Monday, September 28, 2015

चक्कर चुनाव का

    चक्कर चुनाव का

खुद आये है हार पहन कर ,
और कहते है हमें जिता  दो
हाथ जोड़ मनुहार कर रहे,
अबके नैया पार लगा दो
पार्टी और न निशान देखिये
बस काबिल इंसान  देखिये
प्रत्याशी की भरी भीड़ में,
कोई भी इन सा न देखिये
इधर उधर की तुम सोचो मत
बस हमको दे दो अपना मत
और किसी को मत,मत देना ,
मत दो हमें,बढ़ाओ हिम्मत
ये तुम्हारा वोट नहीं है ,
ये तो एक 'बोट '  है भैया
इस चुनाव के भवसागर को,
पार कराएगी  ये  नैया
मत दे,मतलब पूरा कर दो,
हमे जीत उपहार दिला  दो
हाथ जोड़ मनुहार कर रहे ,
प्यार दिखा कर ,पार लगा दो

घोटू

          

प्रताड़ना

             प्रताड़ना

मेरे अंतर्वस्त्रों में क्या झांक रहे हो,
    अपने अंतर्मन में जरा झाँक कर देखो
मैं सोने की,मेरा मूल्य आंकते हो क्या ,
   थोड़ी अपनी भी औकात आंक कर देखो
यूं क्यों ताक झाँक करते हो नज़र बचा कर,
       तुम्हारे मन के अंदर क्या जिज्ञासा   है
एक झलक पा भी लोगे,क्या मिल जाएगा
      पूर्ण न होती इससे मन की अभिलाषा है
मैं ही क्या,तुमको जो भी कोई दिखती है,
     उसको आँखे फाड़ फाड़ घूरा करते तुम
कौन कामना तुम्हारी जो पडी अधूरी ,
      हर नारी को देख ,जिसे पूरा करते तुम
लो मैं ही बतला देती हूँ इनके अंदर,
      छिपे हुए है वो स्नेहिल ,ममता के निर्झर
जिनसे तुम्हारी माँ ने था दूध पिलाया ,
     तुमको बचपन में ,अपनी गोदी में लेकर
जिनसे चिपका कर तुमको बाहों में बांधे,
     कितनी बार गाल तुम्हारे चूमे होंगे
निज ममता के गौरव पर इतराई होगी,
    जब तुम उसकी बाहों में आ झूमे  होगे
नारी तन की सौष्टवता के ये प्रतीक है,
   इनमे छिपी विधाता की वह अद्भुत रचना
जिस ज्वालामुखी की झलक ढूंढते हो तुम,
   वो हर माँ के गौरव है,ममता का झरना
पर तुम्हारी नज़रें काली भँवरे जैसी ,
    दिखला रही कलुषता है तुम्हारे मन की
तुम्हारी माँ,बहन सभी संग होती होगी ,
     ये विडंबना है ,हर नारी के जीवन की
अरे कभी कुछ तो सोचो ,ये क्या करते हो  ,
   अपना  गिरेबान में कभी ताक  कर  देखो
मेरे अंतर्वस्त्रों में क्या झाँक रहे हो ,
     अपने अंतर्मन में जरा झाँक कर देखो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  
 

आरक्षण के पौधे

        आरक्षण के पौधे

वर्ण व्यवस्था के चक्कर में ,बरसों तलक गये रौंदे है
 हम  आरक्षण के पौधे है 
अब तक दबे धरा के अंदर , कहलाते  कंद मूल रहे हम 
खाद मिला आरक्षण जब से ,तब से ही फल फूल रहे हम 
  फ़ैल गई जब जड़ें हमारी, तो क्यों कोई हमे  रौंदे है  
 हम आरक्षण के पौधे है  
 सत्तर प्रतिशत ,सरकारी पद, परअब तो अपना कब्जा है
  कौन उखाड़ सकेगा  हमको,किसमे अब इतना जज्बा है
 दलितों के उत्थान हेतु ,हम किये गए समझौते है 
हम आरक्षण के पौधे है    
कुछ मांग समय की ऐसी थी ,दलितों को उन्हें उठाना था
 राजनीति के भवसागर में अपनी नाव चलाना था   
वोटों के खातिर चुनाव में ,किये सियासी सौदे है
 हम आरक्षण के पौधे है   

मदन मोहन बाहेती'घोटू'                      
      

         सच्चे मित्र     
               1
जब रहती रौशनी ,तब तक साया साथ
संग छोड़ते है सभी, जब आती है  रात
जब आती है रात , व्यर्थ सब रिश्ते नाते
बुरे वक़्त में लोग तुम्हे पहचान न पाते
 कह घोटू कविराय ,सगा भी तुम्हे भगाये 
केवल सच्चा मित्र ,अंत तक साथ निभाये  
                 2     
कल तक तपती धूप थी ,बादल छाये आज
 बदल रहा है इस तरह ,मौसम का मिजाज
मौसम का मिजाज ,ऋतू सब आती,जाती
कभी शीत  या ग्रीष्म,कभी मौसम बरसाती
पग पग पर जो हर मौसम में साथ निभाये
कह 'घोटू 'कवि,वो ही सच्चा मित्र  कहाये

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
             
                                             

 
 

ईश वंदना

        ईश वंदना

हे प्रभु मुझको ऐसा वर दो 
मुझ में तुम स्थिरता भर दो 
नहीं चाहता डेढ़ ,पांच या दस दिन का मैं बनू गजानन
या नौ दिन की दुर्गा बन कर,करवाऊं पूजन और अर्चन
और बाद  में धूम धाम से ,कर  दे मेरा  लोग  विसर्जन 
मुझको तुलसी के पौधे सा ,
निज आँगन स्थपित कर दो
हे प्रभु मुझको  ऐसा वर   दो
न  तो जेठ की दोपहरी  बन, तपूँ ,आग सी बरसाऊँ  मैं
या बारिश की अतिवृष्टी सी, बन कर बाढ़,कहर ढ़ाऊं मैं
ना ही पौष माघ की ठिठुरन ,बन कर बदन कँपकँपाऊँ मैं
मेरे जीवन का हर मौसम ,
हे भगवन  बासंती  कर दो 
हे प्रभु मुझको ऐसा वर दो
मेंहदी लगा,हाथ पीले कर ,मुझको सजा,बना कर दुल्हन
ले बारात ,ढोल बाजे संग ,मुझे लाओ घर ,बन कर साजन
चार दिनों के बाद लगा दो ,करने घर का ,चौका ,बरतन
मुझको सच्ची प्रीत दिखा कर ,
अपने मन मंदिर में धर  दो
हे प्रभु मुझको ऐसा  वर  दो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Friday, September 25, 2015

पति और मच्छर

               पति और मच्छर

पत्नीजी ,जब भी करती कोई फरमाइश,
     पति देवता झट से तुनक तुनक जाते है
ऐसे पति को ज्यादा भाव नहीं मिलता  है,
        पत्नी द्वारा वो मच्छर  समझे जाते  है 
तुनक मिजाजी और आशिक़ी करते रहना ,
       ये दोनों ही गुण  ,हर पति में पाये जाते
मच्छर भी आशिक़ हो गाल चूमते है या,
       तुन तुन कर,पत्नी के इर्द गिर्द  मंडराते
हिटलर सी ले काला 'हिट',बेलन के जैसा ,
           जब पत्नी स्प्रे करती , तो घबराते है 
डर के मारे ,इधर उधर उड़ते फिरते है,
       जहाँ जगह मिलती छुपने को,छुप जाते है
 इस चक्कर में उनकी हो जाती पौबारह ,
         ऐसी ऐसी जगह ढूंढ लेते   छुपने को
कभी जुल्फ में उनकी छुप कर सहलाते है,
        और कभी चोली में मिल जाता  रहने को
थकी हुई जब रातों को वो सोई रहती,
         पति हो या मच्छर ,तंग दोनों ही करते है
धूम्रपान करने से कैंसर हो जाता है,
           धूम्रपान  से इसीलिए  ,दोनों डरते  है
 दोनों को ही पत्नी लेती हलके में है,
           इसीलिये ,ज्यादा ऊंचे वो ना उड़ पाते
पानी में पलते ,चेहरे पर पानी देखा,
         रोक न पाते खुद को ,दीवाने  हो जाते
जितना भी रसपान कर सको,करलो,वरना ,
         क्षणभंगुर है जीवन ,मन को ,समझाते है        
ऐसे पति को ज्यादा भाव नहीं मिलता है,
            पत्नी द्वारा वो मच्छर  समझे जाते  है  

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

वृद्धों का सन्मान करो तुम

           वृद्धों का सन्मान करो तुम

भूखे को भोजन करवाना,और प्यासे की प्यास बुझाना ,
अक्सर लोग सभी कहते है ,बड़ा पुण्यदायक  होता है
बड़ी उमर का त्रास झेलते ,जो   लाचार ,दुखी,एकाकी,
वृद्धों का सन्मान करो तुम ,ये तो उनका हक़ होता है
बूढ़े वृक्ष ,भले फल ना दें ,शीतल छाया तो देते है,
उनकी डाल डाल पर पंछी,नीड बना चहका करते है
बहुत सीखने को है उनसे ,वे अनुभव के गुलदस्ते  है,
फूल भले ही सूख गए हो,वो फिर भी महका करते है
कभी बोलकर के तो देखो , उनसे मीठे बोल प्यार के ,
 उनकी धुंधली सी  आँखों में , आंसूं  छलक छलक आएंगे
उन्हें देख कर मुंह मत मोड़ो ,सिरफ़ प्यार के प्यासे है वो,
 गदगद होकर ,विव्हल होकर,वो आशीषें बरसाएंगे
एक मधुर मुस्कान तुम्हारी,उनको बहुत सुखी करदेगी, 
ये भी काम पुण्य का है इक,हर्षित अगर उन्हें कर दोगे
ये मत भूलो ,आज नहीं कल,ये ही होगी गति तुम्हारी ,
कोई  बोले बोल प्यार के , तब  शायद तुम भी तरसोगे 
इसीलिए जितना हो सकता ,उतना उनका ख्याल रखो तुम,
 इससे   पुण्य बहुत मिलता है  ,इसमें जरा न शक होता  है
भूखे को भोजन करवाना,और प्यासे की प्यास बुझाना ,
अक्सर लोग सभी कहते है,बड़ा पुण्यदायक   होता है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

टी वी और बुढ़ापा

            टी वी और बुढ़ापा

न होती चैनलें इतनी,न इतने सीरियल होते ,
बताओ फिर बुढ़ापे में,गुजरता वक़्त फिर कैसे
बिचारा एक टीवी ही ,गजब का है जिगर रखता ,
छुपा कर दिल में रखता है ,फ़साने कितने ही ऐसे
कभी भी हो नहीं सकता ,कोई 'ओबिडियन्ट' इतना,
कि जितना होता है टीवी ,इशारों पर,बदलता  स्वर
नाचता रहता है हरदम ,हमारी मरजी के माफिक ,
भड़ासें अपनी हम सारी ,निकाला करते है उसपर
हमेशा  ही किये  नाचा   ,हम बीबी के  इशारों पर,
नहीं ले पाये पर बदला, सदा हिम्मत ही  हारी है
इसलिए  हाथ में रिमोट ले,जब बदलते चैनल ,
ख़ुशी   होती है कम से कम ,कोई सुनता हमारी है
कभी देखे नहीं थे जो ,नज़ारे हम ने दुनिया  के ,
वो सतरंगी सभी चीजे ,दिखाता हमको टीवी है
फोन स्मार्ट भी अब तो , हमारे हाथ आया है ,
हुए इस युग में हम पैदा ,हमारी खुशनसीबी है
दूर से बैठे बैठे ही ,शकल हम देखते सबकी ,
तरक्की इतनी कर लेंगे ,कभी सोचा न था ऐसे
न होती  चैनलें इतनी ,न इतने सीरियल होते,
बताओ फिर बुढ़ापे में, गुजरता वक़्त फिर कैसे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Thursday, September 24, 2015

जानवर और मुहावरे

           जानवर और मुहावरे

कितनी अच्छी अच्छी बातें,हमें जानवर है सिखलाते
उनके कितने ही मुहावरे , हम  हैं  रोज  काम में लाते
भैस चली जाती पानी में ,सांप छुछुंदर गति हो जाती
और मार कर नौ सौ चूहे ,बिल्ली जी है हज को जाती
अपनी गली मोहल्ले में  आ ,कुत्ता शेर हुआ करता है
रंगा सियार पकड़ में आता ,जब वो हुआ,हुआ करता है
बिल्ली गले कौन बांधेगा ,घंटी,चूहे सारे  डर जाते है 
कोयल और काग जब बोले , अंतर तभी  समझ पाते है
बॉस दहाड़े दफ्तर में पर ,घर मे भीगी बिल्ली बनता
सांप भले कितना टेढ़ा हो,पर बिल में है सीधा घुसता
 काटो नहीं ,मगर फुंफ़कारो ,तब ही सब दुनिया डरती है
देती दूध ,गाय की  लातें , भी हमको सहनी पड़ती है
मेरी बिल्ली ,मुझसे म्याँऊ ,कई बार ऐसा होता है
झूंठी प्रीत दिखाने वाला ,घड़ियाली  आंसू  रोता है
चूहे को चिंदी मिल जाती ,तो वह है बजाज बन जाता
बाप मेंढकी तक ना मारी  , बेटा  तीरंदाज  कहाता
कुवे के मेंढक की दुनिया ,कुवे में ही सिमटी  सब है
आता ऊँट  पहाड़ के नीचे ,उसका गर्व टूटता  तब है
भले दौड़ता हो तेजी से ,पर खरगोश हार जात्ता है
कछुवा धीरे धीरे चल कर ,भी अपनी मंजिल पाता है
रात बिछड़ते चकवा,चकवी ,चातक चाँद चूमना चाहे
बन्दर क्या जाने अदरक का ,स्वाद भला कैसा होता है
रोटी को जब झगड़े बिल्ली ,और बन्दर झगड़ा सुलझाये
बन्दर बाँट इसे कहते है,सारी  रोटी खुद खा जाए
कोई बछिया के ताऊ सा ,सांड बना हट्टा कट्टा है
कोई उल्लू सीधा करता ,कोई उल्लू का पट्ठा  है
मैं ,मैं, करे कोई बकरी सा ,सीधा गाय सरीखा कोई
हाथी जब भी चले शान से ,कुत्ते भोंका करते यों  ही 
चींटी के पर निकला करते ,आता उसका अंतकाल है
रंग बदलते है गिरगट  सा ,नेताओं का यही हाल है
कभी कभी केवल एक मछली ,कर देती गन्दा तालाब है
जल में रहकर ,बैर मगर से ,हो जाती हालत खराब है
उन्मादी जब होगा हाथी ,तहस नहस सब कुछ कर देगा
है अनुमान लगाना मुश्किल,ऊँट कौन करवट  बैठेगा
जहाँ लोमड़ी पहुँच न पाती,खट्टे वो अंगूर बताती
डरते बन्दर की घुड़की से ,गीदड़ भभकी कभी डराती
सीधे  है पर अति होने पर,गधे दुल्लती बरसाते है
साधू बन शिकार जो करते ,बगुला भगत कहे जाते है
ये सच है बकरे की अम्मा ,कब तक खैर मना पाएगी
जिसकी भी लाठी में दम है ,भैस उसी की  हो जायेगी
कौवा चलता चाल हंस की ,बेचारा पकड़ा  जाता है
धोबी का कुत्ता ना घर का,और न घाट का रह पाता है
 घोडा करे  घास से यारी ,तो खायेगा  क्या बेचारा
जो देती है दूध ढेर सा ,उसी गाय को मिलता चारा
दांत हाथियों के खाने के ,दिखलाने के अलग अलग है
बातें कितनी हमें  ज्ञान की ,सिखलाते पशु,पक्षी सब है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Tuesday, September 22, 2015

ईश्वर पूजन और मनोकामना

 ईश्वर पूजन और मनोकामना

हम विघ्नहर्ता गणेशजी की,
 आराधना करते है
और उनसे ये याचना करते है
हमें सुख ,शांति,समृद्धि दे ,
व्यापार में वृद्धि दे
ऋद्धि और सिद्धि दे
जब क़ि हम ये जानते है,
ऋद्धि और सिद्धि ,गणेशजी की पत्नियां है
जो खड़ी रहती है उनके दांये,बाएं
हमारी ये कैसी आस्था है
पूजा कर,मोदक चढ़ा,
हम उनसे उनकी पत्नियां ,
ऋद्धि सिद्धि मांगते है,
ये हमारे लालच की पराकाष्ठा है
हम भगवान विष्णु की पूजा करते हैं
और कामना करते है लष्मी को पाने की
यहाँ भी हमारी कोशिश होती है ,
उनकी पत्नी को हथियाने की
हम शिव जी की करते है भक्ती
और मांगते है उनसे  शक्ति
जबकि शक्ति स्वरूपा दुर्गा उनकी पत्नी है,
हम ये जानते है
फिर भी हम उनसे उनकी पत्नी,
याने  शक्ति मांगते है
कृष्ण के मंदिर में जाकर हम उन्मादे
रटा  करते है 'राधे राधे'
सबको पता है राधा कृष्ण के प्रेयसी है
उनके दिल में बसी है
इसतरह किसी की प्रेयसी नाम
उसी के सामने जपना ,सरे आम
वो भी सुबह शाम
जिससे वो हो जाए हम पर मेहरबान 
अरे कोई भी भगवान
हो कितना ही दाता और दयावान
आशीर्वाद देकर तुम्हे समृद्ध बनाएगा
पर क्या अपनी पत्नी ,
भक्तों में बाँट पायेगा
फिर भी ,हम थोड़ी सी पूजा कर ,
और चढ़ा कर के परसाद
करते है उनसे उनके पत्नी की फ़रियाद
और उसको पाने की ,
कामना करते हर पल है
सचमुच,हम कितने पागल है
घोटू 

मच्छर की फ़रियाद

                  मच्छर की फ़रियाद

गौर वर्ण तुम सुन्दर देवी ,मै अदना सा मच्छर काला
तुम्हारे गालों  पर  बैठूं , करूं रूप रसपान तुम्हारा
गोरे हाथों में काला'हिट' लेकर तुम मुझ पर बरसाती
इधर उधर उड़ता फिरता मैं ,नानी मुझे याद आ जाती
तुम हिटलर सी 'हिट'लेकर के,करती बहुत जुलम हो मुझ पर
मुश्किल से मैं जान बचाता ,तुम्हारी जुल्फों में छिप कर
पर तुमतो बगदादी जैसी ,बन जाती हो एक जेहादी
बड़ी क्रूर ,आतंकी बनकर ,सदा चाहो मेरी  बरबादी
या नरेंद्र मोदी सी बन कर ,जब तुम्हारा जादू चलता
मेरी हालत कॉंग्रेस सी ,हो जाती पतली  और खस्ता
तुम्हे पता है ,हम सब मच्छर ,पानी में है पनपा करते
पानीदार तुम्हारा चेहरा ,इसीलिये है उस पर मरते
गोर गालों पर काला तिल,बनू ,निखारूँ रूप तुम्हारा
मुझ पर दया करो तुम देवी ,मैं तुम्हारा ,आशिक प्यारा 
गौर वर्ण तुम सुन्दर देवी ,मैं अदना सा मच्छर काला    
तुम्हारे गालों पर बैठूं ,करूँ  रूप  ,रसपान  तुम्हारा
   
मदन मोहन बाहेती'घोटू'               

 '

Saturday, September 19, 2015

उचटी नींद

           उचटी नींद
आती है नींद मुझको ,थोड़ी ठहर ठहर के
मैं सो भी नहीं पाता ,आराम से,जी भर के
मुद्दत से नहीं आई ,है मुझको नींद गहरी
हो रात पूस की या फिर जेठ की दोपहरी
मैं वक़्त काटता हूँ,करवट बदल बदल के
आती है नींद मुझको,थोड़ी ठहर ठहर के
सीखा है जब से इसने ,यूं इस तरह उचटना
आता जो मुश्किलों से,जाता है टूट  सपना
रहता हूँ पड़ा यूं ही,तकिये को बांह भरके
आती है नींद मुझको ,थोड़ी ठहर ठहर के
यादें  पुरानी  मेरा  पीछा न छोड़ती  है
गाहे बगाहे आकर,मुझको झंझोड़ती है
आते है याद मुझको,किस्से इधर उधर के
आती है नींद मुझको,थोड़ी ठहर ठहर के
था जब बसंती मौसम ,हम फूल थे महकते
उड़ते थे आसमां में,पंछी  से हम चहकते
अब शिशिर में ठिठुरते है ठंडी आह भरके
आती है नींद मुझको,थोड़ी ठहर ठहर के

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

चुगलखोर

          चुगलखोर 

तुम मुझसे कुछ भी ना बोलो,मैं तुमसे कुछ भी ना बोलूं ,
हम समझ जाएंगे आपस में ,हमको जो सुनना कहना है
तुम चाहे मेरे पास रहो ,तुम  चाहे   मुझसे दूर  रहो ,
हमको इक दूजे के दिल में, बस साथ साथ  ही रहना है
कुछ भाषाएँ ऐसी होती ,जब मौन मुखर हो जाता है
आखें आँखों से कुछ कहती ,दिल दिल से कुछ कह जाता है
जब प्रेमी युगल मिला करते ,स्पर्श बहुत कुछ है कहता
बोला करते श्वासों के स्वर ,कहने को कुछ भी ना रहता
कुछ बिखरी जुल्फें कह देती,कुछ कह देता फैला काजल
कुछ थकी थकी सी अंगड़ाई ,कुछ कहता अस्तव्यस्त आँचल
वेणी के मसले हुए फूल,चूड़ी के टुकड़े  झड़े हुए
देते है सारा भेद खोल ,वो चादर के सल पड़े   हुए
है इतने सारे चुगलखोर ,इसलिए जरूरत ना पड़ती ,
कुछ कहने या बतलाने की,अब बेहतर चुप ही रहना है
तुम मुझसे कुछ भी ना बोलो,मैं तुमसे कुछ भी ना बोलूं ,
हम  समझ जाएंगे आपस में ,हमको जो सुनना ,कहना है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सुलहनामा

        सुलहनामा

  हम दोनों के बीच जम गयी जो दीवार बरफ  की,
आओ उसे ,प्यार की गरमी  देकर हम पिघला लें
ना तुम करो शिकायत ,शिकवा ,ना मैं ही कुछ बोलूं ,
अपनी आपस की उलझन को,आपस में सुलझा लें
मैंने माना खता हो गयी ,कुछ गलती थी मेरी ,
पर थोड़ा तो दोष तुम्हारा भी था इस अनबन में
मेरी इस गुस्ताखी को तुम ,यूं ही टाल सकती थी, 
नहीं इसतरह ,विचलित होती,उसको लेकर मन में
उल्टा तुमने ,उन लपटों में ,तपता घी था डाला ,
तुम्हारी इस प्रतिक्रिया ने आग और भड़का दी
आपस में टकराव अहम का ,ऐसा हुआ हमारे ,
हम दोनों के बीच दूरियां ,इसने और बढ़ा दी
रहें एक छत के नीचे हम ,लेकिन अनजानों से,
तुम भी तड़फ़ो ,मैं भी तड़फूं,मन ना रहता बस में
तुम इस करवट,मैं उस करवट,जाग रहे है दोनों,
बेहतर ये होगा समझौता ,कर लें ,हम आपस में
पहले पहल कौन करता  इस ,इन्तजार में दोनों,
इस प्यारी वासंती ऋतू में,शीत  युद्ध है चलता
कुछ तो कमी रही होगी जो हुई ग़लतफ़हमी ये,
रहना यूं गहमागहमी में,बहुत मुझे है खलता
अब महसूस कर रहे हैं हम ,पीड़ा विच्छेदन की,
अलग एक दूजे से रह कर ,कैसे जी पाएंगे
चार कदम तुम आगे आओ ,चार कदम मैं आऊं ,
तब ही होगी दूर दूरियां ,हम तुम मिल पाएंगे
आओ मिलन राह पर चल कर,हम करीब आ जाएँ
अपने अपने अहम त्याग कर ,दूरी सभी मिटा लें
हम दोनों के बीच जम गई ,जो दीवार बरफ की,
आओ उसे प्यार की गरमी देकर हम पिघला लें

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

राम का नाम

         राम का नाम

बात रामायण काल  की है
लेकिन कमाल की है
राम की सेना के वानर
पत्थरों पर राम का नाम लिख कर 
पानी  में तैरा रहे थे
समुन्दर में पुल बना रहे थे
रामजी ने सुना ,तो चकराए ,
सोचा ये हो सकता है कैसे
वो दूर अकेले निकल गए ,
और उन्होंने एक पत्थर ,
पानी में फेंक दिया ,चुपके से
पत्थर तैरा नहीं,डूब गया तो राम ने ,
सकपका के देखा इधर उधर
तो उन्हें पास ही हनुमानजी आये नज़र
बोले ,हनुमान ,तूने कुछ देखा तो नहीं
तो हनुमान बोले ,प्रभु सब देख लिया
जिसने आपका नाम लिया ,वो तैर गया ,
आपने जिसको छोड़ा,वो डूब गया
ये बात तो हुई आध्यात्मिक
अब बताते है इससे भी कुछ अधिक
लंका में जब पहुंचा ये समाचार
कि समुन्दर के उस पार
पुल बन रहा है,धमाल हो रहा है
रामका नाम लिखा हुआ पत्थर ,
पानी में तैर रहा है,कमाल हो रहा है
रावण जब ये सुना ,तो सोचा ,
इससे तो लंका जनता का
'मोरल डाउन 'हो सकता है 
इसलिए कुछ करने की आवश्यकता है
इसलिए उसने करवा दिया एलान
कि  वो भी पानी में तैरायेगा ,
लिख कर के अपना नाम
एक निश्चित दिन ,जब रावण को था ,
पानी में पत्थर तैराना
लंका के सारी जनता ,एकत्र हो गयी ,
देखने रावण का ये कारनामा
और जब रावण ने ,अपना नाम लिख,
पत्थर को पानी में तैराया
तो पत्थर  डूबने लगा ,बाहर नहीं आया
रावण घबराने लगा
मन ही मन कुछ बुदबुदाने लगा
कुछ ही देर में चमत्कार दिखलाया
डूबता पत्थर ,तैरता हुआ वापस आया
रावण की सांस में सांस आयी ,
वो पसीने पसीने था ,पर मुस्कराया
जनता उसकी जयजयकार कर रही थी
पर मन ही मन ,
रावण की हवा खिसक रही थी 
रात मंदोदरी ने पूछा ,
आपने इतना बड़ा चमत्कार कर दिया ,
फिर क्यों इतना घबरा रहे थे
जब पत्थर डूब रहा था ,
आप कौनसा मन्त्र बुदबुदा रहे थे
रावण ने बोला रानीजी,
मैं कैसे ना घबराता
अगर पत्थर नहीं तैरता तो,
मेरी इज्जत का तो फलूदा हो जाता
इसलिए पत्थर को पानी में ,
 तैराने में आया जो मन्त्र काम
मैं मन ही मन बुदबुदा रहा था
राम का नाम

मदन मोहन बाहेती'घोटू'





 

Thursday, September 17, 2015

मेरी सुबह बन जाती है

    मेरी सुबह बन जाती है

सवेरे सवेरे ,
तुम्हारे हाथों से बनाया,
गरम चाय का प्याला ,
 जब मेरे हाथों में आता है
और उससे उठती हुई ,
गरम गरम वाष्प की लहरें ,
जब मेरे ओठों से टकराती है
मुझे तेरे जिस्म की गर्मी ,
महसूस कराती है
चाय के गुलाबी रंग में ,
तेरी छवि दिखलाती है
तेरा ये स्वरूप देख कर ,
मेरे होंठ कुलबुलाने लगते है
मे ,बावरा सा ,
रूप रास पान करने की लालसा में,
उसे होठों से लगा लेता हूँ
और देर तक मेरे होंठ,
उस ऊष्मा की ,
गरमाहट की झनझनाहट से  ,
तरंगित होते रहते है
ऐसा मेरे साथ ,
रोज रोज होता है
जब चाय के रूप में ,
तू मुझे लुभाती है
और मेरी सुबह बन जाती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जल कण

          जल कण

स्नानोपरांत ,
तुम्हारे कुन्तलों से टपकती हुई ,
जल की बूँदें ,
तुम्हारे कपोलों को सहलाती हुई ,
जब तुम्हारे वक्षस्थल में समाती है
बड़ी सुहाती है
ऊष्मा से उपजी ,
स्वेद की धारायें ,
जब तुम्हारे गालों पर बहती है
तुम्हारा श्रृंगार बिगाड़ देती है
भावना से अभिभूत हो,
तुम्हारी आँखें,
जब मोती से आंसू टपकाती है
तुम्हारे गालों पर,
अपनी छाप छोड़ जाती है
सुख में या अवसाद में ,
या किसी की याद में ,
बारिश या धूप में
किसी भी रूप में ,
जल के कण ,
जब भी मौका पाते है
तेरे गालों को सहलाते है
बड़े इतराते है
काश मैं भी ……

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंहगाई की महिमा

           मंहगाई की महिमा

औरत को घर की मुर्गी ,कहते थे लोग अक्सर
और उसकी हैसियत थी  बस दाल के बराबर
दालों का दाम जब से  ,आसमान  चढ़  गया है
वैसे ही औरतों का  ,रुदबा  अब  बढ़  गया है
मुर्गी और दाल सबको ,मंहगा  बना दिया  है
मंहगाई  तूने   अच्छा , ये  काम तो किया है

घोटू

स्विमिंगपूल और डेंगू

            स्विमिंगपूल और डेंगू
                         १
अदना सा देख कर के ,'इग्नोर'नहीं करना,
                हर शख्सियत की होती ,अपनी ही अहमियत है
जो काम होता जिसका , करता है अच्छा  वो ही ,
                 तलवार  क्या  करे जब ,सुई   की   जरूरत   है
कहते है हाथी तक भी, घबराता चींटी से है,
                   वो सूंड में जा उसकी ,  कर  देता  मुसीबत है
कल तक जो था लबालब ,हम तैरते थे जिसमे,
                  डेंगू के  डर  से खाली ,स्वमिंगपूल   अब  है
                       २
मच्छर जिसे हम यूं ही ,देते मसल मसल थे ,
                 अब तोप से भयानक  ,उसकी नसल हुई है
डेंगू के इस कहर से ,सब कांपने लगे है,
                  कितनी  दवाइयाँ  भी ,अब बेअसर  हुई  है
डेंगू के  डर से  देखो, अब हो  गया है खाली,
                 था कल तलक लबालब ,जो तरणताल प्यारा
जबसे गयी जवानी, हम हो गए है खाली ,
                 इस तरणताल  सा ही ,अब हाल   है  हमारा
                            ३      
तुच्छ को तुच्छ कभी ,मत समझो भूले से ,
               बड़े बड़े उच्चों को ,ध्वंस कर सकता है
छोटी सी लड़की ने ,संत को पस्त   किया ,
               आज भी आसाराम ,जेल में  सड़ता है
तुच्छ सी तीली से ,जंगल जल जाता है,
                तुच्छ सी गोली से ,प्राण निकल सकता है
छोटा सा मच्छर भी ,अगर काट लेता है,
               मलेरिया ,डेंगू से ,बड़ा  विकल  करता  है
                     
  मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Sunday, September 13, 2015

घर घर मिटटी के चूल्हे हैं

        घर घर मिटटी के चूल्हे हैं

जो  बड़े रौब से कहते है ,हम घर के करता धरता  है
पर सभी जानते है उनपर ,बीबी का शासन चलता है
सब पति जोरू के है गुलाम ,बाहर गर्वित हो फूले  है
अपने हमाम में सब नंगे,घर घर मिट्टी के चूल्हे  है
हर युवा देखता ही रहता ,शादी का सपन  सुहाना है
शादी कर जब कि गृहस्थी के,चक्कर में बस फंस जाना है
फिर भी जाने क्यों ख़ुशी ख़ुशी ,घोड़ी पर चढ़ते दूल्हे है
अपने हमाम में सब नंगे ,घर घर मिटटी के चूल्हे है
सब लोग चाहते है  बेटा ,जो कुल का नाम चलाएगा
शादी करके वो पत्नी का ,लेकिन गुलाम हो जायेगा
माँ बाप ध्यान रखती बिटिया ,और बेटे उनको भूले है
अपने हमाम में सब नंगे ,घर घर मिट्टी के चूल्हे है
होता चुनाव तो हर पार्टी ,आश्वासन,भाषण देती है 
जब जाती जीत, किया करती ,वादों की ऐसी तैसी है
कुर्सी पर बैठ सभी नेता  ,अपने सब वादे  भूले  है
अपने हमाम में सब नंगे,घर घर मिटटी के चूल्हे है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बिगड़ी बातें


            बिगड़ी बातें

बीबी की ख्वाइश पूर्ण न हो,बीबी का मूड बिगड़ता है
बीबी की ख्वाइश  पूर्ण करो ,तो घर का बजट बिगड़ता है
बच्चों की जिद पूरी न करो ,तो हम पर वे बिगड़ा करते
और उनकी हर जिद पूर्ण करो तो बच्चे है बिगड़ा करते
जब दूध बिगड़ता,फट जाता,उसमे खटास आ जाता है
जब रिश्ते बिगड़ा करते है ,मन में खटास आ  जाता है
फसलें बिगडे ,हो बर्बादी  ,बेबस किसान बस रोता है
 नस्लें बिगड़े बन तालिबान ,सारा जहान तब रोता है
जब उन्हें देखते सजा धजा ,अपना ईमान बिगड़ता है
जो छेड़छाड़ थोड़ी करते ,उनका श्रृंगार  बिगड़ता  है
उनका मिजाज बिगड़ जाए ,घर भर सर पर उठ जाता है
कोई की तबियत जब बिगड़े ,तो वो बीमार कहलाता है
दफ्तर पहुँचो यदि देरी से ,गुस्सा  हो बॉस बिगड़ जाता
जब पोल किसी की खुलती है तो सारा खेल बिगड़ जाता
सब कहते बंद हो गयी है ,यदि घड़ी बिगड़ जो जाती है
लड़की जब बिगड़ा करती है ,तो वो 'चालू' हो जाती है
सत्ता विपक्ष में ना पटती ,आपस में बात बिगड़ती है
परिणाम भुगतती है जनता ,उनकी लड़ाई जब बढ़ती है
मौसम जो अगर बिगड़ जाता ,तो बड़ा कहर वो ढाता है
बस एक वो ऊपरवाला है ,सब बिगड़ी  बात बनाता  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बर्बाद फसल

           बर्बाद फसल

एक राजनेता का उदयीमान युवराज
चुनाव में शिकस्त मिलने से था नाराज
कुछ दिन उसने लिया अज्ञातवास
और फिर से करने लगा प्रयास
जनता में अपनी पैठ बनाने को
इसलिए ,जब भी कहीं कोई हादसा होता ,
पहुँच जाता था अपनी सहानुभूती दिखलाने को
एक बार ,मौसम की बेरुखी से ,
किसी गाँव की फसल हो गयी बरबाद
वो झट से पहुँच गया ,सहानुभूति दिखलाने ,
अपनी अम्मा के साथ
और करने लगा किसानो से संवाद
कृषि के बारे में देख कर उसका अल्पज्ञान
हैरान हुए सब किसान
सोचने लगे क्या इसी के हाथों में,
सौंपी जानी थी देश की कमान
और फिर उन्होंने सचमुच सर पीट लिया
जब उसने उनको ये सुझाव दिया
कि आप इतनी मेहनत कर ,
खेतो में अनाज क्यों उपजाते है
जब हमारी सरकार थी तो हमने ,
सभी फ़ूड कार्पोरेशन के गोदामो में ,
इतना अनाज भर रखा था ,
आप वहीँ से अनाज क्यों नहीं ले आते है
 फिर भी ,मैं सरकार के आगे ,
आपका मुद्दा उठाऊंगा
और आपको आपकी बरबाद फसल का ,
मुआवजा दिलवाऊंगा
उसकी बातें सुन गाँव के लोगों ने ,
आपस में विचार विमर्श किया
और जिससे जितना हो सकता था ,
चंदा इकठ्ठा किया
और उसकी माताजी के हाथ में पकड़ा दिया
और उससे बोले कि,
 हम इससे ज्यादा कुछ न कर सके ,
यह हमारी विवशता है
हमारी फसल बरबाद हुई है ये तो  ठीक है ,
पर आपकी भी फसल बर्बाद हुई है ,इसलिए ,
आपका भी कुछ मुआवजा तो बनता है
और क्योंकि सरकार की नीतियों में ,
इस तरह की फसल की बर्बादी के लिए ,
मुआवजे का नहीं है कोई प्राविधान
इसलिए मुआवजे स्वरूप ,
कबूल कीजिये ,हमारा ये छोटा सा योगदान

घोटू

Saturday, September 12, 2015

हरि लीला

       हरि  लीला

हरि व्याप्त जग के कण कण में ,
              बतलाओ हरि कहाँ नहीं है
पीड़ा हरे,शांति दे मन को ,
             बस समझो तुम हरि वही है
मन हो चंगा अगर ,कठौती ,
                में भी गंगा मिल जाती है  
हरियाली  में हरि बैठे है ,
                दर्शन कर ठंडक आती है
 सुबह सुनहरी धूप में हरी  ,
                 हरी  तेज है दोपहरी का
नज़र हरी की तुम पर हरदम,
                  हरी काम करते प्रहरी का
रूपहरी जो खिले  चांदनी ,
                   उसमे भी हरी का प्रकाश है
पीताम्बरी छवि है हरी की ,
                    आम दशहरी सा मिठास है
हरी बसते है ,गाँव गाँव में,
                      शहरी  के  भी संग  हरी  है
हरि  ऊँगली पर ,गोवर्धन सी,
                        ये सारी   जगती  ठहरी है
मुश्किल बहुत समझ पाना है,             
                        हरी की लीला ,अति गहरी है
हरी पहाड़ी,खेती,बगिया ,
                         जित देखो बस हरी हरी है
हरा भरा है उसका जीवन ,
                          जिसके मुख पर हरी नाम है
घर की देहरी ,पर हरी बसते ,
                           हर घर होता हरी धाम  है
     
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

Wednesday, September 9, 2015

मच्छर की दीवानगी

     मच्छर की दीवानगी

एक मच्छर मतवालो ,प्यार में दीवानो भयो,
ढूंढत रह्यो ,इहाँ उहाँ ,अपनी  मच्छरानी कूँ 
गुनन गुनन गीत गाय,गाँव गाँव ,गली गली ,
फिरत रह्यो,टेरत रह्यो ,प्रीतम  दीवानी  कूँ
सुन्दर सी नारी के ,गालन पर तिल देख्यो ,
चिपट गयो तिल पर जा,मच्छरानी जानी कूँ
अंधे के हाथन में ,जैसे की बटेर लगी,
ढूंढत रह्यो मच्छरानी ,पाय गयो रानी कूँ

घोटू

ग़ज़ल

       ग़ज़ल
यहाँ  कुछ  लोग  मच्छराना है
जिनकी आदत ही भिनभिनाना है
गाल पर बैठना है चुपके से ,
और हौले से काट जाना है
बजन हल्का है बात हलकी है,
रोग भारी मगर फैलाना  है
काम करते है अब अँधेरे में ,
रौशनी देख मुंह छिपाना है
 बात करते है आग शोलों की,
डर के धुँवें से भाग जाना है
चूसते रहते खून है सबका ,
शौक बतलाते आशिकाना है
कौन है,कितने है क्या बतलाएं,
आपने ,हमने ,सबने जाना है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Thursday, September 3, 2015

कच्चा -पक्का

      कच्चा -पक्का
कच्ची उमर का प्यार
रहता है दिन चार
कचनार की कच्ची कली
लगती है मन को भली
कच्चे धागों का बंधन
बांधे रखता है आजीवन
कच्ची नींव पर बनी इमारत 
खड़ी रहेगी कब तक?
जो  कान का कच्चा होता है
कई बार खाता धोखा है
कच्ची केरी जब पकती है
मिठास से भरती  है
आम जब ज्यादा पक जाता है
डाल से टपक जाता है 
पका हुआ पान
न खांसी  न जुकाम
कोई अपनी बातों से पका देता है
सबको थका देता है
पका हुआ खाना जल्दी पचता है
पक्का रंग मुश्किल से निकलता है
संगीत के सुरों से सजता है गाना पक्का
आजकल तो पैसा भी होता है कच्चा पक्का 

घोटू

दो क्षणिकाएँ

      दो क्षणिकाएँ
             १
वो बेटा ,
जो होता है माँ बाप की आँखों का तारा,
जिसमे उनके प्राण अटकते है
बूढ़े होने पर वो ही माँ बाप ,
उस बेटे की आँखों में खटकते है
               २
वृक्ष की डाल ,
जब फलों से लद  जाती है ,
थोड़ी झुक जाती है
आदमी ,बुढ़ापे में ,
जब अनुभव से लद जाता है,
उसकी कमर झुक जाती है
समझदार ,वो कहलाते है
जो लदे  हुए फलों का
और बुढ़ापे के अनुभवो का ,
फायदा उठाते है

घोटू 

बिहारी जी के दोहे और बिहार की राजनीति

      बिहारी जी के दोहे और बिहार की राजनीति

महाकवि बिहारी जी का एक दोहा है -
"कहलाते एकत बसत ,अही,मयूर,मृग,बाघ
  जगत तपोवन सो कियो,दीरघ,दाघ ,निदाघ "
(भावार्थ-भीषण गर्मी के कारण,एक दू सरे के दुश्मन
सर्प और मयूर या मृग और बाघ ,एक वृक्ष की छाँव
में ,साथ साथ बैठ ,गर्मी से बचने की कोशिश कर रहे है
गर्मी ने जगत को तपोवन की तरह बना दिया है )
आज बिहार की राजनैतिक स्तिथि भी ठीक वैसी ही है
और इसी से प्रेरित हो चार नए दोहे प्रस्तुत है    
                                १
  इक दूजे को गालियां ,देते थे जो रोज
इस चुनाव ने बदल दी ,उनकी सारी सोच
                            २
मोदी  तेरे  तेज से ,सभी  हुए  भयभीत
आपस में मिलते गले ,दिखा रहे है प्रीत
                           ३
लोकसभा की हार की ,अब तक मन में टीस
साथ आगये  सोनिया ,लालू  और  नितीश
                        ४
बाहर दिखता  मेल है, पर  है मन में मैल
देखो क्या क्या कराता ,राजनीति का खेल      
   
और अंत में फिर बिहारी जी का एक दोहा -
"नहिं पराग नहिं मधुर मधु,नहीं विकास इहि काल
अली  कली  से ही  बंध्यो,  आगे  कौन   हवाल "
इस दोहे को समयानुसार थोड़ा परिवर्तित कर दिया है -
"नहिं पराग नहिं मधुर मधु ,नहीं विकास इहि काल
 लालू   बंध्यो   नितीश  से , आगे  कौन   हवाल "

शुभम भवतु
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'