Sunday, August 7, 2016

 जब से मइके चली गयी तुम

जब से मइके चली गयी तुम
सारा घर है गुमसुम ,गुमसुम,
मुझको ऐसा लगता हर क्षण
जैसे बदल गए हो  मौसम
ना बसन्त की खुशबू महके
ना गरमी में ,ये तन दहके
ना सरदी में होती सिहरन
ना सावन में होती रिमझिम
साँसे चुप चुप आती,जाती
आपस में किस से टकराती
ना पायल बजती खनखन
ना बाहों के बंधते  बन्धन
हुई ताड़ सी ,लम्बी रातें
मुश्किल से हम काट न पाते 
वो पल मस्ती के,मदमाते
याद करे ,रह रह विरही मन
जब मेरे संग होती तू ना
लगता सब कुछ सूना,सूना
 तेरी यादों के मरूथल में ,
मृगतृष्णित हो,भटके है मन
जब से मइके चली गई तुम
सारा घर है गुमसुम गुमसुम

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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