Saturday, May 7, 2016

      मै खाउं ठंडी हवा,धूप तुम खाओ

इस मंहगाई में ,ऐसे पेट भरे हम ,
   मै खाऊं ठंडी हवा ,धूप  तुम खाओ
मै पीयू गम के घूँट ,पियो तुम गुस्सा ,
    जैसे तैसे भी अपनी प्यास बुझाओ
हम नंगे क्या नहाएंगे,क्या धोएंगे
छलका अश्रुजल ,सौ आंसू राएंगे
मै तेरे ,  तू मेरे   आंसूं  पी लेना
जी लगे ना लगे ,बस यूं ही जी लेना
मै नकली हंसी ओढ़ कर खुश हो लूँगा ,
तुम मुख पर, फीकी हंसी लिए मुस्काओ
इस मंहगाई में ऐसे पेट भरे हम,
मै खाउं ठंडी हवा ,धूप तुम खाओ
ऐसी होती यह आश्वासन की रोटी
कितनी ही खालो,भूख नहीं कम होती
वादों की बरसातें कितनी बरसे
जनता बेचारी पर प्यासी ही तरसे
मै खाकर  के ,ख्याली पुलाव जी लूँगा,
तुम झूंठे सपनो की बिरयानी खाओ
इस मंहगाई में ऐसे पेट भरे हम,
मै खाऊं ठंडी हवा,धुप तुम खाओ

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

No comments:

Post a Comment