Tuesday, December 30, 2014

सर्दी की दोपहरी

              सर्दी की दोपहरी

बहुत दिनों के बाद आज फिर गरम गरम सी धूप खिली,
          आओ चल कर  छत पर बैठें ,इसका मज़ा उठायें  हम
और मूँज की खटिया पर हम,बिछा पुरानी  सतरंजी ,
               बैठें पाँव पसार प्रेम से ,छील मूंगफली  खाएं हम
लगा मसाला मूली खायें कुछ  अमरुद  इलाहाबादी ,
          थोड़ी गज़क रेवड़ी खालें ,कुछ प्यारी पट्टी तिल की
 बहुत दिनों के बाद खुले मे ,तन्हाई में बैठेंगे ,
आज न शिकवे और शिकायत ,बात सिर्फ होगी दिल की
बड़ा सर्द मौसम है मेरे तन पर बहुत खराश बड़ी ,
           ज़रा पीठ पर मेरे मालिश करना,तैल लगा देना
बदले में मैं ,मटर तुम्हारे ,सब छिलवा दूंगा लेकिन,
   गरम चाय के साथ पकोड़े ,मुझको गरम खिला देना
बहुत खुशनुमा है ये मौसम ,खुशियां आज बरसने दो ,
         मधुर रूप की धूप तुम्हारी में खुशियां सरसाएँ हम
बहुत दिनों के बाद आज फिर गरम गरम सी धूप खिली,
       आओ चल कर छत पर बैठें ,इसका मज़ा उठायें हम

मदन मोहन बाहेती'घोटू '  

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