पास
करें हम पर नज़रें इनायत
और उस समय का बस दस प्रतिशत
भी हमारे लिए निकाल कर दें
तो सचमुच  हमें निहाल कर दें
सीरियल की तरह  हम में उलझ कर
चिपक कर बैठें ,हमें टीवी समझ कर
हमारी नज़रों से   नज़रें मिलाये
कभी कभी प्यार से मुस्करायें
सच हम धन्य हो जाएंगे
अगले एपिसोड तक ,आपके गुण गाएंगे
वैसे भी हम में और टीवी में एक कॉमन बात है
दोनों का ही रिमोट ,आपके हाथ है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मोदी,पटेल और विलय

         मोदी,पटेल और विलय
             घोटू के छक्के
                      १
आये है गुजरात से, मोदी और  पटेल
दोनों माहिर खेलते ,राजनीति का खेल   
राजनीति का खेल ,खिलाड़ी दोनों पक्के
छुड़ा दिये ,अच्छे अच्छों के इन ने छक्के
एक  ने रजवाड़ों  की सत्ता   दूर  हटा  दी
और  एक  ने  कांग्रेस को  धूल    चटा  दी
                        २
जब आजादी मिली थी ,गया ब्रिटिश साम्राज्य
बंटा    हुआ   था   देश , थे,  छोटे  छोटे   राज्य
छोटे  छोटे   राज्य ,सभी  का विलय   कराया
और पटेल  ने  कैसे  भारत  संघ     बनाया
बिखरे थे  समाजवादी भी  कितने  दल में
विलय  कराया इन  सबका ,मोदी के ङर ने 

घोटू

Tuesday, December 2, 2014

आशिक़ की उल्फत

              आशिक़ की उल्फत

इतनी ज्यादा महोब्बत ,करता मेरा मेहबूब है
निभाने का आशिक़ी  ,उसका तरीका  खूब है
इतना ज्यादा दीवाना वो ख्याल रखता है मेरा
रोक डाला निकलने का ,रस्ता ही उसने  मेरा
चाहता है ,साथ उसके रहूँ  ,हरदम , हर  घड़ी
जब भी घर निकलूं, गुजरूं ,हो के ,मै उसकी  गली

घोटू

Monday, December 1, 2014

औरते और डेंटिस्ट

       औरते और डेंटिस्ट

औरतों  को  दाँतवाले  डाक्टर जी के  यहाँ ,
करना पड़ता सबसे ज्यादा मुश्किलों का सामना
इससे ज्यादा और क्या तकलीफ हो सकती उन्हें ,
     मुंह भी खुल्ला रखो और बोलना भी है मना

घोटू